हाईटेक हुआ चुनाव प्रचार, कार्यकर्ता बने प्रत्याशी और मतदाता के बीच में दीवार, सोशल मीडिया से हुआ दीदार




काजल राजपूत की रिपोर्ट.
लोकसभा चुनाव 2024 में हाईटेक तरीके से चुनाव प्रचार हुआ। प्रत्याशियों के भाषण फेसबुक, इंस्ट्राग्राम और व्हाटसएप पर सुनने को मिले। मतदाताओं को प्रत्याशियों के चेहरे भी सोशल मीडिया पर ही देखने को मिले। वोट मांगने का पारंपरिक​ तरीका भी पूरी तरह से बदला हुआ नजर आया। प्रत्याशियों के समर्थन में स्टार प्रचारकों की अपील भी हाईटेक ही नजर आई।

कुल मिलाकर कहा जाए तो प्रत्याशियों का दीदार करने को मतदाता इंतजार ही करते रह गए। जनसभाओं की अगर बात करें तो पार्टी के कार्यकर्ता भी मतदाताओं के बीच दीवार बनकर खड़े रहे। जनता से प्रत्याशियों का सीधा संवाद नही होने दिया गया। जिसके चलते कई स्थानों पर जनता की मायूसी भी देखने को मिली।

भारत में लोकतंत्र का सबसे बड़ा पर्व लोकसभा चुनाव होता है। लोकसभा के सामान्य निर्वाचन में जनता अपना मत देकर अपनी पसंद का सांसद चुनती है। निर्वाचित सांसद पांच सालों तक लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व दिल्ली की संसद में करता है। लोकसभा चुनाव 2024 के लिए 19 अप्रैल 2024 को मतदान हुआ।

मतदान से पूर्व लोकसभा क्षेत्रों में खूब चुनाव प्रचार हुआ। लेकिन यह चुनाव प्रचार घर—घर जाकर वोट मांगने का नही हुआ। इसके रोड़ शो, जनसभाएं हुई और सोशल मीडिया के माध्यम से जनता तक पहुंंचाने का प्रयास किया गया। चुनाव प्रचार बेहद ही हाईटेक हुआ। प्रत्याशी अपनी पार्टी, संगठन और कार्यकर्ताओं तक सीमित रहे। रोड़ शो और जनसभाओं में भी मतदाताओं और प्रत्याशियों के बीच बड़ी लंबी दूरी दिखाई दी।

प्रत्याशी और मतदाता के बीच की इस दूरी को बढ़ाने का कार्य भी कार्यकर्ताओं ने किया। प्रत्याशी के साथ अपनी फोटो सोशल मीडिया पर लाने के लिए कार्यकर्ता दीवार की भांति बीच में खड़े तने रहे। यही कारण रहा कि मतदाता कार्यक्रम स्थल पर आने के बाद भी अपने प्रत्याशी को ठीक से देख और सुन ना सकें। जिसके चलते प्रत्याशी मतदाताओं पर अपना प्रभाव छोड़ने में पूरी तरह से कामयाब नही हो सकें।

हालांकि लोकसभा चुनाव में बड़ा क्षेत्र होता है। प्रत्याशी का वोटरों के घरों तक पहुंचना संभव नहीं होता। लेकिन कार्यक्रम स्थल पर मतदाताओं का पहुंचना यह संकेत है कि वह प्रत्याशी को देखने, सुनने और समझने आई है। कार्यक्रम स्थल से मतदाता को मिला अनुभव ही वोट का आधार होता है। लेकिन उत्तराखंड के लोकसभा चुनाव में कम मत प्रतिशत के पीछे की एक वजह प्रत्याशियों का दीदार नहीं करना भी माना जा सकता है।



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