पुलिस रिश्वतखोर और पटवारी पर भ्रष्टाचार के आरोप, जानिए पूरी खबर





नवीन चौहान
पुलिस रिश्वतखोर है। पटवारी दाखिल खारिज के नाम पर अवैध वसूली करता है। चिकित्सक मेडिकल प्रमाण पत्र बनाने के नाम पर पैंसे वसूलते है। बिना रिश्वत के सरकारी सिस्टम में कोई काम नही होता। पूरा का पूरा सरकारी तंत्र भ्रष्ट है। मोदी सरकार में भी भ्रष्टाचार कम नही किया। त्रिवेंद्र सिंह रावत की जीरो टॉलरेंस की मुहिम हवा— हवाई है।………….
कुछ ऐसी आवाजे जनता के बीच अक्सर सुनाई देती है। उत्तराखंड में आज भी भ्रष्टाचार की बेल ऊंची चढ़ रही है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भ्रष्टाचार को कम करने में नाकाम साबित हुए है। ऐसी ही आवाज जनता के बीच से अक्सर सुनाई देती है।…….. लेकिन यह बात सौलह आने सच नहीं है। मित्र पुलिस संवेदनशील है। पुलिसकर्मियों के आचरण में ईमानदारी झलकती है। हरिद्वार के उप जिलाधिकारी गोपाल सिंह चौहान मानवीय संवेदनाओं से परिपू​र्ण होकर जनहित के कार्यो को ईमानदारी से पूरा कर रहे है। जबकि हरिद्वार में कर्तव्यनिष्ठ जिलाधिकारी सी रविशंकर ने ईमानदारी से कार्य करने की मिशाल पेश करके एक बड़ी लकीर खड़ी कर दी है। जिसका छोटा करना शायद ही मुमकिन हो। ईमानदार जिलाधिकारी सी रविशंकर ने एक साल के कार्यकाल में सरकारी कार्यक्रमों में कभी एक कप चाय तक नही पी। गरीब जनता की सेवा करने की प्रबल आत्मिक इच्छा शक्ति और भ्रष्टाचारियों पर कड़ा प्रहार करने का दृढ़ संकल्प उनको विशेष अफसर बनाता हैं।
भ्रष्टाचार शब्द को ही सही मायने में समझने की जरूरत है। सभी प्रशासनिक अधिकारी, कर्मचारी भ्रष्ट नहीं होते है। ईमानदारी इंसान के चरित्र होती है। लेकिन भ्रष्टाचार शब्द को समझने की जरूरत है। भ्रष्ट है जिसका आचार। अर्थात जो व्यक्ति अपने कार्य के अनुरूप आचरण नही करता है। जो अधिकारी, कर्मचारी अपने कर्तव्य का उचित तरीके से निर्वहन नहीं करता है। वह भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है। रिश्वत लेना और देना दोनों की अपराध की श्रेणी में आते है। रिश्वत लेना और देना व्यक्ति के निजी चरित्र का मामला होता है। वह व्यक्ति जो रिश्वत देने की पेशकश करता है। उस व्यक्ति की मंशा को भी समझने की जरूरत है। क्या वह व्यक्ति गलत कार्य को अपने अनुरूप कराने की एवज में चंद कागज के टुकड़े देकर अधिकारी का जमीर खरीदना चाहता है। इसलिए रिश्वत देने की पेशकश कर रहा है। अधिकतम मामलों में रिश्वत वही देते है जो अपने गलत कार्य को अपने अनुरूप कराना चाहते है। एक बार सरकारी अधिकारी व कर्मचारी को रिश्वत दे दी गई तो दोनों के बीच रिश्ता मजबूत हो आता है। जिसके बाद निकट भविष्य में डील करने के लिए आगे का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। दोनों ही पक्ष आपसी सहमति से रिश्वत का लेनदेन करते है। जिसको पकड़ना नामुमकिन होता है। रिश्वत देने वाला यही व्यक्ति कुछ वक्त बाद सिस्टम को भ्रष्ट होने की बात करता है। अधिकारियों को रिश्वतखोर बोलने लगता है। लेकिन यह व्यक्ति चंद कागज के टुकड़े देकर अपना कितना फायदा करता है। यह बात कभी नही बताता।
