नवीन चौहान
जमीन का दाखिल खारिज होना मालिक होने का कोई प्रमाण नही है। रजिस्ट्री और जमीन पर कब्जा होना ही आपके स्वामित्व का आधार होता है। मालिकाना हक का प्रमाण लेने के लिए एसडीएम कोर्ट में आवेदन करना होता या फिर सिविल कोर्ट में शूट फाइल करना पड़ेगा।
भारत पर अंग्रेजों ने कब्जा किया तो अपने कानून बना दिए। अंग्रजों को तो भारत से भगा दिया लेकिन उनके बनाए कानून आज भी लोगों के लिए मुसीबत का सबब बने हुए है। जिसके चलते लोग परेशान होते है और कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाते है। अंग्रेजों के इसी कानून को भारतीय बैंक और पुलिस भी जमीन के मालिक होने का आधार मानती चली आ रही है। जिसके चलते भ्रम की स्थिति बनी हुई है।
बताते चले कि कोई प्लाट खरीदने के बाद खरीददार जमीन का दाखिला खारिज कराने के लिए पटवारी के चक्कर लगाता है। पटवारी की मिन्नते करता है। दाखिल खारिज में नाम चढ़ जाने पर खुशियां मनाता है। लेकिन हकीकत में दाखिला खारिज भू राजस्व अधिनियम 1901 के तहत धारा 34 लागू होती है। जो कि अंग्रेज अपने जमाने में भारतीयों से कर वसूली के लिए इस कानून को लेकर आए थे। जिसके चलते वर्तमान में भ्रम की स्थिति बनी हुई है।
विदित हो कि दाखिल खारिज कभी भी भू स्वामित्व का निर्धारण नही करता है। दाखिल खारिज जमीन के मालिक होने का कोई प्रमाण है ही नही। यह तो महज राजस्व वसूली को तय करता है। जिसके नाम दाखिल खारिज होगा वही भू राजस्व की देनदारी का हकदार होगा। यह भू राजस्व वसूलने की महज एक वित्तीय प्रक्रिया है।
अगर आपको अपनी जमीन व प्लाट के स्वामित्व निर्धारण करना है तो धारा 229 बी के तहत एसडीएम कोर्ट में आवेदन करें। या फिर सिविल कोर्ट में स्वामित्व निर्धारण के लिए आवेदन करे। आपको जमीन और प्लाट का मालिकाना हक मिलेगा।