जनता की सुरक्षा में अपने परिवार को भी भूल जाते है सरकारी अधिकारी





नवीन चौहान

प्रशासनिक अधिकारियों और कर्मचारियों को भ्रष्ट बोलने वाली जनता को उनके कर्तव्यों की वास्तविकता को जरूर जानना चाहिए। प्रशासनिक अधिकारी आपदा की घड़ी में अपनी जान जोखिम में डालकर जनता को सुरक्षित बचाने का हरसंभव प्रयास करते है। प्रशासन हो या पुलिस सभी अपने कर्तव्य ​का निर्वहन करते है। जनता को सुरक्षित बचाने के दौरान अपने परिवार तक को भूल जाते है। परिजनों के फोन तक नही उठाते। जबकि अधिकारियो के मां— बाप और परिवार के तमाम सदस्य उनकी चिंता में व्यथित रहते है। ऐसे में अधिकारियों पर आरोप लगाने वाले जनता को अपने आचरण के बारे में भी सोचना चाहिए। अधिकारियों और पुलिस को भ्रष्ट कहने से पहले आत्म चिंतन जरूर करना चाहिए। आखिरकार आपदा की घड़ी में प्रशासन और पुलिस ही मसीहा दिखाई पड़ती है।
जोशीमठ में ग्लेशियर फटने की घटना उत्तराखंड की एक बड़ी त्रासदी है। इस प्राकृतिक आपदा में कई लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गए। काफी संख्या में मृतकों के शवों को बरामद करने के प्रयास किए जा रहे है। प्रशासन, पुलिस, सेना के जवान अपनी जान को जोखिम में डालकर आपदा में फंसे लोगों की जिंदगी को बचाने में जुटे रहे। जोशीमठ से ले​कर हरिद्वार तक प्रशासन और पुलिस हकलान रही। इस आपदा की घड़ी में जनता को सुरक्षित बचाने के लिए सकारात्मक प्रयास किए गए। चमोली जिलाधिकारी स्वाति भदौरिया ने ग्लेशियर फटने की सूचना के तत्काल बाद अपनी प्रशासनिक कौशल का परिचय दिया। उन्होंने आपदा प्रबंधन विभाग, प्रशासन और पुलिस की तमाम सरकारी मशीनरी को आपदा में फंसे लोगों को सुरक्षित बचाने में झोंक दिया। जिलाधिकारी स्वाति भदौरिया खुद भी आपदाग्रस्त क्षेत्र में डटी रही और दिशा निर्देश देती रही। वक्त रहते प्रशासन ने हालात को काबू किया और रेस्क्यू आप्रेशन शुरू हो पाया। लेकिन हालात अब जैसे दिखाई दे रहे है। ऐसे घटना के वक्त नही थे। ग्लेशियर फटने के तत्काल बाद कुछ भी अंदाजा लगाना मुश्किल था। पानी कितना आयेगा हरिद्वार तक के हालात कैसे होंगे, इसको लेकर दिल्ली में केंद्र सरकार, उत्तराखंड की राज्य सरकार और प्रशासन के सभी अधिकारी चिंतित थे। ग्लेशियर फटते ही केदारनाथ आपदा की यादें को तरो ताजा हो गई। दिमाग में वही पुरानी तस्वीरे घूमने लगी। देशभर में चिंता व्याप्त हो गई। देशभर से लोग अपने परिजनों को फोन करके कुशलक्षेम पूछने लगे। केदारनाथ आपदा को ध्यान में रखते हुए जोशीमठ आपदा को जोड़कर देखा जाने लगा। उत्तराखंड सहित समूचे भारत में एक घबराहट होने लगी। लेकिन उत्तराखंड की पुलिस और प्रशासन ने आपदा की इस घड़ी में अदम्य साहस और बुद्धिमता का परिचय दिया। राज्य के आपदा मोचन बल की डीआईजी रिद्धिम अग्रवाल ने जनता को सुरक्षित बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। जिसके बाद जोशीमठ, कर्णप्रयाग, रूद्रप्रयाग, देवप्रयाग, ऋषिकेश और हरिद्वार के तमाम गंगा घाटों के समीप निवास करने वाले लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया। अगर हरिद्वार प्रशासन की बात करें तो जिलाधिकारी सी रविशंकर ने वक्त रहते हरिद्वार जनपद की जनता को सुरक्षित बचाने के व्यापक प्रबंध किए। आपदा प्रबंधन विभाग, प्रशासन और पुलिस बेहतर समन्वय बनाकर गंगा घाटों पर निवास करने वाली जनता को वहां से निकालकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने में जुटी रही। इस दौरान सभी ने एक—एक सेकेंड की कीमत को समझा। किसी को अपने परिवार की कोई सुध नही रही। सभी अधिकारियों, कर्मचारियों के लिए उनका कर्तव्य सबसे पहले रहा। इसी कर्तव्य का सभी ने ईमानदारी से निर्वहन किया। अगर बात जोशीमठ की करें तो एसडीआरएफ, एनडीआरएफ,पैरा मिलिट्री जवान, उत्तराखंड पुलिस और प्रशासन की टीम टनल में घुसकर शवों को निकालने में जुटी है। टनल के अंदर जेसीबी की मदद से रास्ता बनाया जा रहा है। एसडीआरएफ के सेनानायक नवनीत सिंह भुल्लर ने दिलेरी दिखाते हुए टनल में प्रवेश किया। टनल में खून से लथपथ शवों को देखा और उनको निकाला। जबकि एक टनल से 12 लोगों को सुरक्षित निकालकर पुर्नजन्म दिया। फिलहाल धारी देवी मंदिर, डैम क्षेत्र में बायनाकुलर की मदद से सर्चिंग अभियान जारी है। जोशीमठ से लेकर हरिद्वार तक और राजधानी देहरादून में बैठे प्रशासनिक अधिकारियों के निर्देशन पर जिस तरह से जनता को सुरक्षित बचाकर रखने का अभूतपूर्व कार्य किया गया। प्रशासन और पुलिस एक बार फिर आपदा की घड़ी में मसीहा बनकर सामने आ गई। ऐसे में एक बड़ा सवाल यह भी है कि हम कितनी आसानी से इन सभी को भ्रष्ट बोल देते है। आखिरकार प्रशासन और पुलिस के बलबूते ही तो पूरा सिस्टम चल रहा है और हम सभी सुरक्षित होने का आभास करते है।



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