नवीन चौहान
छात्रवृत्ति घोटाले में एसआईटी की जांच की तपिश में झुलस रहे कॉलेज संचालकों को अब विजिलेंस जांच से गुजरना पड़ रहा है।विजिलेंस की टीम हरिद्वार, रूड़की और मेरठ के कॉलेजों में दबिश दे रही है। विजिलेंस की टीम ने कॉलेजों के दफ्तर से सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के बच्चों का डाटा जुटाया है, इन बच्चों के अभिभावकों ने खुद की इनकम ढाई लाख से कम बताते हुए फर्जी आय प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर छात्रवृत्ति हासिल की और सरकारी धन की बंटरबांट की है।
उत्तराखंड में करीब 500 करोड़ से अधिक के छात्रवृत्ति घोटाले में हाईकोर्ट के आदेश के बाद गठित एसआईटी कॉलेजों की जांच कर रही है। इन कॉलेज संचालकों ने एससी—एसटी छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्ति की रकम फर्जी दस्तावेजों के जरिए गोलमाल किया। साल 2011 से शुरू हुए इस गोरखधंधे की जांच हाईकोर्ट के आदेश के बाद शुरू हुई। जिसके बाद से एसआईटी प्रमुख आईपीएस अफसर मंजूनाथ टीसी के नेतृत्व में गठित कॉलेजों की जांच कर रही है तथा साक्ष्य एकत्रित कर मुकदमा दर्ज करा रही है। एसआईटी ने करीब एक दर्जन से अधिक कॉलेज संचालकों को जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया है। तथा दर्जनों कॉलेजों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर तत्परता से विवेचना कराई जा रही है। इसी छात्रवृत्ति घोटाले में दूसरी जांच उत्तराखंड विजीलेंस की टीम कर रही है। विजीलेंस भी हाईकोर्ट के आदेश पर ही जांच कर सरकारी बाबूओं और अधिकारियों की कुंडली को खंगाल रही है। जिसके लिए विजीलेंस की टीम ने कॉलेज संचालकों के यहां पहुंचकर दस्तावेज जुटाए है। विजीलेंस सूत्रों से जानकारी मिली है कि सरकारी अधिकारियों ने सरकारी धन का गबन करने के लिए अपने आय प्रमाण पत्रों में फर्जीबाड़ा किया। जिसके बाद अपनी इनकम को कम बताया गया। तथा अपने बच्चों के लिए छात्रवृत्ति की रकम हासिल की। पुलिस सूत्रों से जानकारी मिली है कि करीब 350 अधिकारियों ने इस तरह का फर्जीबाड़ा किया है। सबसे पहला मामला मयंक नौटियाल का प्रकाश में आया था। मयंक नौटियाल पूर्व समाज कल्याण अधिकारी गीताराम नौटियाल के भतीजे बताया गया है। जबकि मयंक के पिता खुद सरकारी बाबू थे। मयंक ने भी गलत दस्तावेजों के आधार पर छात्रवृत्ति हासिल की है।