नवीन चौहान
हरिद्वार, ज्वालापुर, कनखल, जगजीतपुर, मिस्सरपुर, और आसपास का तमाम क्षेत्र में पूरी रात अंधेरा रहा। बिजली गायब थी। घरों में रखे इंवरर्टर जबाब दे गए। अचानक बिजली जाने का कारण बिजली विभाग के अधिकारियों को समझ नही आया। किसी ने अंडर ग्राउंड केबलिंग को बिजली जाने की वजह बताई। जब परेशान क्षेत्रवासियों ने बिजली विभाग के अधिकारियों को फोन लगाए तो जनाब मोबाइल ही स्विच् आफ करके सो गए।
हरिद्वार के बिजली विभाग में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। बिना नजराने के इस विभाग में कोई काम होता नही। लाइनमैन से लेकर कुर्सी पर बैठे साहब लोग मदमस्त रहते है। लेकिन जब जिम्मेदारी से काम करने की बात आती तो इस महकमे से खत्म कोई विभाग नही है। सूचना पर कार्य करना, इनकी आदत नही है। बिजली विभाग के कार्यालयों में ठेकेदार ही मंडराते है। जनता तो धक्के खाती दिखाई पड़ती है।
बिजली विभाग के अधिकारियों को यह बात इसलिए बतानी जरूरी है कि वह जनता के टैक्स से वेतन लेते है। जनता का फोन उठाना उनकी जिम्मेदारी है। अगर यह विभाग जिम्मेदार होता तो उत्तराखंड पर 86 हजार 600 करोड़ का कर्ज भी नही होता। जी हां यही हकीकत है। जब पूरे हरिद्वार में अंधेरा था तो अधिकारी मोबाइल बंद करके सो रहे थे। जिनके फोन खुले थे। उनको मोबाइल उठाना मुनासिब नही समझा।
वैसे बताते चले कि अंडर ग्राउंड केबिल की फाइलों को खोला जाए तो विकास की नई गंगा बहती नजर आयेगी। बिजली विभाग के अधिकारियों की जिम्मेदारी की हकीकत जनता के सामने होगी। जनता के पैसों का किस प्रकार सदुप्रयोग किया गया है। सबकुछ जनता के सामने होगा। एजेंसी और बिजली विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों ने मिलकर अंडर ग्राउंड केबल के पैसों को ठिकाने लगाया है। सब पता चल जायेगा।