नवीन चौहान,
हरिद्वार। उत्तराखंड सरकार का रवैया निजी स्कूलों के प्रति नरम पड़ता दिखाई नहीं पड़ रहा है। यहीं कारण है कि निजी स्कूल के सामने स्कूलों को चलाकर रखने का संकट खड़ा हो गया है। स्कूल संचालकों के दिमाग में एक ही बात घूम रही कि आखिरकार स्कूल चलेंगे कैसे। बच्चों से फीस लेने में सरकार स्कूल संचालकों के हाथ बांध रही है। जबकि एनुएल चार्ज पर भ्रम की स्थिति बनीं हुई है। ऐसे में निजी स्कूलों में काम करने वाले हजारों शिक्षकों और कर्मचारियों पर बेरोजगार होने का खतरा मंडराने लगा है। सूत्रों से जानकारी मिली है कि कुछ निजी स्कूल सरकार के सख्त नियमों को देखते हुये नये सत्र से स्कूलों को संचालित करने में कोई रूचि नहीं दिखा रहे है। संभावना है कि वह स्कूलों को बंद कर दें।
उत्तराखंड सरकार निजी स्कूलों की मनमानी को रोकने की दिशा में कारगर कदम उठा रही है। सरकार अभिभावकों का हित देखते हुये ठोस नीति बनाने का दंभ भर रही है। सरकार की नीति पूरी तरह से पारदर्शी है। इस बात में कोई संशय भी नहीं है। सरकार की इस नीति में अभिभावकों के हितों का पूरा ध्यान रखा गया है। जबकि निजी स्कूल संचालकों की पूरी तरह से अनदेखी की गई है। सरकार ने निजी स्कूलों चलेंगे किस प्रकार इस बात पर गंभीरता से कोई विचार नहीं किया है। पूर्व के सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो निजी स्कूलों में आरटीई के कराये गये एडमिशन का भी सरकार की ओर से कोई भुगतान नहीं किया गया। उत्तराखंड में संचालित होने वाले अधिकतम स्कूल बिना सरकारी सहायता के चलते है। ये निजी स्कूल अभिभावकों से मिलने वाली ट्यूशन फीस पर ही पूरी तरह से निर्भर होते है। स्कूल में कार्य करने वाले हजारों लोगों का वेतन और स्कूल खर्च इस फीस से पूरा होता है। अरबों की रकम निवेश करने वाले निजी स्कूल संचालक पूरी तरह से सरकार के हाथों की कठपुतली बन गये है। निजी स्कूल ना तो फीस और ना ही कोई अन्य आमदनी के स्रोत्र के इन स्कूलों को किस प्रकार चलायेंगे इस बात को लेकर परेशान है। बताते चले कि पूर्व की कांग्रेस सरकार के मुखिया हरीश रावत ने भी निजी स्कूलों की मनमर्जी को रोकने के लिये एक ड्राफ्ट तैयार किया था। इस ड्राफ्ट में अभिभावकों और निजी स्कूलों दोनों का संतुलन बनाया था। जिससे स्कूल भी संचालित हो और अभिभावकों को भी भारी भरकम फीस में कटौती का लाभ मिल सके। ऐसे में वर्तमान में सरकार के मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत के शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय का नया ड्राफ्ट निजी स्कूलों के लिये खतरे की घंटी बन गया है। अगर प्रदेश के निजी स्कूल बंद होते है तो हजारों कर्मचारी बेरोजगार हो जायेंगे और बच्चों के लिये स्कूलों का संकट खड़ा हो जायेगा।