कोरोना लॉकडाउन: घर की चारदीवारी में कैद होकर रह गई महिलाएं




शिवानी कलूड़ा
कोरोना का प्रकोप पुरूषों से ज्यादा महिलाओं पर भारी पड़ रहा है। महिलाएं घरों में कैद होकर रह गई है। बाहरी दुनिया से उनका कनेक्शन टूट चुका है। बाजार की रौनक, शॉपिंग मॉल, पिक्चर और तमाम मनोरंजन की गतिविधियों पर पूरी तरह से ब्रेक लग गया है। जिसके चलते तमाम महिलाएं मानसिक तनाव के दौर से गुजर रही है। कई बार महिलाओं के गुस्से का शिकार बच्चे हो रहे है। पुरूषों को भी महिलाओं के क्रोध का सामना करना पड़ रहा है। पुरूष वर्ग लॉक डाउन में ​छूट मिलने के बाद बाजारों की रौनक देख रहे है। लेकिन महिलाएं पूरी तरह से बच्चों के साथ घरों की बंदिशों में जकड़ गई है। महिलाओं को अपनी जिंदगी में एक मात्र सहारा मोबाइल और टीवी का रह गया है। जिसके साथ अपना वक्त गुजार रही है। आने वाले दिन इससे भी बुरे गुजरने वाले है। जिसको सोचकर महिलाएं दुखी हो रही है।
भारत में इन दिनों कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ा हुआ है। इस संक्रमण से बचाने के लिए भारत सरकार की ओर से सुरक्षा के तमाम प्रबंध किए हुए है। देशवासियों की सुरक्षा के दृष्टिगत 22 मार्च से लॉक डाउन लगाया गया है। लॉक डाउन चौथे चरण में चल रहा है। लॉक डाउन में सभी नागरिकों को घरों में रहने की हिदायत दी गई है। जिसका बखूवी पालन भी हो रहा है। ये लॉक डाउन पुरूषों से ज्यादा महिलाओं पर भारी गुजर रहा है। महिलाओं की दिनचर्या पूरी तरह से बदल गई है। अपने मित्रों और परिवार से पूरी तरह दूर हो गई है। महिलाओं का मायके जाना और रिश्तेदारों के घर आना—जाना पूरी तरह से बंद हो गया है। मई जून की छुटिटयों में टूर प्रोग्राम भी कैंसिल हो गए। रानीपुर मोड़ निवासी शालू ने बताया कि कोरोना ने जिंदगी पूरी तरह से बदल दी है। कमरे और किचन के बीच दौड़ लगा रहे है। खा रहे है और सो रहे है। अब तो नींद भी नही आ रही। जिंदगी बोर लगने लगी है। वही ग्रामीण परिवेश की नेहा ने बताया कि पहले पड़ोसियों के घर बैठने चले जाते थे। अब तो पड़ोसियों के घरों के दरवाजे बंद है। कोई ना​ मिलने आता है और ना ही अपने घर बुलाता है। आखिरकार ये कोई जिंदगी है। बस घर और आसमान देख रहे है। घर में रहने की टीस महिलाओं को मानसिक तौर पर कमजोर करती जा रही है। जिसका खामियाजा बच्चे और पुरूष उठा रहे है। ऋषिकुल निवासी शिवानी ने बताया कि वह कुछ देर के लिए आफिस चली जाती है। लेकिन आफिस में कोई ज्यादा काम नही होने के चलते वह भी बंद हो रहा है। ऐसे में दो महीने से आर्थिक संकट का सामना कर रहे है। अब घरों में रहने की मजबूरी हो जायेगी। कुल मिलाकर देखा जाए तो महिलाओं की जिंदगी में ना कोई उमंग है और ना कोई तरंग है। बस जिंदगी कोरोना का खौफ बनकर रह गई है। कोरोना का प्रकोप महिलाओं पर भारी गुजर रहा है।



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