समाज को मसीहा नहीं इंसान की जरूरत, जानिए पूरी खबर




नवीन चौहान, हरिद्वार। सोशल मीडिया के दौर में आज हर दूसरा आदमी खुद को मसीहा बनने में तुला है। कंबल बांटने की फोटो, सड़क पर मिले पर्स को उसके मालिक को लौटाने की फोटो, सर्दी में गरीबों को अलाव जलाने के लिये लकड़ियां देने की फोटो सोशल मीडिया पर साफ तौर पर देखी जा सकती है। कहते है कि तस्वीरे झूठ नहीं बोलती है। ये तस्वीरे भी चीख-चीखकर इंसान से मसीहा बनने की सच्चाई खुद ही बयान कर रही है। आज समाज को मसीहा की नहीं इंसान की जरूरत है। वो इंसान तो दूसरे इंसान का दर्द समझ सके। उस दर्द को दूर करने का प्रयास करें। जब मदद करें तो दूसरे हाथ को भी पता ना चलें। लेकिन कुछ लोग तो मदद करके खुद ही मसीहा बनने की कहानी लिख रहे हैं।
ऋषि मुनियों की परंपरा और राजा महाराजा वाले भारत देश की पहचान संस्कृति और संस्कारों से है। जिसके मूल में इंसानियत छिपी हैं। कहते है कि राजा भेष बदलकर रात्रि में अपनी प्रजा की स्थिति जानने के लिये निकलता था। इस बात का पता वो राजमहल में किसी को नहीं देता था। प्रजा के पास जिस किसी चीज की कमीं होती थी राजा उसे पूरी कर देता था। जिससे राजा को आत्मिक सुख मिलता था और प्रजा सुखी रहती थी। लेकिन दौर बदल गया। राजा महाराजा की जगह सरकारों ने ले ली। सरकारों के मुखिया राजकाज के कायों में व्यस्त हो गये। अपनी सत्ता सुख के आनंद में इतने बिजी हो गये कि जनता की सुध लेने का समय चुनावों के दौरान ही मिल पाता है। देश में गरीबी और बेरोजगारी हावी होने लगी। गरीबी इस कदर आई कि देश की जनता को मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने में दिक्कत होने लगी। इस बात की तस्दीक रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, और भारत की सड़कों पर रात गुजारने वाले लोगों को देखकर लगाया जा सकता है। इन लोगों पर कभी देश की सरकार और प्रशासन का ध्यान नहीं जाता है। कभी कोई सड़कों पर रात गुजारने की हकीकत समझने की कोशिश नहीं करता है। सड़कों पर रात गुजारने वाले भारत के यही वो लोग है जो कुछ लोगों को मसीहा बनाते है। इन लोगों को सामान देने वाले व्यक्ति आगे बढ़कर मदद तो करते है लेकिन खुद को इनका मसीहा भी साबित करते है। इसे विडंबना ही कहेंगे कि सरकारी अधिकारी जिनकी ड्यूटी इन लोगों की सुरक्षा और व्यवस्था करने में लगी है वो भी खुद को मसीहा साबित करने में जुट गये है। जबकि वास्तविकता में समाज को मसीहा की नहीं इंसान की जरूरत है जो इन गरीबों का हक सरकार से दिला सकें। सरकार के पास गरीबों की व्यवस्था करने के लिये पूरा बजट है तो फिर मनुष्य के भीतर का इंसान कहां सो गया है। समाज को जरूरत है शरीर के भीतर छिपे इंसान को जगाने की। जो मदद करने के लिये हाथ तो बढ़ाये पर वो बात किसी को ना बताये। बस अपने दिल में समाकर रखे। मदद करने की वो खुशी आपको दिल की गहराई तक आनंद की अनुभूति का आभास करायेंगी।



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