अखाड़ों की सम्पत्ति बन रही संतो की जान की दुश्मन, जानिए पूरी खबर




नवीन चौहान,

हरिद्वार। अखाड़ों के बीच सम्पत्ति विवाद कोई नया नहीं है। सम्पत्ति को लेकर अभी तक दर्जनों संतों की हत्या तक की जा चुकी है। बावजूद इसके संतो के बीच सम्पत्ति संग्रह करने का काम रूकने का नाम नहीं ले रहा है। निरंजनी अखाड़े में दो संतो के बीच जो विवाद सामने आया है उसमें भी एक महंत ने दूसरे पर सम्पत्ति के कारण बंधक बनाने का आरोप लगाया है। बता दें कि निरंजनी अखाड़े के महंत रामानंदपुरी ने रविवार को एडीजी काननू व्यवस्था अशोक कुमार को पत्र देकर अखाड़े के ही संत रविन्द्रपुरी पर सम्पत्ति हड़पने की लालसा में बंधक बनाने व फर्जी त्यागपत्र तैयार कर उनके स्थान पर कई संस्थाओं में पद हड़पने का आरोप लगाते हुए जानमाल की सुरक्षा की गुहार लगाई। देहरादून में पत्रकारों से वार्ता करते हुए उन्होंने और भी कई गंभीर आरोप लगाए। उनका कहना था कि हरिद्वार स्थित उनके रामानंद इंस्टीट्यूट की सम्पत्ति करीब 100 करोड़ की है। जिस कारण महंत रविन्द्रपुरी ने ऐसा कृत्य किया। बता दें कि महंत रामानंद पुरी काफी समय से हरिद्वार से नदारत थे। चर्चा थी कि वह काफी बीमार हैं और उनका इलाहाबाद में उपचार चल रहा है। इस बात का खुलासा अब जाकर हुआ। बता दें कि विगत माह हरिद्वार में अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरि महाराज की उपस्थिति में निरंजनी अखाड़े में परिषद की बैठक हुई थी। जिसमें महंत रामानंदपुरी मौजूद थे। उस समय ऐसी किसी भी बात का उन्होंने न तो संत समाज में और न ही अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष के समक्ष जिक्र तक नहीं किया। सवाल यह कि जिस सौ करोड़ रुपये की सम्पत्ति की बात महंत रामानंदपुरी कर रहे हैं वह सौ करोड़ की सम्पत्ति उनके पास कहां से आई और जो अन्य संतो के पास अकूत सम्पदा है, वह संतों के पास कहां से आती है। इसका आज तक न तो सरकार ने और न ही आयकर विभाग ने कोई संज्ञान लिया।
वहीं विवाद की असली वजह महंत रामानंदपुरी की सम्पत्ति ही है। सूत्र बताते हैं कि महंत रामानंद पुरी ने अपनी सम्पत्ति एक अखाड़े के महंत के नाम कर दी थी। जिसका पता लगने पर अखाड़े के संतों में हलचल मच गई। उस सम्पत्ति को वापस पाने के लिए कई तरह के हथकंड़े अपनाए गए। सूत्र बताते हैं कि महंत रामानंद पुरी की बीमारी का बहाना भी उसी साजिश का हिस्सा था।
सूत्रों के मुताबिक रामांनदपुरी इस घटना से बुरी तरह से डर गए थे। जब यह बात उनके इष्ट मित्रों को पता चली तो उन्हें आत्मबल मिला और मित्रों के साथ कुछ नेताओं ने भी महंत रामानपंदपुरी की पीठ पर हाथ रखा और उन्हें न्याय के लिए गुहार लगाने के लिए कानून का सहारा लेने के लिए प्रेरित किया। जब इस संबंध में महंत रामानंदपुरी महाराज से बात करने की कोशिश की गई तो उनका मोबाइल बंद आया।



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *