नवीन चौहान
केंद्र की मोदी सरकार युवाओं को रोजगार देने में नाकाम साबित हो रही है। सरकारी सिस्टम में भ्रष्टाचार जस का तस बना हुआ है। सरकारी विभागों में नौकरियों का संकट है। प्राइवेट सिस्टम बुरी तरह फेल हो रहा है। प्राइवेट इंडस्ट्री कारोबार समेटने पर लगी है। नोटबंदी और जीएसटी लागू होने के बाद देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई। कारोबारियों को टैक्स चोर समझने वाली मोदी सरकार उनके लिए कोई राहत लेकर नही आई। देश की हालत बिगड़ती चली गई। पूंजीपति कारोबारियों ने अपने व्यापार को समेटना शुरू कर दिया। कंपनी से कर्मचारियों की छटनी शुरू कर दी। युवाओं को नौकरी से निकाला जाने लगा। देश की हालत पतली होने लगी। स्थिति ये बनीं कि देश में 2017-18 में बेरोजगारी दर 6.1% पर आ गई। यह 45 साल में सबसे ज्यादा है। इससे पहले 1972-73 में बेरोजगारी दर का यही आंकड़ा था। 6.1% का आंकड़ा नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) की जनवरी में लीक हुई रिपोर्ट में भी बताया गया था। लेकिन तब नीति आयोग ने रिपोर्ट खारिज करते हुए कहा था कि यह फाइनल डेटा नहीं, बल्कि ड्राफ्ट रिपोर्ट है और सरकार ने नौकरियों पर कोई डेटा जारी नहीं किया है। कुल मिलाकर कहा जाए मोदी सरकार गरीबों के हितों का दावा करती रही। लेकिन उनकी सबसे बड़ी समस्या का समाधान करने का कोई रास्ता नही निकाल पाई।
शहरी क्षेत्र में युवा ज्यादा बेरोजगार
मोदी सरकार में सबसे ज्यादा बेरोजगारों की तादात शहरी इलाकों में बढ़ी। एनएसएसओ रिपोर्ट में कहा गया था कि 2017-18 में बेरोजगारी दर ग्रामीण क्षेत्रों में 5.3% और शहरी क्षेत्र में सबसे ज्यादा 7.8% रही। पुरुषों की बेरोजगारी दर 6.2% जबकि महिलाओं की 5.7% रही। इनमें नौजवान बेरोजगार सबसे ज्यादा रहे, नौजवान युवाओं के बेरोजगारों की संख्या 13% से 27% थी। 2011-12 में बेरोजगारी दर 2.2% थी। जबकि 1972-73 में यह सबसे ज्यादा थी। बीते सालों में कामगारों की जरूरत कम होने से ज्यादा लोग काम से हटाए गए। जिसके बाद से युवाओं को नौकरी से निकाले जाने का दौर जारी है।