पीएम नरेंद्र मोदी की मुहिम को आगे बढ़ा रही हरिद्वार की बेटी डॉ मनु




नवीन चौहान
जीवन में कुछ कर गुजरने की चाहत तो कोई भी मुश्किल आपके कदमों को नहीं रोक सकती है। बस दिल में जज्बा होना चाहिए। आपकी दृढ़ इच्छाशक्ति आपके कदम खुद व खुद मंजिल की ओर ले जायेंगे। नेक नियति आपकी मंजिल को आसान बना देगी। कुछ इन्ही ठोस इरादो के साथ आगे बढ़ी हरिद्वार की बेटी डॉ मनु शिवपुरी सरकारी स्कूल में गरीब बच्चों को वर्तमान शिक्षा पद्धति के अनुरूप तैयार कर रही है। बच्चों को अंग्रेजी ज्ञान से लेकर अपने पैरों पर खुद खड़ा होने के लिए स्किल डवलपमेंट के गुर बता रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने को पूरा करने में जुटी है। गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने, युवाओं को स्वावलंबी बनाने और गरीब कन्याओं को शिक्षित बनाकर उनको जीवन से जूझने का हिम्मत पैदा करने का ध्येय बना चुकी हरिद्वार की बेटी डॉ मनु शिवपुरी विगत कई सालों से ससुराल की ऑलीशान कोठी का मोह छोड़कर बिना पंखे के सरकारी स्कूल में पढ़ाने जा रही है। बच्चों का मानवता का पाठ सिखा रही है और जीवन में कुछ कर गुजरने का जोश भर रही है। बच्चों को प्रकृति से प्रेम करना और पर्यावरण की रक्षा करने का एहसास कराती और पॉलीथीन को अभिशाप मानते हुए इसको मानव जीवन से दूर रखने के लिए जागरूक करती हैं। डॉ मनु शिवपुरी की हरिद्वार के क्षेत्रों में चलाई जा रही मुहिम बडे़ यज्ञ में महज एक आहूति है। लेकिन अगर देश की तमाम शिक्षित महिलाएं डॉ मनु की तरह ही देश के प्रति सच्ची निष्ठा रखते हुए पूरी लगन से समाज के प्रति अपने उत्तरादायित्व का पालन करें तो मोदी के सपने को पूरा होने में ज्यादा देर भी नही लगेंगी और समाज से भ्रष्टाचार जैसी दीमक का सफाया होगा। यही कारण है कि डॉ मनु शिवपुरी आज की युवा पीढ़ी में एक आदर्श बन रही है। उनकी शिक्षा से प्रेरित होकर कई बच्चे उन्हें अपना आदर्श भी मान चुके है। मीडिया की सनसनीखेज खबरों से दूर डॉ मनु शिवपुरी भारत मां की सच्ची सेवा में लीन होकर आगे बढ़ रही है। सही शब्दों में कहा जाए तो समाजसेवा के माध्यम से भारत की बेटी डॉ मनु अपने फर्ज को अंजाम तक पहुंचाने में जुटी है।

डॉ मनु को मां पिता से मिले संस्कार
डॉ मनु शिवपुरी का जन्म उत्तर प्रदेश के शामली, गांधी चौक, बड़ा बाजार निवासी सूर्य नारायण शुक्ला माता विशाला शुक्ला के घर हुआ। पिता घडि़यों की दुकान चलाते थे तो माता सरकारी स्कूल में शिक्षिका रही। माता को लिखने में रूचि थी तो पिता सूर्य नारायण स्वतंत्र विचारों के थे। माता-पिता के संस्कारों का असर मनु के जीवन पर पढ़ा तो उनको बचपन से ही पढ़ने-लिखने की ठान ली। माता पिता ने टाईपिंग, शार्ट हैंड सीखाकर मनु को वक्त के अनुसार चलने का जज्बा पैदा किया। पिता की अंगुली पकड़कर मनु ने चलना सीखा तो मां से पेंसिल पकड़कर लिखना सीखा।

