नवीन चौहान
हरिद्वार के एक महकमे का हाल बुरा है। साहब तो सीधे सादे है। ईमानदारी चेहरे से लेकर उनके सभी कार्यो में छलकती है। लेकिन साहब के नीचे काम करने वाले सभी के सभी बाबन गज है। खूब खाते है और डकार तक नही लेते। बड़े साहब को तो हवा भी नही लगती और ये कारिंदे कर देते है बड़ा खेल। हालांकि सरकार तो जीरों टालरेंस की है। लेकिन इन छोटों के आतंक से हरिद्वार की जनता परेशान और हैरान है। साहब की समझ में नही आ रहा है कि हरिद्वार में रहे या विदाई लेकर जाए। नीचे वाले तो सुधरेंगे नही। लेनदेन की ताम बातें बड़े साहब की समझ से परे है।
हरिद्वार माया नगरी है। माया की पूजा सबसे पहले होती है। माया के बिना यहां पर कोई भी काम नही होता है। माया की जय—जयकार है। ऐसे ही हरिद्वार के एक विभाग का हाल है। यहां पर माया सर्वोपरि है। माया के दर्शन किए बगैर तो कोई कुर्सी से हिलता तक नही। फाइल उठाना तो बहुत दूर की बात है। ऐसे में उत्तराखंड में जीरो टालरेंस की सरकार आई। मुखिया ने सबको उम्मीद जगाई। फूल देकर ही हो जायेगा काम। अधिकारियों को नही बेचना होगा अपना इमान। कुर्सी के लिए वफादारी का मंत्र दिया गया। बड़े साहब कुर्सी पर बैठाये गए। ईमानदारी से काम करने का बीड़ा लेकर बड़े साहब ने काम शुरू किया। लेकिन माया की हनक में बाबले हो उठे छोटे साहब बैचेन हो गए। उन्होंने बड़े साहब की ही जासूसी करनी शुरू कर दी। छोटों का मजबूत गठजोड़ बड़े साहब हो भारी पड़ने लगा। बड़े साहब को हवा तक नही लगी और गडढ़ा खोदने वालों से महीने की किस्त शुरू हो गई। बड़े साहब अपने कारिंदो पर भरोसा करते रहे और छोटों ने तो कमाल कर दिया। गरीबों की हालत पतली कर दी। खूब माया बटोरी। ऐसे में बड़े साहब दिक्कत में है।