गगन नामदेव
कोरोना संक्रमण की महामारी के चलते इंसान की जिंदगी पूरी तरह भंवर में फंस गई है। एक तरफ कोरोना है तो दूसरी तरफ घर है। मास्क की बंदिशे लग चुकी है। लोगों से दूरी बनाकर रखना जरूरी हो गया है। कोरोना का खौफ इंसान के दिल दिमाग पर छाने लगा है। पेट की आग घर से बाहर निकलने को मजबूर कर रही है। जेब खाली हो चुकी है। करीब तीन माह से घरों में कैद मासूम बच्चों की आंखों में खुली हवा में घुमने की चाहत दम तोड रही है। कोरोना के संक्रमण ने इंसान के जीवन को पूरी तरह से केंद्र सरकार की गाइड लाइन के अनुसार तय कर दिया है। भारत में कोरोना के मरीज लगातार बढ़ते जा रहे है। संक्रमित मरीजों के मरने का आंकड़ा भी तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में खुद को बहुत होशियार समझने वाला इंसान प्रकृति के सामने बेबस दिखाई पड़ रहा है। सरकार और प्रशासनिक अफसर इस महामारी से पार पाने की कोशिश भर कर रहे है। लेकिन इंसान प्रकृति के सामने खुद को असहज और कमजोर महसूस कर रहा है।
भारत में कोरोना संक्रमण पूरी तरह से अपना जाल फैला चुका है। दिल्ली, मुंबई में हालात बेकाबू हो चुके है। संक्रमित मरीज दम तोड़ रहे है। सरकार की तमाम व्यवस्थाएं ध्वस्त होती दिखाई पड़ रही है। भारत सरकार के कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए उठाए गए कदम भी अब कमजोर पड़ने लगे है। करीब दो माह से अधिक वक्त तक लॉक डाउन के बाद प्रवासियों को उनके घरों पर भेजने की सरकारी व्यवस्था के बाद पूरे देश में संक्रमण फैल गया। अगर उत्तराखंड की बात करें तो यहां पर करीब 1800 कोरोना संक्रमित मरीज है। जिसमें से करीब 900 ठीक हो चुके है। 20 से अधिक लोग मृत्यु को प्राप्त कर चुके हैै। संक्रमित मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। कोरोना को लेकर एक भयावह तस्वीर दे रही है। अगर अब तक की सरकारी व्यवस्था और आने वाले हालात पर गौर करे तो अभी तक जो हुआ वो प्रकृति के अधीन ही हुआ। दृढ़ इच्छा शक्ति वाले लोग स्वस्थ हो गए। जबकि कमजोर और बीमार लोग मृत्यु को प्राप्त हुए। लेकिन वर्तमान हालात पर नजर डाले तो इंसान पूरी तरह टूट चुका है। घरों में खाने का संकट होने लगा है। आवश्यक सामान को खरीदने के लिए पैंसों की तंगी है। कारोबार पूरी तरह से चौपट है। इंसान घर की तरफ मुंह घुमाता है तो परिवार की हालत देखी नही जाती। घर से बाहर निकलता है तो करने के लिए कोई काम नही है। बाजारों में पूरी तरह से सन्नाटा पसरा है। ऐसे हालात में इंसान धर्म संकट में है। जिंदगी जीने के लिए आवश्यकताओं की पूर्ति मुसीबत बन गई है। ऐसे में सवाल उठता है कि आने वाले दिन कैसे होंगे। मनुष्य को इस महामारी से निजात मिलेगी भी या नही। कोरोना महामारी को अपने जीवन का हिस्सा मानकर जीना होगा। मनुष्य के मस्तिष्क में बार—बार घूम रहे उलटे सीधे सवाल परेशान कर रहे है। कोरोना का अंत कब होगा। कब छुटकारा मिलेगा। पहले की तरह हम खुली हवा में सांस ले भी पायेंगे या नही। अगर कोरोना से जंग लंबी चली तो गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों का जीवन कैसे चलेगा। प्रकृति के सामने सिर झुका चुका इंसान कोरोना से मुकाबला करने को तो तैयार है। लेकिन आर्थिक हालात उनको कमजोर बना रहे है। फिलहाल तो मुकाबला कोरोना से ही करना है तो मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों को मानकर चलना ही बेहतर होगा। तभी हम अपने जीवन को सुरक्षित बचाकर रख पायेंगे।