पतंजलि योगपीठ में पूर्ण निष्ठा से मनाया गया गुरु पूर्णिमा महोत्सव




  • गुरु परम्परा में, ऋषि परम्परा में, सनातन परम्परा में स्वयं प्रतिष्ठित हो जाना ही गुरु पूजा है: स्वामी रामदेव
  • महर्षि दयानंद न होते तो यह गुरुकुलीय परम्परा आज हमें इस रूप में प्राप्त न होती: आचार्य बालकृष्ण

नवीन चौहान.
हरिद्वार। पतंजलि योगपीठ के योग भवन सभागार में गुरु पूर्णिमा महोत्सव वैदिक ज्ञान परम्परा व ऋषिज्ञान परंपरा के साथ मनाया गया। इस अवसर पर पतंजलि योगपीठ परिवार के दोनों शीर्ष महापुरुषों पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज व श्रद्धेय आचार्य बालकृष्ण जी महाराज ने समस्त देशवासियों को गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं प्रेषित कीं।

कार्यक्रम में पूज्य स्वामी जी महाराज ने कहा कि गुरु परम्परा में, ऋषि परम्परा में, सनातन परम्परा में स्वयं प्रतिष्ठित हो जाना ही गुरु पूजा है। गुरु का दर्शन है- गुरु के जैसा स्वयं हो जाना। हम गुरुपथ पर, ऋषि पथ पर, वेद पथ पर, शाश्वत पथ पर, सनातन पथ पर आगे बढ़ें। स्वामी जी ने कहा कि हमने पतंजलि संन्यासाश्रम के माध्यम से संन्यासियों की बड़ी श्रृंखला खड़ी की है जिसके द्वारा प्राचीन ऋषि परंपरा को पुनः स्थापित कर विश्व की सबसे बड़ी आध्यात्मिक शक्ति के रूप में भारत का निर्माण किया जा रहा है। पतंजलि संन्यासाश्रम के पूज्य संन्यासियों ने, आचार्यगणों ने, ब्रह्मचारियों ने व श्रद्धमयी ब्रह्मवादिनी पूज्या साध्वियों ने गुरुतत्व व सनातन को ही स्वर नहीं दिए, इन्होंने इस शाश्वत तत्व, गुरु तत्व, सनातन तत्व के लिए अपने जीवन की आहुति दी है।

उन्होंने कहा कि महर्षि दयानंद जी की प्रेरणा से पूज्य आचार्य बलदेव जी ने हमें शिष्य बनाया और हमारे भीतर शिष्यत्व को विकसित किया। गुरुकुल में हम पढ़कर हम योग सीखाने लगे और देश के करोड़ों लोगों ने हमें योगगुरु बना दिया। योग, प्राणायाम, ध्यान, साधना हमारी गुरु, ऋषि व वेद परम्परा का मूल तत्व हैं। परम गुरु परमात्मा के चरणों में प्रणाम करते हुए सम्पूर्ण गुरु सत्ता, गुरु परम्परा, ऋषि परम्परा, वेद परम्परा, अपनी सनातन परम्परा को प्रणाम करते हुए करोड़ों-करोड़ों भाई-बहन भौर में उठकर हमारे साथ प्राणायाम करते हैं। मुझे आशा है कि आने वाले कुछ वर्षों में पूरा विश्व योगमय हो जाएगा।

पूज्य स्वामी जी ने कहा कि पूरी दुनिया में 99 प्रतिशत लोगों को कोई न कोई रोग है। सब रोगों का एकमात्र समाधान योग तत्व है। हमारा गुरुतत्व मूलतः योग तत्व व अध्यात्म तत्व है और उसमें भी प्राणायाम का साधन सबसे बड़ा है। प्राण ही माता-पिता, गुरु, आचार्य, भाई-बहन हैं। प्राण ही ब्रह्म है। योगियों के लिए प्राण ब्रह्म तत्व है, शिष्य के लिए प्राण गुरु तत्व है, विद्यार्थियों के लिए प्राण सर्व विद्याओं का आधार है। विद्यार्थियों के लिए प्राण विद्या सर्व विद्याओं का आधार है, परा-अपरा विद्या है। सारी विद्याएँ, सारा ज्ञान-विज्ञान इस प्राण तत्व में सन्निहित है। जो प्राणतत्व की आराधना करता है, उसमें सारी विद्याएँ प्रतिष्ठित हो जाती हैं।
इस अवसर पर पूज्य आचार्य बालकृष्ण जी महाराज ने कहा कि अपनी श्रद्धा, भक्ति, कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए गुरुओं के द्वारा ही निर्धारित यह दिन है। गुरु पूर्णिमा का यह पर्व गुरु की महत्ता को समर्पित है। आज हम जो कुछ भी हैं, हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों तथा गुरुजनों की कृपा से हैं।

