सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों का ऐतहासिक फैसला, जिसकों पूरे हिंदुस्तान ने सुना




सोनी चौहान
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों का ऐतिहासिक फैसला 9 नवंबर 2019 को आया। पूरा भारत इस फैसले का इंतजार कर रहा था। जैसे ही फैसले की घड़ी आई सभी ने मीडिया की खबरों का इंतजार करना शुरू कर दिया। ये फैसला राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के विवाद को लेकर था। लेकिन सबसे बड़ी इस फैसले ये पूर्व अयोध्या विवाद की सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच पर पूरे देश की निगाहे टकटकी लगाए देख रही है। इस बेंच में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर हैं। इन जजों के बारे में भी सभी को जानने का पूरा हक है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई-
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई का जन्म 18 नवंबर 1954 को हुआ। साल 1978 में इन्होंने बार काउंसिल की सदस्यता ग्रहण की। जिसके बाद इनका अधिकांश समय गुवाहाटी हाईकोर्ट में वकालत करने में बीता। साल 2001 की 28 फरवरी को गुवाहाटी हाईकोर्ट में उनकी नियुक्ति स्थायी जज के रूप में हुई। जिसके बाद 9 सितंबर 2010 को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में इनका स्थानांतरण हो गया। साल 2011 के 12 फरवरी को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त हुए। जिसके बाद 23 अप्रैल 2012 को रंजन गोगोई सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त हुए। 03 अक्तूबर 2018 को देश के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त हुए। रंजन गोगोई की मां गंगा पर पूरी आस्था है। इसी के चलते बीते दिनों वह हरिद्वार आए और उन्होंने मां गंगा की पूजा अर्चन की थी। बेहद ही सरल स्वभाव के रंजन गोगोई ने एक ऐतिहासिक फैसले का निर्णय सुनाया। बताते चले कि 15 नवंबर 2019 को वह सेवानिवृत्त होंगे।

न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोब्डे-
इस ऐतिहासिक फैसले के दूसरे जज न्यायमर्ति शरद अरविंद बोब्डे का जन्म 24 अप्रैल 1956 को नागपुर में हुआ था। इन्होनें नागपुर के विश्वविद्यालय से बी.ए. और एलएलबी किया। साल 1978 में इन्होने महाराष्ट्र की बार काउंसिल की सदस्यता ग्रहण की। ये ​करीब 21 वर्षों तक बंबई हाईकोर्ट में रहे। और इसके बाद इन्होनें नागपुर पीठ और सुप्रीम कोर्ट में वकालत की। साल 1998 में इन्होने वरिष्ठ अधिवक्ता की उपाधि ग्रहण की। साल 2000 के 29 मार्च को इनकी नियुक्ति एक बार फिर बंबई हाईकोर्ट की पीठ में अतिरिक्त जज के रूप में हुई। साल 2012 के 16 अक्तूबर को मध्य हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त के रूप में हुई। साल 2013 के 12 अप्रैल को इनकी नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश के रूप मे हुई। न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोब्ड जी 23 अप्रैल 2021 को सेवानिवृत्त होंगे।

न्यायमूर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़-
इस ऐतिहासिक फैसले के तीसरे जज न्यायमर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ का जन्म 11 नवंबर 1959 को हुआ था। इन्होने बी.ए. नई दिल्ली के सेंट स्टेफंस कॉलेज से किया और एलएलबी दिल्ली विश्वविद्यालय से किया। अमेरिका के हार्वर्ड लॉ स्कूल से जूडिशियल साइंसेंज में इन्होने एलएलएम और डॉक्टरेट किया। दुनिया भर के विभिन्न विश्वविद्यालयों में व्याख्यान, विजिटिंड प्रोफेसर बनें। साल 1998 के जून में इन्होेंने बंबई के हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में वकालत की। साल 1998 में इन्होने अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल​ किया। साल 2000 के 29 मार्च को इनकी नियुक्ति बंबई हाईकोर्ट में जज के रूप में हुई। साल 2013 के 31 अक्टूबर को इनकी नियुक्ति इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश के रूप में ​हुई। साल 2016 के 13 मई को इनकी नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट में जज के रूप में हुई। बताते चले कि न्यायमर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ का 10 नवंबर 2024 को सेवानिवृत्ति हो जायेगें।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण-
इस ऐतिहासिक फैसले के चौथे जज न्यायमर्ति अशोक भूषण का जन्म 5 जुलाई 1956 को हुआ था। साल 1975 में बैचलर ऑफ आर्ट्स से ग्रेजुएशन किया और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से
इन्होने साल 1979 में लॉ पूरा किया। साल 1979 के 6 अप्रैल को इन्होंने बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश में इन्होने वकालत की। साल 2001 के 24 अप्रैल को इलाहाबाद हाई कोर्ट के स्थायी न्यायाधीश के रूप में उच्चतर न्यायिक सेवा समिति के अध्यक्ष बने। इन्होने साल 2014 के 10 जुलाई को केरल के हाई कोर्ट के न्यायाधीश बने। साल 2014 के 1 अगस्त को मुख्य न्यायाधीश का कार्यभार संभाला। साल 2015 के 26 मार्च को मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति हुई। साल 2016 के 13 मई को इन्होने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश नियुक्त किये गये।

न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर-
इस ऐतिहासिक फैसले के पांचवे जज न्यायमर्ति एस अब्दुल नजीर का जन्म 5 जनवरी 1958 में हुआ था। बी.कॉम की डिग्री मुडेबिद्री के महावीर कॉलेज से प्राप्त की और लॉ की डिग्री एसडीएम लॉ कॉलेज, कोडियालबेल, मंगलुरु से प्राप्त की। साल 1983 में इन्होने वकालत की शुरूआत बेंगलुरु में कर्नाटक उच्च न्यायालय से की। मई 2003 में ये कर्नाटक हाई कोर्ट के न्यायाधीश नियुक्त किये गये। उसके बाद इन्हे उन्हें कर्नाटक का ही स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
साल 2017 के फरवरी माह में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप मे नियुक्त किये गये।



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