मोदी जी: तेरी महफिल में आकर लूट गए सनम, ना खुदा ही मिला ना बिशाले सनम




नवीन चौहान
तेरी महफिल में आकर लूट गए सनम, ना खुदा ही मिला ना बिशाले सनम। देश की गरीब जनता का हाल कुछ ऐसा ही है। गरीब जनता भुखमरी की कगार पर पहुंच चुकी है। दो वक्त की रोटी का संकट है। रोजगार और कारोबार पूरी तरह से ठप्प हो गए है। जी हां कोरोना संक्रमण काल में देश के हालात कुछ इसी तरह है। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर बड़ी तेजी से आई। सरकार की तमाम व्यवस्थाओं की पोल खुल गई। अस्पताल में बेड़ नही है। आक्सीजन को लेकर त्राहिमाम मचा हुआ है। बाजार खुलने से पहले बंद हो गए है। कारोबारियों में दहशत है। प्रतिष्ठान को खुला रखे या बंद उनकी समझ से परे है। हालात कैसे होंगे कोई अंदाजा नही है। फिलहाल इंसान के जीवन की अगली नई सुबह एक नई मुसीबत और नई चुनौती के साथ खड़ी है। लॉकडाउन हुआ भी नही और बंद सबकुछ हो गया। मानो जीवन ठहर सा गया है। जिंदगी थम गई है। चलती सांसों में धड़कने नही है।
भारत में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर का प्रकोप जारी है। देश के हालात बेहद ही भयावय बन चुके है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश की जनता को संबोधित करके संयम देना पड़ रहा है। राज्यों के हालातों पर नजर बनाई गई है। सभी राज्यों की हालात चिंताजनक है। जनता की आर्थिक स्थिति डगमगा गई है। अगर हकीकत की बात करें तो देश के गरीब और मध्यमवर्गीय नागरिकों की ​हालात चरमरा गई है। उनके पास रोटी, रोजगार का संकट खड़ा हो गया है। अब बात करते है हम गरीब मजदूरों की जो दिन निकलते ही दिहाड़ी करने घर से बाहर आता है। लेकिन उनके लिए कार्य कहां है। ​बड़े निवेशकों ने अपने हाथ पीछे खीच लिए है। प्रॉपर्टी का कारोबार तो साल 2015 के बाद से दम तोड़ चुका है। नोटबंदी के बाद से तो प्रॉपर्टी कारोबार खुद आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे है। जिसके चलते मजदूरों को काम मिलना ही बंद हो गया। लेकिन हम तो कोरोना संक्रमण काल की बात कर रहे है। यहां तो स्थिति बेहद ही खराब हो चुकी है। साल 2020 में लॉकडाउन लगा तो देश की आर्थिक स्थिति की हकीकत जनता के सामने थी। केंद्र सरकार खुद जनता से सहयोग मांग रही थी। सरकार ने खूब दान बटोरा और लंगर लगाकर राशन और खाना वितरित किया। लेकिन साल 2021 में तो सरकार ने लॉकडाउन से ही इंकार कर दिया। अब आधा लॉकडाउन ने कारोबारियों को जिंदा छोड़ा और ना ही मरा छोड़ा है। दुकान खोली जाए या बंद की जाए। नौकरों को दुकान से हटाया जाए या रखा जाए। दुकानों से ग्राहक गायब है। सुबह सबेरे ग्राहक दूध, सब्जी, राशन और दवाई लेने घर से निकलता है। दो बजे बाजार में सन्नाटा पसर जाता है। दुकान के बिजली बिज, कर्मचारियों का वेतन, तमाम अन्य खर्चो की चिंता उनको रहती है।
कोरोना संक्रमण से जुड़ी भयावय खबरे इंसानों को डरा रही है। इंसान जिंदा रहेगा या कोरोना से जिंदगी की जंग हार जायेगा। इंसान के जीवन की उमंग और तरंग गायब है। लेकिन शराब के ठेके खुले है। शराब पीकर गम भुलाने का रास्ता सरकार ने खोल दिया है। जिसको पीने की आदत ना हो वह भी अपने गले को तर कर सकता है। आखिरकार सरकार के सलाहकार किस रणनीति पर कार्य कर रहे है। उनको गरीब और मध्यमवर्गीय लोगों के जीवन की चिंता नही है। तीन सौ से चार सौ रूपये रोज कमाने वाला एक सामान्य नागरिक के पास जमा पूंजी कहां है। वह रोटी खाए या बैंक बैलेंस बनाए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी आपकी दूरदर्शिता की जनता प्रशंसा कर रही है। आपने लॉकडाउन नही लगाया। क्योकि आपके पास जनता को खिलाने के लिए राशन नही है। मजदूरों को घर भेजने की व्यवस्था नही है। अस्पतालों में आक्सीजन नही है। लेकिन आधे दिन का लॉकडाउन लगाकर आपने जनता को उनके हाल पर छोड़ दिया। दुकान खोलों और साफ सफाई करने के बाद दो बजे ताला लगाकर घर आ जाओ। नियमित अपने प्रतिष्ठान पर जाकर चूहों की करतूतों पर नजर बनाकर रखो। लेकिन ग्राहकों की उम्मीद मत करो। कुछ इसी सोच के साथ इंसान के जीवन को सुरक्षित बचाने की सरकार की सोच दोपहर दो बजे तक के लॉकडाउन की है।



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