नवीन चौहान
हरिद्वार की प्रसिद्ध कवियत्री डॉ मनु शिवपुरी की दिल को छू लेने वाली कविता है। जो आत्मा को झकझोंर देने वाली है। पलकों की सुरक्षा में महफूज रहपे वाली खूबसूरत आंखों के भीतर एक बड़ा समुंदर होता है। ये समुंदर जब आंसुओं के सैलाब के रूप में छलकता है तो थामे नही थमता। एक मोती की तरह से ये आंसु आंखों से गिरते है तो अलग एहसास जगाते है। कभी खुशी तो कभी गम को बोध कराते है। आंसुओं को समर्पित डॉ मनु शिवपुरी की ये कविता श्रोताओं को आंखों की दिव्यदृष्टि के पीछे छिपे दूसरे रहस्य से अवगत करायेंगी।
- कभी सोचती हूँ कि आंखे है या दरिया है कोई,
अक्सर इसमे झरने फूट जाया करते हैं।।
जितना रोकती हूँ रुकते ही नही,
खुद के साथ ,वो मुझको भी बहा ले जाते हैं।।
ये खारे आंसू है महज- पानी तो नही,
कुछ-कुछ ज़ख्म ,मुझमे बना जाते हैं।।
बहुत चाहा कि सोख दूँ, पोंछ डालूं इनको,
मगर ये एक झील ओर मुझमे बना जाते हैं।।
सोचा कि अंखियों के,किनारे ऊँचे कर लूँ,
मगर ये सब बन्ध तोड़, फिर झर झर बह आते हैं।।
मनु शिवपुरी