पूज्य आचार्य जी ने कहा कि परम श्रद्धेय स्वामी जी के पुरुषार्थ से वैभवशाली वैदिक सनातन परम्परा का पुनः प्रादुर्भाव हो रहा है। उसका वैभव, यश, प्रतिष्ठा चहुँओर प्रतिष्ठापित हो रही है। उन्होंने कहा कि आज का पावन दिन ऋषियों, गुरुओं, तपस्वियों, ज्ञानियों व बलिदानियों को समर्पित है जिनके तप, पुरुषार्थ, समर्पण ने हमें इस ज्ञान विधा का, सनातन वैदिक परम्परा को विभिन्न ग्रन्थों व शास्त्रों के माध्यम से सहज प्राप्त हुआ। उन्होंने कहा कि परमात्मा तो सबका गुरु है। स्वामी दयानंद कहते हैं कि ब्रह्मा से लेकर जैमिनी पर्यन्त हमारी गुरु परम्परा हैं। उन्होंने हमें वेद, उपनिषद्, दर्शन से लेकर व्याकरण आदि की शिक्षा देकर हमारे जीवन को उन्नति के मार्ग पर प्रशस्त किया। महर्षि दयानंद न होते तो यह गुरुकुलीय परम्परा आज हमें इस रूप में प्राप्त न होती।

आचार्य जी ने कहा कि जीवन की इस यात्रा में, इस सम्पूर्ण अनुष्ठान में आचार्य बलदेव, आचार्य प्रद्युम्न जी, स्वामी शंकरदेव जी, पूज्य आनंद चैतन्य जी और बहुत सारे संत महापुरुषों का आशीर्वाद व प्रेरणा मिली, उन सबको हृदय की अनंत गहराईयों से प्रणाम। उन्होंने कहा कि गुरु तो सदैव हमें उन्नति के मार्ग पर प्रशस्त करने के लिए तत्पर रहते हैं किन्तु यह तो हमारे सामर्थ्य व पात्रता पर निर्भर करता है कि हम उनसे कितना ग्रहण कर पाते हैं। हम अपनी पात्रता को बढ़ाएं। जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए स्वयं को योग्य बनाएं।

कार्यक्रम में भौतिक विज्ञान के प्रगाढ़ विद्वान् प्रो. हरिशचन्द्र वर्मा जी को शिक्षण कार्य में उनके अभुतपूर्व योगदान के लिए पतंजलि शिक्षा गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया। पूज्या साध्वी देवप्रिया, बहन ऋतम्भरा शास्त्री, बहन अंशुल, बहन पारुल, ललित मोहन, एन.पी. सिंह, स्वामी परमार्थ देव, भाई राकेश, डॉ. जयदीप आर्य, अजय आर्य, पद्मसेन आर्य, प्रसिद्ध कवि हरिओम पंवार, स्वामी विदेहदेव, स्वामी तीर्थदेव, स्वामी ईशदेव, स्वामी आर्षदेव, साध्वी देवमयी, साध्वी देववरण्या, साध्वी देवादिति, भाई हरीश जौहर, बहन सीमा जौहर व पतंजलि से सम्बद्ध सभी परिसरों व ईकाइयों के प्रमुख, अधिकारी, कर्मयोगी भाई-बहन, संन्यासी भाईयों व साध्वी बहनों ने पूज्य स्वामी जी महाराज व पूज्य आचार्य जी महाराज से आशीर्वाद प्राप्त किया।



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