नवीन चौहान
उत्तराखंड की डबल इंजन की सरकार को चला रहे प्रदेश के मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत ने शपथ लेने के साथ ही जीरो टालरेंस की मुहिम शुरू की थी। सरकारी आयोजनों में महंगे उपहार देने की परंपरा को बंद करने हुए फूल देने का चलन शुरू किया। गिफ्ट देने की परंपरा को बंद करने के पीछे जीरो टालरेंस की मुहिम को परवान चढ़ाने का उद्देश्य दिखाई दिया। लेकिन नई सरकार के गठन के ढाई सालों में त्रिवेंद्र सरकार ने भ्रष्टाचारियों पर कोई सख्त एक्शन नही लिया। यही कारण रहा कि भ्रष्टाचारियों के हौसले बुलंद होते गए। जनता को तो भ्रष्टाचार से निजात नही मिल पाई। अलवत्ता फूल की कीमतों में जरूर इजाफा हो गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रचार करते हुए उत्तराखंड की जनता से डबल इंजन लगाने की अपील की। अर्थात केंद्र की तरह ही उत्तराखंड में भाजपा सरकार बनाने के लिए जनता से वोट देने की मांग की। जनता ने मोदी पर भरोसा करके भाजपा को प्रचंड बहुमत दिया। 70 विधानसभा सीटों में भाजपा 57 सीटे जीतकर सत्ता पर काबिज हुई। इस प्रचंड बहुमत की सरकार के मुखिया बनने के लिए वैसे से कई विधायक लालायित नजर आए। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की कसौटी पर सीधे व सरल स्वभाव के त्रिवेंद्र सिंह रावत खरे उतरे। त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई तो उन्होंने भी प्रदेश में भ्रष्टचार मुक्त सुशासन देने के इरादे जाहिर किए। धीर-गंभीर और ईमानदार छवि के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने धीमी गति से राज्य की माली हालत को देखते हुए राज्य को गति प्रदान करनी शुरू की। केंद्र सरकार के सहयोग से प्रदेश में विकास कार्यो को अमलीजामा पहनाना शुरू किया। प्रदेश में पूरी तरह से जीरो टालरेंस को प्रभावी बनाने के लिए उपहार परंपरा तक बंद करा दी। महंगे बुके देने तक पर रोक लगा दी गई। सरकार की नीतियों में भी ईमानदारी को प्राथमिकता देने का संदेश देने का प्रयास किया गया। करीब ढाई सालों में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अपनी बेदाग छवि के साथ राज्य की अर्थव्यवस्था को ध्यान में रहते हुए कार्य करते रहे। लेकिन इस ढाई सालों में जमीनी हकीकत की बात करें तो सरकारी महकमों में भ्रष्टाचार पूरी तरह से बंद होना तो दूर उनकी कीमतों में इजाफा हो गया। सरकारी ऑफिसों में बैठे अधिकारियों और बाबूओं ने सेवा शुल्क वसूलने के तरीके बदल दिए। यही कारण रहा कि सेवा शुल्क पाने की चाहत में अधिकारियों और बाबूओं का सबसे पसंदीदा जिला हरिद्वार बन गया। गत ढाई सालों में हरिद्वार में अधिकारियों के सेवा शुल्क में खूब इजाफा हुआ। ईमानदार मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पीडि़त जनता को सेवा शुल्क से निजात नही दिला पाए। जब सीएम जनता को भ्रष्टाचार से निजात दिलाने में नाकाम रहे तो फूल लेने की परंपरा पर सवाल उठना तो लाजिमी है। आखिरकार फूल लेने से कौन सा संदेश जा रहा है। सीएम साहब आपके ईमानदार होने का फायदा जनता को मिले तो ठीक है। आपकी वाहवाही होगी। अगर जनता को भ्रष्टाचार से निजात नही दिला सकते है तो नाप डालिए ऐसे अधिकारियों को जिन्होंने आपके नाम को खराब किया हुआ है। गरीब व्यक्ति को इंसाफ दिलाने और उनकी मदद करने के लिए किसी चहेते अधिकारी को सस्पेंड भी करना पड़े तो कर दो। गरीब का आशीष आपकी हर मुसीबत से रक्षा करेंगा। अन्यथा फूल लो या गिफ्ट कोई फर्क नही पड़ता। गरीब जनता का खून तो चूसा ही जा रहा है। त्रिवेंद्र सरकार में भी जनता को सुख ना मिला तो फिर किसी ओर से उम्मीद भी नही की जा सकती है। वैसे उत्तराखंड में मुख्यमंत्री बदलने का रिवाज तो पुराना है। यहां एक कुर्सी के कई दीवाने है।