हरिद्वार के लालढांग में आदिवासियों को स्वावलंबी बनाने वाली श्रुति लखेड़ा




उत्तराखंड की बेटी श्रुति लखेड़ा के पहाड़ से मजबूत इरादे, आदिवासियों को बना रही स्वावलंबी
नवीन चौहान
उत्तराखंड की बेटी श्रुति लखेड़ा के पहाड़ से भी मजबूत इरादे है। वह धरती का सीना चीरकर पानी निकालने की कुव्वत रखती है। ऐसे ही बुलंद हौसले और जुनून के साथ वह आदिवासियों को स्वावलंबी बनाने में जुटी है। श्रुति एअर कंडीशन का कमरा छोड़कर शरीर को झुलसा देने वाली धूप, बारिश, आंधी और तूफान में आदिवासियों के बीच में अपनी जिंदगी बिता रही है और उनको आगे बढ़ाने का गुर सिखा रही है। आदिवासियों को वन संसाधनों की उपयोगिता बता रही है। जंगल से निकलने वाली चीजों को उपयोगी बनाकर आदिवासियों को स्वावलंबी बना रही है।
उत्तराखंड की बेटी श्रुति लखेड़ा का जन्म एक शिक्षक परिवार में हुआ। पिता वाचस्पति लखेड़ा देहरादून के गुरू रामराय एजूकेशन मिशन स्कूल में बतौर शिक्षक और प्रधानाचार्य रहे तथा मां शकुंतला लखेड़ा हरिद्वार डीएवी सेंटेनरी पब्लिक स्कूल में शिक्षिका रही। शिक्षक माता—पिता के संस्कारों ने श्रुति लखेड़ा को मेहनती और कर्मठशील बना दिया। बेटों की तरह पली बढ़ी श्रुति को माता—पिता ने पढ़ने, लिखने, खेलने, कूदने और तमाम इच्छाओं को पूरी करने की आजादी दी लेकिन अपने संस्कारों को कभी ना भूलने की नसीहत भी दी। श्रुुति ने स्कूल के दिनों से मेडल जीतने और प्रथम श्रेणी हासिल करने का जज्बा पैदा कर लिया। श्रुति ने अपनी पढ़ाई राजा राम मोहन राय,एकेडमी केंद्रित स्कूल, देहरादून से की उनके बाद बीए, एलएलबी आनर्स किया। हस्तशिल्प कला में विशेष दक्षता हासिल की। इसी दौरान साल 2007 में यूपी के मेरठ के एक सैन्य परिवार में अतुल त्यागी से उनका विवाह हो गया। अतुल आर्मी में लेफ्टिनेंट कर्नल के पद पर कार्यरत है। विवाह के बंधन में पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए श्रुति ने एक बेटा और एक बेटी को जन्म दिया। दोनों बच्चों को शिक्षा और संस्कारों का ज्ञान देना शुरू कर दिया। लेकिन आर्मी की इस आलीशान जिंदगी में श्रुति का मन नही लगा। मिसेज त्यागी बनकर खुद को साबित करने का जज्बा उनको घर में बैठने नही दे रहा था।

