विधायकी रहेगी तो चलेगी दबंगई और फेंक देंगे अधिकारी इधर—उधर





नवीन चौहान
नेताओं को प्रशासनिक अधिकारियों और कर्मचारियों के मान सम्मान से कोई सरोकार नहीं होता है। नेताओं को अपने वोट बैंक को बरकरार रखने की चिंता सताती है। वोट बैंक को सुरक्षित रखने की खातिर ही प्रशासनिक अधिकारियों के मान सम्मान को भी दांव पर लगा देते है। नेताओं को मालूम है कि विधायकी रहेगी तभी तो दबंगई चलेगी। प्रशासन को तो हमारी डयूटी बजानी है। अगर हम सत्ता में रहे तो करा देंगे ट्रांसवर। नहीं तो फेंक देंगे इधर—उधर। लेकिन वोट बैंक को सुरक्षित रखना जरूरी है। यही कारण है कि सियासी पार्टी के नेताओं और विधायकों को प्रशासनिक अधिकारियों और कर्मचारियों से कोई सहानुभूति नहीं होती है।
देश की कानून व्यवस्था को सुदृढ़ बनाये रखने में प्रशासन की अहम भूमिका होती है। देश और प्रदेश की अर्थव्यस्था को मजबूत करने की महत्वपूर्ण दायित्व भी प्रशासन के कंधों पर ही होता है। प्रशासनिक अधिकारी डयूटी के साथ ही अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते है। जनप्रति​निधियों के सम्मान को बरकरार रखते हुए प्रशासनिक अधिकारी अपने कर्तव्यपरायण के धर्म को निभाते है। लेकिन अगर हकीकत की बात करें तो प्रशासनिक अधिकारियों को उनके कर्तव्य​ से विमुख करने का कार्य भी जनप्रतिनिधि ही करते है। प्रशासनि​क अधिकारियों के मनोबल को तोड़ने से लेकर उनके मान सम्मान से खिलबाड़ तक करते है। ऐसा कई प्रकरणों में सामने आता है। सरकारी अधिकारी अपनी नौकरी की विवशता के चलते कई मामलों में चुप्पी साध लेते है। अपने दिल की व्यथा को दिल के भीतर ही छिपाकर रखते है।
आज हम बात करते है कि बिजली विभाग के जेई और लेखपाल से मारपीट प्रकरण की। दोनों ही अलग—अलग विभाग के अधिकारी अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहे थे। एक अधिकारी बिजली चोरी पकड़ने गया था। जिसको बंधक बनाकर मारपीट की गई। दूसरे प्रकरण में लेखपाल अवैध खनन की चोरी को रोकने गया। दोनों ही मामलों में चोरी को पकड़ने के बाद सरकार के लिए राजस्व की बढोत्तरी की जा रही थी। लेकिन अगर इसके पीछे की हकीकत को देखा जाए तो सरकारी कर्मचारियों की पिटाई हो गई। उनका आत्म सम्मान जख्मी हो गया। लेकिन अगर जन प्रतिनिधि की बात करें तो वह प्रशासनिक अधिकारियों को ही फोन करके चेतावनी दे रहे है। कानूनी कार्रवाई में हस्तक्षेप कर रहे है। प्रशासनिक अधिकारियों को उनके कर्तव्य से विमुख कर रहे है। एक विधायक तो खनन चोरों के समर्थन मे ही अधिकारियों को फोन कर रहा है। मुकदमा दर्ज कराने को ही गलत व्यवस्था बता रहा है। ऐसे में आप खुद ही अंदाजा लगा सकते है कि हमारे जन प्रतिनिधि अपने देश से कितना प्यार करते है। चोरों से वसूला जाने वाला राजस्व तो सरकार के खजाने में जाना था। ​जनप्रतिनिधि को तो अधिकारी की पीठ थपथपानी चाहिए थी। लेकिन हुआ ठीक इसका उलटा। प्रशासनिक अधिकारी ने कर्तव्य भी निभाया और मान सम्मान पर घाव भी गहरा ले लिया। ईमानदार अधिकारियों में तो ऐसे जनप्रतिनिधियों से टकराने का साहस होता है। उसको अपने स्थानांतरण की कोई चिंता नही होती। विचारणीय सवाल है। आखिरकार देश को सुरक्षित रखने और अर्थव्यवस्था को मजबूत रखने के लिए चोरों का समर्थन करना चाहिए या नहीं। सवाल आपके लिए।



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *