2 किमी की छोटी सी जगह में 17 दिन से 41 मजदूर! ठंड में कैसे बिताई रात? ऐसे जीती जिंदगी की जंग




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उत्तरकाशी की सुरंग धसने से फंसे 41 मजदूरों के लिए सुरंग के भीतर हफ्तों गुजार देना बेहद चुनौतीपूर्ण रहा है. हालांकि, अब जल्द ही उन्हें बाहर निकाल लिया जाएगा. रैट होल माइनिंग के जरिए रैट माइनर्स उनके करीब पहुंच गए हैं.

उत्तराखंड के उत्तरकाशी में सिल्कयारा सुरंग का एक हिस्सा ढहने से 41 मजदूर पिछले 17 दिनों से 2 किलोमीटर की जगह में फंसे हुए थे लेकिन अब कुछ देर में ही उन्हें बाहर निकाल लिया जाएगा. मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए रैट होल माइनिंग और सुरंग के ऊपर से वर्टिकल ड्रिलिंग की गई है.

मजदूरों को अब किसी भी वक्त बाहर निकाला जा सकता है क्योंकि सुरंग में खुदाई का काम पूरा हो चुका है. मजदूरों को बाहर निकालने के लिए 800 मिमी का पाइप सुरंग के अंदर डाला गया है जिसके जरिए एनडीआरएफ की टीमें मजदूरों तक पहुंच रही हैं. मजदूरों के लिए एंबुलेंस और स्ट्रेचर की भी व्यवस्था की गई है. वो जैसे ही बाहर निकलेंगे, उनकी स्वास्थ्य जांच के लिए उन्हें हॉस्पिटल ले जाया जाएगा.

सुरंग के अंदर फंसे मजदूरों के लिए स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण बनी थी लेकिन उनकी जिजीविषा ने हार नहीं मानी. फंसे मजदूरों के लिए सुरंग के बाहर डॉक्टर्स की एक टीम भी लगी हुई थी जो नियमित रूप से उनकी स्वास्थ्य की जानकारी लेती रही और उन्हें मनोवैज्ञानिक रूप से हौसला बढ़ाती रही.

रेस्क्यू ऑपरेशन साइट पर पांच डॉक्टरों की टीम फंसे हुए मजदूरों से दिन में दो बार बात कर रही थी.

‘घबराना मत… निकालने के लिए कोशिशें…’

सुरंग में फसे 41 मजदूरों में से एक सबा अहमद के परिवारवालों ने बताया कि सुरंग के अंदर जब भी सबा से बात हुई वो उनसे हमेशा कहते थे कि ‘घबराना मत… आप लोगों को निकालने के लिए कोशिशें की जा रही हैं.’ 

मजदूरों के पास पाइप के जरिए एक माइक भेजी गई थी जिसके जरिए वो अपने परिवारवालों और डॉक्टरों से बात कर रहे थे.

सबा के भाई नैय्यर अहमद बताते हैं कि शुरू में जब उन्हें निकालने के लिए खुदाई शुरू हुई और कुछ दिनों बाद ही जब मशीन सुरंग में फंस गई तब उनके भाई निराश हो गए थे. इसके बाद डॉक्टरों ने सबा अहमद की काउंसिलिंग की थी और उन्हें ढाढस बंधाया था कि उनके साथ-साथ सभी मजदूरों को जल्द से जल्द बाहर निकाल लिया जाएगा.

ठंड में कैसे सुरंग में मजदूरों ने बिताई रातें?

सर्दियां दस्तक दे चुकी हैं और देश के बाकी राज्यों की तरह की उत्तराखंड में भी तापमान लगातार गिरता जा रहा है. ठंड बढ़ने से मजदूरों के परिवारों को यह चिंता सता रही थी कि उनके परिवारवाले सुरंग में कैसे रात बिता रहे होंगे. डॉक्टरों की टीम में शामिल वरिष्ठ डॉक्टर प्रेम पोखरियाल ने समाचार एजेंसी पीटीआई से बात करते हुए कहा था कि सुरंग के अंदर मजदूरों को ठंड से परेशानी नहीं हो रही थी.

उन्होंने कहा था, ‘जहां लोग फंसे हैं, वहां चलने-फिरने के लिए लगभग 2 किलोमीटर की जगह है और वहां का तापमान 22-24 डिग्री सेल्सियस के बीच है. अभी उन्हें ऊनी कपड़ों की जरूरत नहीं है.’

डॉ पोखरियाल ने बताया था कि जहां मजदूर फंसे हैं, सौभाग्य से वहां जियोटेक्सटाइल शीट के बंडल पड़े हुए हैं. मजदूर उन्हें ही बिछाकर सो रहे थे.

सुरंग में ही योग और एक्सरसाइज

मजदूर खुद को मनोवैज्ञानिक रूप से कैसे स्वस्थ रख रहे थे? डॉ पोखरियाल ने बताया था, ‘फंसे मजदूर सुरंग में ही योग और एक्सरसाइज कर रहे थे. वो सुबह और शाम को सुरंग के भीतर टहल भी रहे हैं.’

वहीं, एक अधिकारी ने बताया था कि मजदूरों के पास सुरंग में बिजली की सप्लाई नहीं कटी थी जिससे थोड़ी राहत रही.

उन्होंने कहा था, ‘उनके पास चौबीसों घंटे बिजली उपलब्ध रही. मलबे के गिरने से बिलजी की सप्लाई को कोई नुकसान नहीं हुआ था. निर्माण के दौरान सुरंग में दीवारों के सहारे बिजली के तार ले जाए गए थे और वो अच्छी स्थिति में थे.’

एक अन्य अधिकारी ने बताया था कि मजदूरों को टूथब्रश, टूथपेस्ट, तौलिया, कपड़े, अंडरगार्मेंट्स जैसे सभी जरूरी सामान दिए गए थे. उन्हें मोबाइल फोन भी दिए गए जिसमें मूवी और वीडियो गेम थे.

मजदूरों को खाने-पीने में क्या-क्या?

डॉक्टरों ने बताया था कि मजदूरों को पहले लिक्विड दिया जा रहा था लेकिन कुछ दिनों पहले से उन्हें संपूर्ण आहार दिया जाने लगा था. डॉ पोखरियाल ने बताया, ‘सुबह में उन्हें हम अंडा, चाय और दलिया भेजा जा रहा था. दोपहर और रात के खाने में वो दाल, चावल, रोटी और सब्जी खा रहे थे. खाने के लिए उन्हें डिस्पोजेबल प्लेट्स भेजे जा रहे थे.’

डॉक्टरों ने बताया कि मजदूरों को पर्याप्त हाइड्रेशन मिलता रहे, इसके लिए सुरंग में पाइप के जरिए ओआरएस पाउडर भेजा गया था. उन्हें आई ड्रॉप्स, विटामिन की गोलियां और बाकी एनर्जी ड्रिंक्स भी भेजी गई थीं. मजदूरों के पास ड्राई फ्रूट्स और बिस्किट का स्टॉक भी भेजा गया.

मेडिकल टीम के नोडल ऑफिसर डॉ बिमलेश जोशी ने बताया था कि मजदूरों के साथ-साथ उनके परिवार वालों की भी नियमित काउंसिलिंग की जा रही थी. परिवारवालों को कहा जा रहा था कि वो फंसे हुए मजदूरों से बात करते समय उन्हें ऐसा कुछ न कहें जिससे उनपर नकारात्मक असर पड़े और उनकी हताशा बढ़ जाए.



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