मां गंगा की सेवा कर रहे एक अधिकारी ने ली कसम, जानिये पूरी खबर




अधिकारी की कसम——- ना गलत काम करना और ना ही किसी को कुछ देना
नवीन चौहान, हरिद्वार। महकमे से जुडे एक प्रशासनिक अधिकारी ने अपनी अंतर आत्मा को जगा लिया है। उसने जिंदगी भर भ्रष्टाचार से दूर रहने का संकल्प कर लिया है। जिंदगी आदर्शो पर गुजारने की कसम खुद अपनी अंतर आत्मा से ली है। ये बात आपकों सुनने में थोडी अजीब लग सकती है पर सच्ची है। जी हां एक अधिकारी ने खुद इस बात की जानकारी दी है। उसने बताया कि किसी के दबाव में आकर गलत काम करने और उसके बदले में दी जानी वाली कीमत से आजिज आकर ये निर्णय किया है। उसने पैंसे दिये जाने की गलत परंपराओं को भी बंद करने संकल्प किया है। गंगा से जुडे विभाग का मामला है।
गंगा से जुडे विभाग में एक व्यक्ति उच्च अधिकारी पद पर आसीन है। उस व्यक्ति का व्यवहार व आचरण बेहद नम्र है। पर हरिद्वार जनपद में पोस्टिंग होने के बाद वह हरिद्वार के वातावरण को समझने का प्रयास कर रहा था। विभाग और अपने कर्मचारियों की गतिविधियों को समझने का कोशिश कर रहा था। इसी दौरान एक धार्मिक पर्व आ गया। इस पर्व के रीति रिवाज की जानकारी कर्मचारियों ने अपने अधिकारियों को दी। कर्मचारियों ने मिठाई और लिफाफा देने की जानकारी अपने अधिकारी को दी। मिठाई की बात तो अधिकारी के समझ में आ गई पर ये लिफाफा देने की गलत परंपरा की बात उक्त अधिकारी के गले नहीं उतरी। फिर भी मन मानकर उक्त अधिकारी ने इस रिवाज को निभाने के लिये हामी भर दी। पर्व के कुछ दिन बीतने के बाद एक दिन अधिकारी अपने आप आत्मचिंतन करने लगे। उक्त अधिकारी ने जिंदगी में किये कार्यो की समीझा की तो पर्व पर निभाई गई उस गलत परंपरा की याद आ गई। कर्मचारियों के कहने पर निभाई गई गलत परंपरा में अधिकारी को अपनी गलती भी महसूस होने लगी। अधिकारी की अंतर आत्मा खुद को चोटने लगी। बस फिर क्या था। अधिकारी ने मन ही मन जिंदगी को आदर्शो के मार्ग पर चलाने का संकल्प कर लिया। अधिकारी ने जीवन पर्यंत गलत परंपराओं को नहीं निभाने की कसम खुद से ले ली। बतादे कि ये अधिकारी ईश्वर में आस्था रखता है। व्यवहार कुशल है। सभी धर्मो को मानने वाला है। गरीबों का शुभ चिंतक है। जब इन तमाम खूबियों वाला व्यक्ति अधिकारी हो तो उसके चरित्र और आर्दश होने स्वाभाविक है। जब हमने इस कसम के संबंध में पूछा तो बताया कि व्यक्ति का चरित्र और उसके कर्म खुद की संतुष्टि के लिये होते है। कोई दूसरा व्यक्ति आपके चरित्र का निर्धारण नहीं कर सकता है। ईश्वर को जबाव हमको देना है तो हम गलत परंपरा का निर्वहन किस लिये करें। पूरी बातचीत के बाद एक बात तो समझ में आई कि देर से ही सही एक गलत परंपरा तो बंद हो ही गई।

 



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