मनु की पहली कविता में देशभक्ति की झलक
डॉ मनु शिवपुरी के मन मस्तिष्क में अपने देश के प्रति प्रेम इस कदर हावी है कि महज आठवीं कक्षा में ही उन्होंने पाकिस्तान पर प्रहार करने वाली और युवाओं में जोश भरने वाली कविता लिख दी। वीर रस की इस कविता की पंक्तियों में डॉ मनु ने युवाओं को उत्साहित करते हुए कहा कि कश्मीर की आवाज को बुलंद किया।
कवि गोपालदास नीरज ने मनु को दिया आशीर्वाद
माता पिता के संस्कार और संयुक्त परिवार में लालन पालन ने मनु को जीवन की राह दिखलाई। मां को बच्चों को पढ़ाता देख और पाठ बैठकर कविता लिखना देखा तो मनु ने भी कलम उठा ली। आठवीं कक्षा में कविता ने अपनी हस्त लिखित कविता को सुनाया तो स्कूल में मनु की प्रतिभा का लोहा माना गया। अब स्कूल के कार्यक्रमों में काव्यपाठ करना मनु की मानो जिम्मेदारी बन गया था। लेकिन सबसे बढ़ा अवसर मनु को 12वीं कक्षा में एक कवि सम्मेलन में भाग लेने का मौका मिला। देश के विख्यात कवि गोपालदास नीरज ने डॉ मनु को मंच पर आशीर्वाद दिया। तो मनु भी फूली नही समाई। बस फिर क्या था मानो मनु की लेखनी को पंख लग गए और सपनों से उड़ान भरनी शुरू कर दी।

हरिद्वार के संपन्न घराने की बहू मनु
डॉ मनु शिवपुरी का विवाह साल 1991 में हरिद्वार के कनखल इमली मौहल्ला निवासी होटल व्यवसायी मधुर मोहन शर्मा के साथ हुआ। गंगा सभा से जुड़े मधुर मोहन शर्मा मृदुभाषी और सौम्य स्वभाव के है। मधुर मोहन शर्मा सादा जीवन उच्च विचारों में यकीन रखते है और अपने नाम की तरह ही जीवन में मधुर वाणी का प्रयोग करना उनकी जीवन शैली है। मधुर मोहन शर्मा ने जीवन संगनी डॉ मधु शिवपुरी के नेक कार्यो को करने में सहयोग किया। पति का साथ मिला तो डॉ मनु ने संयुक्त घराने की बहू के तौर पर सबका दिल जीत लिया। मनु घर की आदर्श बहू के तौर पर पारिवारिक जिम्मेदारियों का निवर्हन करती रही और सामाजिक कार्यो को करने के लिए विचार करती रही। इसी दौरान डॉ मनु ने दो जुड़बा बेटों और एक बेटी को जन्म दिया। गृहस्थ जीवन में मातृत्व सुख और कठिन जिम्मेदारी में भी डॉ मनु इस कसौटी पर खरी उतरी। तीनों बच्चों का लालन पालन करने से लेकर शिक्षित व संस्कारवान बनाने की जिम्मेदारी डॉ मनु ने पूरी कर्तव्यनिष्ठा से निभाई। बेटी मधुराक्षी आस्टेªलिया के सिडनी की एक यूनिवर्सिटी में एडमिन एचआर है तो एक बेटा अर्थ शर्मा बैंगलौर में इंजीनियर है। जबकि छोटा बेटा अर्क शर्मा मां की मुहिम में शामिल है और पिता के कारोबार को आगे ले जाने में जुटा है।
किट्टी पार्टी से कोसो दूर मनु
पारिवारिक जिम्मेदारियों का निवर्हन करने के बाद आधुनिक युग की मनु को किट्टी पार्टी का कोई शौक नही है। उनके मन में तो मां के संस्कार और पिता की दी प्रेरणा हिलौरे मार रही थी। सो डॉ मनु ने अपने जीवन को गति प्रदान करने के लिए कविता को सार देने के लिए घर के समीप ही सरकारी स्कूलों को जीवन का लक्ष्य चुन लिया। अब डॉ मनु के मन में बस गरीब बच्चों को संस्कारवान बनाने का एक जुनून था तो पति मधुर मोहन शर्मा का भी साथ मिला। पति का साथ हो तो पत्नी आसमान में भी सुराग कर सकती है। कुछ इसी अंदाज में डॉ मनु शिवपुरी ने सरकारी स्कूलों के बच्चों में शिक्षा की अलख जगानी शुरू कर दी

