नवीन चौहान
हरिद्वार जनपद में साल 2014 में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक रहे डॉ सदानंद दाते की माता जी का कोरोना संक्रमण की बीमारी के कारण निधन हो गया। स्वावलंबी, स्वाभिमानी मां ने विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष करके बेटे सदानंद को ईमानदारी का पाठ सिखाया। बेटे सदानंद ने भी मां की उम्मीदों को पूरा किया और एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद देशसेवा का संकल्प लेकर आईपीएस बनने का सपना पूरा करने के साथ ईमानदारी की मिशाल पेश की। डॉ सदानंद दाते की ईमानदारी के चर्चे आज भी हरिद्वार में होते है तथा लोगों के जहन में तरोताजा है। न्यूज 127 डॉटकॉम अश्रुपूर्ण नेत्रों से माता जी को अपने श्रद्धासुमन अर्पित करता है। मां गंगा से उनकी आत्मा की शांति के प्रार्थना करता है।
आत्मा अजर है अमर है। ऐसी ही एक पवित्र आत्मा पृथ्वी लोक से परलोक की ओर प्रस्थान कर गई है। उत्तराखंड कैडर के साल 2007 बैंच के आईपीएस अफसर डॉ सदानंद दाते की माता जी का कोरोना संक्रमण की चपेट में आने से निधन हो गया। उन्होंने करीब 18 दिनों तक कोरोना से संघर्ष किया। वह एक निडर बहादुर महिला थी। डॉ सदानंद दाते ने मां के निधन के बाद बेहद ही गमगीन माहौल में भावुक क्षणों के बीच अपनी मां के संघर्षो को याद किया। मां जैसा दुनिया में कोई नही होता, ये बात तो सब जानते है। मां की कमी को कोई पूरा भी नही कर सकता है। मां के जाने का दुख भी असहनीय होता है। डॉ सदानंद दाते जो अपनी मां को प्यार से आक्का कहकर पुकारते थे। उनका जीवन बेहद ही कठिन संघर्षो से भरा हुआ रहा। उन्होंने जीवन में तमाम संघर्षो से डटकर मुकाबला किया। डॉ दाते ने बताया कि एक मध्यमवर्गीय परिवार के हालातों के बाबजूद माता जी ने कभी हिम्मत नही हारी। उन्होंने सदैव सभी के बारे में अच्छा सोचा और अच्छा करते हुए हम सभी चार बहन और मुझे सभी का अच्छा करने के लिए प्रेरित किया। परिवार पर आर्थिक संकट के बादल मंडराए तो माता जी ने दिन रात मेहनत की और परिवार की जिम्मेदारी को संभाला। माता जी ने खेती की दूसरों के कपड़े सिले और पिता जी की अद्धांगनी होने के कर्तव्य को निभाया। माता जी ने हमेशा शिक्षा के महत्व को समझते हुए सभी भाई बहनों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया। पढ़ाई के साथ ईमानदारी, मेहनत की कमाई, अनुशासन से जीवन जीने की कला सिखलाई। मेहनत की कमाई का महत्व अपने कर्म कर्मो से समझाया। उनके इन्ही संस्कारों की वजह से उच्च पद पर पहुंचने के बाद भी ईमानदारी से कार्य करने का हौसला कायम रहा। बेटे के अफसर बनने के बाद भी माताजी के जीवन में कोई बदलाव नही आया। बेटे से कुछ लेने की चाहत नही रही। माताजी का आशीर्वाद मिलता रहा। हम जीवन पथ पर आगे बढ़ते रहे। माताजी ने अपनी तकलीफों का कभी जिक्र नही किया और ना ही अपनी परेशानियों को बताया। एक निष्काम कर्मयोगिनी थी। डॉ सदानंद दाते ने अपनी मां के बारे में लिखते हुए बताया कि एक मध्यमवर्गीय परिवार की महिला के जीवन संघर्ष में अपनी उपलब्धियों का श्रेय शायद ही मिलता हो। लेकिन मेरे लिए आक्का आप ही हीरो हो और सदा रहेगी।
बताते चले कि आईपीएस अफसर डॉ सदानंद दाते फिलहाल इन दिनों मुंबई सीबीआई में अपनी सेवाएं दे रहे है।