प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र का दिल्ली बुलाना अर्थात पद गया तो कद बढ़ा




नवीन चौहान
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की मुख्यमंत्री पद से विदाई के बाद उनके कद में लगातार इजाफा हुआ है। उनके आचरण में भी बदलाव हुआ है और जनता के बीच लो​कप्रियता में भी लगातार बढ़ोत्तरी हुई है।

मुख्यमंत्री पद से ह​टने के बाद त्रिवेंद्र लगातार जनता के बीच में सक्रिय है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उत्तराखंड में चुनाव में जीत दर्ज कराने जिम्मेदारी त्रिवेंद्र को दी है। स्वतंत्रता दिवस के बाद एक बार फिर त्रिवेंद्र को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली बुलाया है। उत्तराखंड के तमाम सियासी घटनाक्रम के बाद भी त्रिवेंद्र का कद ऊंचाईयों की ओर अग्रसर है। उसकी सादगी और ईमानदार कार्यशैली पीएम मोदी को भी खूब पसंद आई है।

उत्तराखंड में प्रचंड बहुमत की भाजपा सरकार आपसी गुटबाजी और सियासी दांव पेंच में उलझी। जीरो टॉलरेंस की मुहिम तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पर ही भारी गुजरी। सरकार में शामिल मंत्रिशें और विधायकों की नाराजगी त्रिवेंद्र को झेलनी पड़ी। राजनीति में शुचिता का राग अलाप रहे त्रिवेंद्र अपने ही परिवार में बेगाने साबित हुए। विपक्ष के विधायकों से ज्यादा सत्ता पक्ष के विधायकों और मंत्रियों ने पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र की फजीहत की। त्रिवेंद्र की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया और समाज में गलत संदेश दिए। तीन मंत्री पद के नही भरे जाने का पूरा ठीकरा त्रिवेंद्र के सिर माथे फोड़ा गया।

भाजपा विधायकों की नाराजगी को दरकिनार करते हुए त्रिवेंद्र सिंह रावत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के आशीर्वाद से आगे बढ़ते जा रहे थे। त्रिवेंद्र सिंह रावत अपनी सरकार के चाल साल पूरे होने के जश्न की तैयारियों में जुटे थे। बाते कम और काम ज्यादा की मुहिम जारी थी। लेकिन भाजपा विधायकों की नाराजगी और संघ परिवार की बेरूखी ने उत्तराखंड की सियासत में नेतृत्व परिवर्तन का तोहफा दिया। त्रिवेंद्र की मुख्यमंत्री पद की कुर्सी से विदाई हो गई। जिसके बाद तीरथ सिंह रावत को करीब चार महीने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का सौभाग्य मिला। उप चुनाव की अड़चन ने तीसरे मुख्यमंत्री के तौर पर पुष्कर सिंह धामी को कुर्सी पर बैठने का सौभाग्य दिया। फिलहाल पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री के रूप में राजकाज संभाल रहे है।

वहीं दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के राजनैतिक कैरियर को लेकर अटकले तेज हो गई। उनके सियासी भविष्य को लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया। विधानसभा चुनाव में उनके मैदान में उतरने और नही उतरने को लेकर भी कयास लगाए जाने लगे। अगर त्रिवेंद्र सिंह रावत की बात करें तो उन्होंने कुर्सी से उतरने के बाद जनसंपर्क की मुहिम को जारी रखा। कोरोना संक्रमण से रोकथाम के लिए अपने अलग अंदाज में कार्य शुरू किया।

युवाओं को प्रेरित कर समूचे प्रदेश में रक्तदान शिविरों का आयोजन किया। पर्यावरण के संतुलन के लिए पौंधा रोपण की मुहिम शुरू की। कुमाऊं से लेकर गढ़वाल का दौरा किया। युवाओं को भाजपा से जोड़ने और भाजपा की सत्ता वापिसी के प्रयास तेज कर दिए। एक लाख पीपल और बरगद के वृक्षों को रोकने का संकल्प लेकर निकल चले। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की तमाम मुहिम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह को भी खूब पसंद आई। युवाओं को भाजपा से जोड़ने का संकल्प एक ​अभिनव प्रयोग भी सफल होता दिखाई दिया।

संघ की पाठशाला में अनुशासन का अध्ययन कर चुके त्रिवेंद्र सिंह रावत अपने भाजपा मिशन की ओर अग्रसरित है। यही कारण है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटने के बाद भी उनके कद लगातार बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त के बाद पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को दिल्ली बुलाया है। जिसके बाद उनको यूपी चुनाव में उत्तराखंडवासियों को जोड़ने और योगी सरकार को दोबारा सत्ता में जीत दर्ज कराने जिम्मेदारी दे सकते है।

बताते चले कि त्रिवेंद्र सिंह रावत का मुख्यमंत्री बनने के बाद का चार साल का कार्यकाल पूरी तरह से बेदाग रहा। उनके ऊपर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नही रहा। जनहित के फैसले को लेकर त्रिवेंद्र अडिग रहे। देवस्थानम बोर्ड उत्तराखंड के विकास में मील का पत्थर साबित होगा। उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था को सबसे अधिक सुदृढ़ करने में देवस्थानम बोर्ड की कारगर होगा। उत्तराखंड के भविष्य में त्रिवेंद्र के कार्यकाल को सराहा जायेगा।



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