क्या सिस्टम प्रकाश पांडेय की मौत से सबक लेगा ? जानिए पूरी खबर




नवीन चौहान, हरिद्वार। नोटबंदी और जीएसटी की मार से पीड़ित बताने वाले प्रकाश पांडे ने तो दुनिया से विदाई ले ली। लेकिन उत्तराखंड की भाजपा सरकार को प्रकाश पांडे ने पूरी तरह से कठघरे में खड़ा कर दिया है। विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने प्रकाश पांडेय की मौत को सियारी रंग देते हुये भाजपा सरकार को घेरने की पूरी रणनीति बना ली हैं। जहां तहां सड़कों पर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन होने लगे हैं। कांग्रेस के पास भाजपा को घेरने के लिये बड़ा मुद्दा हाथ लग गया। उत्तराखंड में किसानों के आत्महत्या करने के बाद ये पहली घटना है कि एक टांसपोर्ट कारोबारी ने नोटबंदी और जीएसटी से परेशान होकर आत्महत्या कर ली है। लेकिन इस घटना से एक बात तो जगजाहिर हो गई कि उत्तराखंड में सामान्य जनता की आर्थिक हालात ठीक नहीं है। जीएसटी के बाद कई कारोबार पूरी तरह से बंद हो गये तो सैंकड़ों परिवार बेरोजगार हो गये। सरकार के पास जनता की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने की ओर कोई ध्यान नहीं है। आम जनता रोटी कपड़ा और मकान की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने में जूझ रही है। बेरोजगार युवा अपराध की राह पकड़ रहे है। उत्तराखंड में अपराधों में वृद्धि हुई है। जनता की आवाज उठाने वाला पत्रकारिता जगत भी बेरोजगारी की मार से अछूता नहीं रहा। छोटे मझोले, पाक्षिक अखबारों के सरकारी विज्ञापन पूरी तरह से बंद हो चुके है। ऐसे में सवाल उठता है कि बेरोजगारों के आर्थिक संकट को पूरा करने की जिम्मेदारी किसकी है ? सरकार रोजगार के साधन उपलब्ध कराने में नाकाम साबित हो रही है। राजनीति से अलग हटकर सत्ता पक्ष और विपक्ष प्रकाश पांडेय की मौत की घटना से सबक लेकर देश के युवाओं के लिये गंभीर चिंतन क्यो नहीं कर रही हैं ?
13 जनपदों के छोटे से राज्य उत्तराखंड के आर्थिक हालात तो शुरू से ही ठीक नहीं रहे। रही सही कसर उत्तराखंड सरकारों के भ्रष्टाचार ने पूरी कर दी। सत्ता की कुर्सी पर काबिज होने वाले सभी मुखिया ने सत्ता सुख का आनंद लिया। राज्य की जनता की आर्थिक स्थिति को ठीक करने के लिये कोई ठोस कदम नहीं उठाये गये। 17 सालों में हालात बद से बदत्तर हो चले। उत्तराखंड के किसान आत्महत्या करने लगे। किसानों के आत्मघाती कदम से भी राज्य की सरकारों ने कोई सबक नहीं लिया। जिसके बाद केंद्र सरकार के नोटबंदी और जीएसटी कानून आ गये। देश से भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिये इस कानून की भारत में सख्त जरूरत भी है। भारत के भ्रष्टाचारियों ने देश को पूरी तरह से खोखला बना दिया है। लेकिन इन सबसे साथ ही राज्य की सरकारों को जनता की आर्थिक स्थिति पर चिंतन करना और सर्वे कराना भी जरूरी था। राज्य के भ्रष्टाचारी कारोबार बंद करेंगे तो बेरोजगारों की स्थिति क्या होगी। उनके परिवारों का भरण पोषण कैसे होगा, इन बातों को सरकार को गंभीरता से सोचना चाहिये था। लेकिन केंद्र सरकार का नोटबंदी और जीएसटी के लिये उठाया गया कदम आम जनता के लिये आत्मघाती कदम बन गया। बेरोजगारी की मार सबसे ज्यादा मध्यम वर्गीय और उससे नीचे स्तर के सामान्य नागरिकों पर पड़ी। भ्रष्टाचारी तो सलाखों के पीछे नहीं पहुंच पाये। अलवत्ता आम आदमी मौत को गले लगाने लगाना। प्रकाश पांडे एक आम आदमी था। उसका टांसपोट का कारोबार था। उसका कारोबार चौपट हो गया था आर्थिक स्थिति खराब थी। तो सरकार को उसकी बातों को गंभीरता से सुनना और समाधान करने का रास्ता बनाना चाहिये था। आज उत्तराखंड राज्य के साथ-साथ देश में ना जा कितने परिवार प्रकाश पांडे की तरह आर्थिक संकटों का सामना कर रहे है। परिवार की सामान्य जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रहे है। ऐसे हालात में मौत को गले लगाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता है। सरकार को राजनीति से अलग हटकर एक आम आदमी के नजरिये से सोचने की जरूरत है। क्या राज्य का आम आदमी खुशहाल है। उसके पास दो वक्त की रोटी बच्चों की स्कूल फीस भरने के लिये पैंसे और बीमारी का खर्च उठाने की सामर्थ है। प्रकाश पांडे उत्तराखंड की सरकार के साथ विपक्ष के लिये भी एक बड़ा सवाल छोड़ गया है। कि मौत पर राजनीति करने की वजाय उत्तराखंड के सैंकड़ों परिवार जो आज मूलभूत जरूरतों के लिये परेशान है उनकी समस्या का समाधान करें। सरकार को जनता की पीड़ा को समझना होगा। भ्रष्टाचार को रोकना एक अलग बात है इसके लिये आम जनता की मूलभूत जरूरतों को पूरा करना युवाओं को रोजगार देना सरकार की प्राथमिकता में शुमार होना चाहिये।
पत्रकारिता जगत भी आर्थिक संकट के दौर में
जनता की आवाज उठाने वाला पत्रकारिता जगत भी आज संकट के दौर से गुजर रहा है। साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक और छोटे मंझोले दैनिक अखबार जो सरकारी विज्ञापनों के सहारे रोजगार में है। इन अखबारों में काम करने वाले तमाम छोटे बड़े कर्मचारियों का रोजगार ये अखबार ही है। आज इन परिवारों पर भी आर्थिक संकट के बादल मंडरा रहे है। सरकार को भारत के नागरिकों की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के लिये ठोस कदम उठाने की जरूरत है। नही ंतो ना जाने कितने प्रकाश पांडे यूंही ही सिस्टम पर सवाल छोड़कर दुनिया से विदाई ले लेंगे।



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