पति के साथ जिन राज्यों में रही वहां पर हस्तशिल्प कला के बारे में जानने, सीखने और सिखाने में लग गई। श्रुति ने आसाम, महाराष्ट्र, राजस्थान, मणिपुर, जम्मु कश्मीर में हैंडलूम के बारे में बारीकी से अध्ययन किया। लेकिन श्रुति का मन तो अपने उत्तराखंडियों को स्वावलंबी बनाने का था। पहाड़ के लोग रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे थे। इस बात की तड़प श्रुति को परेशान करती थी। तो एक दिन श्रुति ने अपने दिल की बात पति कर्नल अतुल त्यागी को बताई। श्रुति ने कहा कि कुछ करने की इच्छा है। तो कर्नल पति अतुल त्यागी बोले मेरे से क्या मदद चाहिए। जो करना अच्छे से करना। श्रुति ने पति अतुल त्यागी से मदद लेने से साफ इंकार कर दिया। जिसके बाद श्रुति अपनी मामूली जमा पूंजी लेकर हरिद्वार जनपद के लालढ़ांग इलाके में आ गई। पिता वाचस्पति लखेड़ा और मां शकुंतला रिटारमेंट के बाद लालढांग में ही एक जमीन का टुकड़ा लेकर गरीब बच्चों को शिक्षित करने का कार्य कर रहे थे। लेकिन श्रुति ने अपने मिशन को पूरा करने के लिए पति और पिता से प्रोत्साहन लिया लेेकिन आर्थि​क सहयोग लेने से इंकार कर दिया।
श्रुति साल 2017 में पहुंची लालढांग
साल 2017 में अपनी जमा पूंजी के पांच हजार रूपये लेकर लालढांग में आदिवासियों के बीच पहुंची श्रुति ने किराए का कमरा लिया और आदिवासियों की मदद से एक दुकानदार से उधार में एक पलंग लिया। जिसके बाद श्रुति ने कभी पलटकर नही देखा। श्रुति ने आदिवासी महिलाओं के समूह बनाए और उनकी समस्याओं को सुना। उनको स्वावलंबी बनाने के लिए प्रशिक्षण देने के लिए तैयार किया। करीब 25 महिलाओं के एक समूह को प्रशिक्षण दिया और हैंडीक्राफ्ट का सामान तैयार करने का तरीका सिखा दिया। महिलाएं निपुण हो गई। पांच जून पर्यावरण दिवस के अवसर पर एक प्रदर्शनी में श्रुति लखेड़ा की टीम ने अपने हैंडीक्राफ्ट के उत्पादन को प्रस्तुत किया और सभी ने सराहा।
डीएम दीपक रावत का योगदान
हरिद्वार जिलाधिकारी दीपक रावत ने श्रुति लखेड़ा को जिला महिला कौशल विकास के माध्यम से हैंडीक्राफ्ट के लिए तीन लाख रूपये का सहयोग किया। इस राशि का उपयोग हैंडीक्राफ्ट का सामान बनाने में किया गया। श्रुति ने तीन लाख की राशि से सामान बनाकर करीब साढ़े पांच लाख रूपये सरकार के खजाने में वापिस लौटा दिए। श्रुति की ईमानदारी, मेहनत और लगन का नतीजा ही रहा कि पिछड़े इलाके लालढांग के आदिवासी परिवारों के बीच श्रुति उनका अभिन्न अंग बन गई है।
श्रुति के उल्लेखनीय कार्य जो वर्तमान में जारी
उत्तराखंड की बेटी श्रुति लखेड़ा ने वैसे तो कई उल्लेखनीय कार्य किए है। लेकिन वर्तमान में वह वन गुर्जरों को जंगल के पेड़ों से गिरने वाले पत्तों से पत्तल बनाने का कार्य करा रही है। पत्तलों को बेचकर आदिवासी अपनी आजीविका चला रहे है। वही दूसरी और नेचुरल फाइबर प्रोडक्ट को तैयार करने का कार्य भी किया जा रहा है। जिसमें मेट,चप्पल, कारपेट, बैंग,कपड़ों के बैंग इत्यादि बनाये जा रहे है। जैविक हल्दी के उत्पादन के लिए खेती शुरू करा दी है। कम भूमि में जैविक खेती का उत्पादन कर अच्छी कमाई की जा सकती है। बगड़, मंडुआ का उत्पादन आदिवासियों को शुरू करा दिया गया है। इसके अलावा मधुमक्खी पालन की दिशा में भी कार्य जारी है।
हर महिला हस्त शिल्प
श्रुति लखेड़ा का मानना है कि हर महिला हस्त शिल्प है। लेकिन बस उनको समझ नही होती। महिलाओं की काबलियत को कम आंका जाता है। जबकि ऐसा नही है। महिलाएं अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति से असंभव कार्य को भी संभव कर सकती है। उन्होंने बताया कि लालढांग अति पिछड़ा इलाका है। जहां के लोग उत्साही, लगनशील और मेहनती है। लेकिन संसाधनों के अभाव के चलते वह कुछ कर नही पाते। उन्होंने बताया कि वह अपने मिशन को पूरा करने में जुटी है। यहां के सभी लोग मेरा परिवार है।



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