कोरोना की जंग में इंसान कम और मसीहा ज्यादा, गरीब दिखा प्यादा




गगन नामदेव
कोरोना संक्रमण की महामारी के दौरान आए संकट में इंसान कम और मसीहा ज्यादा दिखाई पड़े। मसीहा गरीबों को राशन देते हुए फोटो सोशल ​मीडिया पर खूब धूम मचाती रही। इंसानियत गायब सी हो गई और गरीब प्यादे नजर आए। हद तो तब हो गई फोटो के खौफ से कुछ जरूरतमंदों ने राशन लेना तक मुनासिब नही समझा। मसीहा अपने फोटो सेशन के मिशन में जुटे रहे। लेकिन इन आपदा के बीच कुछ इंसानियत के देवता भी निकले। जिन्होंने गरीबों के घरों में राशन तक तो पहुंचाया पर अपना नाम तक नही बताया। आखिरकार पुण्य भी तभी मिलता है तब एक हाथ से दान हो तो दूसरे हाथ को पता ना चले। लेकिन यहां तो अवार्ड जीतने की बारी है।
जी हां 22 मार्च 2020 को भारत में कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए लॉक डाउन किया गया। देश का पूरा सिस्टम जहां का तहां बंद हो गया। सभी लोग घरों में बंद हो गए। एकाएक सिस्टम की सबसे बड़ी मार गरीबों पर पड़ी। गरीबों को भोजन और राशन की समस्या आन पड़ी। सरकार ने प्रशासनिक स्तर पर व्यवस्था बनाने की कोशिश की। गरीबों के घरों पर भोजन और राशन तक पहुंचाया गया लेकिन व्यवस्था नाकाफी साबित हुई। जिसके बाद समाजसेवी संगठनों ने पहल शुरू की। दानदाता बड़ी संख्या में आगे आए और गरीबों को राशन, भोजन व जरूरी सामान देने की कवायद शुरू हुई। लेकिन इनके बीच कुछ ऐसे भी आए जो गरीबों को सामान देने के बाद फोटो सेशन कराने में लगे रहे। गरीबों को सामान देने की फोटो सोशल ​मीडिया के प्लेटफार्म पर परोसते रहे। उनको प्रशंसा मिली और दानवीर की उपाधियां मिली। उनकी छाती चौड़ी होती गई और वह पूरी ताकत के साथ राशन के साथ फोटो खींचने में जुट गए। लेकिन इन सबके बीच कुछ ऐसे दानवीर भी​ निकले जो राशन देकर गायब हो गए। उन्होंने अपना नाम तक मुनासिब नही समझा। वह गरीबों की झोपड़ी पर तो पहुंचे लेकिन उनका पेट भरने का मकसद लेकर। ऐसे ही एक दानवीर गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर साहब निकले। जो रात्रि में राशन लेकर निकलते थे और गरीब के घर पर पहुंचाकर आते थे। अब क्या कहे हम प्रोफेसर साहब का नाम तो नही छाप सकते है। लेकिन यहां यह बताने की कोशिश सिर्फ इसलिए है कि गरीबों की बेबसी का मजाक ना बनाओं। वक्त बदलता है। ये मुसीबत का दौर भी टल जायेगा। दान करो पर नाम के लिए नही। अपनी पुण्य कर्म के लिए।



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