सरकारी स्कूलों की सेहत में सुधार
डॉ मनु शिवपुरी ने सरकारी स्कूलों में शिक्षा देने जाने से पहले वहां के वातावरण को समझा। जिसके बाद पति मधुर मोहन शर्मा के सहयोग से स्कूलों की आर्थिक हालत को दुरस्त कराना शुरू किया। स्कूली बच्चों में प्रतियोगिता की भावना जगानी शुरू की। प्रदूषण और तमाम कुरीतियों से दूर रहने का ज्ञान कूट-कूट कर भरना शुरू किया। बच्चों की मानसिक सोच में परिवर्तन की लहर शुरू कर दी।
मनु ने जगाई शिक्षा और संस्कारों की अलख
डॉ मनु ने सरकारी स्कूली बच्चों को प्रेरित करने के लिए कई तरह के अभिवन प्रयोग किए। बच्चों को कुशाग्र बनाने के लिए उनकी प्रतिस्पर्धा कराई। बच्चों को आधुनिक चीजों के इस्तेमाल करने से लेकर किताबी ज्ञान दिया गया। बच्चों को बोलने बैठने का सलीके से लेकर तमाम ज्ञान दिया गया। मनु की मेहनत का असर दिखाई देने लगा और बच्चों में परिवर्तन की लहर शुरू हो गई। डॉ मनु बच्चों के दिल और दिमाग में ज्ञान का बीज अंकुरित करने में कामयाब रही।

पॉलीथीन एकत्रित करने पर बच्चों को अवार्ड,
डॉ मनु शिवपुरी ने स्कूली बच्चों को पॉलीथीन की कुरीतियों का ज्ञान देने के लिए पॉलीथीन एकत्रित करने की मुहिम शुरू की। स्कूली बच्चों ने एक दिन में ही हजारों किलो पॉलीथीन जुटा ली। बच्चों को पॉलीथीन के नष्ट ना होने वाले अवशिष्ट की जानकारी दी गई। इस पॉलीथीन को एकत्रित करने वाले बच्चों को पारितोषिक देकर सम्मानित किया गया।
जीवन का वास्तविक अर्थ समाजसेवा है।
डॉ मनु शिवपुरी से बातचीत की तो उन्होंने खास बात बताई। उन्होंने बताया कि जीवन में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो शुरूआत कभी भी हो सकती हैं। मां पिता ने संस्कार दिये पति ने सहयोग किया और ससुराल में माहौल मिला तो वह जीवन को सार्थक करने का प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि समाजसेवा वास्तविक तौर पर मानसिक शांति है। उन्होंने कहा कि वह किसी पर कोई उपकार नही करती है। अपितु खुद के जीवन को सार्थक करने का प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि भारत में लोगों को अधिकारों का ज्ञान है लेकिन कर्तव्य निभाने के वक्त पीछे हट जाते है। वर्तमान दौर में महिलाओं को और अधिक साक्षर बनाने की जरूरत है। निचले स्तर पर महिलाओं की हालत दयनीय है। मनुष्यों की सोच में परिवर्तन की जरूरत है। उन्होंने कहा कि समाज में अच्छे कार्यो का विरोध होता है। लेकिन वह विरोध और आलोचनाओं से घबराती नही है। किसी भी सूरत में वह अपने मिशन को लेकर आगे बढ़ेगी।
गंगा में कपड़े फेंकने से नहीं कम होते पाप
डॉ मनु शिवपुरी बेबाक वक्ता है। उन्होंने कहा कि गंगा में स्नान करने के बाद पुराने कपड़े प्रवाहित करने से पाप नही घुलते है। उन्होंने कहा कि वह पुराने कपड़ों को गंगा घाटों से हटाकर उनको रिसाईकिल कराने की शुरूआत करने जा रही है। जिससे गंगा में कूड़ा करकट नही जायेगा। गंगा स्वच्छ रहेगी। दूसरा खाना बचाने की मुहिम भी शुरू होगी। बचे हुए खाने को गरीब स्थानों में वितरित कराने का कार्य किया जायेगा।
बुटीक खोलकर निशुल्क इंग्लिश स्पीकिंग
डॉ मनु ने सबसे पहली शुरूआत अपने घर के नीचे एक बुटीक खोलकर की थी। लेकिन नियति को कुछ ओर ही मंजूर था। मनु ने बुटीक में आने वाले बच्चों को निशुल्क पढ़ाना शुरू कर दिया। बच्चों को फ्री इंग्लिश कोचिंग देनी शुरू की। बच्चों के साथ उनके सरकारी स्कूल को देखा तो वहां स्कूल की हालत और दूसरे बच्चों की स्थिति को देखा तो बस यही से ही संकल्प कर लिया। घर के नजदीक के ही पहले स्कूल को अपना कार्यक्षेत्र चुना। बच्चों में प्रतियोगिता जीतने की ललक पैदा की। बच्चों को होशियार बनाना शुरू किया। यूं तो डॉ मनु को समाजसेवा के लिए कई अवार्ड मिल चुके है। लेकिन उनका उद्देश्य अवार्ड पाना नही समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व को पूरा करना है। डॉ मनु का मानना है कि मनुष्य का जन्म की सार्थकता तभी पूर्ण होती है जब पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के साथ समाज के प्रति भी योगदान हो।



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