अब बात करते है कि पुलिस विभाग की। पुलिस के जवान दिन रात जनता की सेवा, सुरक्षा और व्यवस्था के लिए डयूटी करते है। इस कार्य के लिए पुलिसकर्मियों को सरकार से बाकायदा वेतन मिलता है। पुलिस की वर्दी पहनते वक्त जवान ईमानदारी से कार्य करने की शपथ लेता है। पुलिसकर्मी अपनी वर्दी के सम्मान के लिए कार्य भी करता है। लेकिन पुलिस डयूटी करने के कुछ वक्त बाद ही उस जवान के आचरण में एकाएक बदलाव आ जाता है। सरकारी डयूटी करने के दौरान उसको बहुत कार्य अपने वेतन से खर्च करके पूरे करने पड़ते है। इसको भी समझने की जरूरत है। एक व्यक्ति के साथ ठगी हो गई। पीड़ित ने पुलिस थाने जाकर एफआईआर दर्ज करा दी। पुलिस ने विवेचना शुरू की। अपराधी दिल्ली में बैठा है। पुलिसकर्मी को अपराधी दबोचने दिल्ली जाना है। अब पुलिसकर्मी दिल्ली कैसे जायेगा। पीड़ित व्यक्ति अगर पैंसे वाला है तो वह पुलिसकर्मी को वाहन दे देंगा। लेकिन अगर पीड़ित गरीब है तो पुलिसकर्मी दिल्ली कैसे जायेगा। पुलिस किसी सामाजिक व्यक्ति की मदद से वाहन की व्यवस्था करेगा और दिल्ली जाकर अपराधी पकड़ेगा। पुलिसकर्मी रात्रि गश्त करने के लिए अपनी बाइक लेकर घूमता है। पुलिस थानों में पर्याप्त मात्रा में बाइक नही है। पुलिसकर्मी गश्त के लिए पैट्रोल भी अपने खर्च से ही पूर्ति करता है। पुलिस को कानून का अनुपालन कराना है। ऐसे में पुलिस को अपने आचरण को ईमानदार रखते हुए कार्य करना एक बड़ी चुनौती है। पुलिसकर्मी थाने में पहुंचने वाले बहुत मामलों में गरीबों की मदद करती है। किसी पीड़ित को भोजन, राशन और उसके घर तक भेजती है। पुलिस पब्लिक डीलिंग में रहने के दौरान हर दिन एक नई समस्या जन्म लेकर थाने पहुंचती है। जिनको पुलिसकर्मी अपने मानवीय संवेदनाओं से सुलझाते है। ऐसे में पुलिस को भ्रष्टाचारी और रिश्वतखोर बोलना बिलकुल भी उचित नही है। लेकिन अगर पुलिसकर्मी किसी व्यक्ति को जांच में फायदा पहुंचाने के लिए पैंसों की मांग करता है तो वह भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है। पुलिसकर्मी की निष्पक्ष विवेचना ही उसकी ईमानदारी का सबसे बड़ा प्रमाण है। अगर वह किसी स्वार्थ से बशीभूत होकर जांच रिपोर्ट देता है तो भ्रष्टाचार ही कहा जायेगा। कुछ ऐसा ही हाल लेखपालों का है। लेखपाल दाखिल खारिज के नाम पर पैंसे लेने की बात अक्सर सुनी जाती है। लेकिन पर्दे के पीछे का एक सच यह भी है कि लेखपाल को तमाम बेगारी के कार्य करने पड़ते है। हो सकता है कि लेखपाल खुद ही पीड़ित हो। यदि वास्तव में लेखपाल उत्पीड़न कर रहा है तो कितने लोगों ने शिकायत उच्चाधिकारियों को की। कितने लोग लेखपाल की शिकायत लेकर जिलाधिकारी कार्यालय पहुंचे। लेकिन कोई पीड़ित शिकायत लेकर जिलाधिकारी कार्यालय नही पहुंचता है। चिकित्सक को मेडिकल प्रमाण पत्र बनाने की एवज में पेशकश वही व्यक्ति करता है, जिसको अपनी जरूरत के अनुरूप मेडिकल बनबाना है। अगर हरिद्वार जनपद में बीते एक साल के दौरान प्रशासनिक कार्रवाई की बात करें तो जिलाधिकारी सी रविशंकर ने भ्रष्टाचार संबंधी मामलों से जबरदस्त कार्रवाई की। जिस किसी भी अधिकारी कर्मचारी की शिकायत मिली उसकी जांच कराई और कार्रवाई हुई। हरिद्वार में पीसीएस स्तर के अधिकारी तक जांच में फंसे। जबकि तमाम अधिकारियों और कर्मचारियों की जांच चल रही है। ऐसे में उन सभी लोगों को अपने आचरण के बारे में सोचना चाहिए जो सरकारी अधिकारियों को उनके कर्तव्य से विमुख करने का प्रयास करते है। जो अपने मंसूबे पूरे करने की खातिर अधिकारियों को भ्रष्ट बनाने की कोशिश में जुटे रहते है।
पाप और पुण्य के बीच के अंतर को समझने वाला व्यक्ति कभी भी भ्रष्टाचारी नहीं हो सकता है।



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