पदम ​श्री प्रोफेसर पुरोहित मेरे आदर्श: डॉ पीपी ध्यानी, छात्रों से की ये अपील




नवीन चौहान
यूकोस्ट देहरादून द्वारा गत दिवस ऑफलाइन और ऑनलाइन मोड में आयोजित कार्यक्रम में पदमश्री प्रो. आदित्य नारायण पुरोहित जी की पुस्तक /आत्मकथा ‘ए जर्नी इनटू अननोन’ ( A Journey into unknown) का विमोचन कई गणमान्य व्यक्तियों, शिक्षाविदों और वैज्ञानिकों की उपस्थिति में किया गया। इस अवसर पर प्रोफेसर एएन पुरोहित ने अपने 80 वर्षों की जीवन यात्रा के कई संस्मरणों से प्रतिभागियों को अवगत कराया।

उल्लेखनीय है कि पद्मश्री प्रोफेसर पुरोहित एक विश्व विख्यात शिक्षाविद और वैज्ञानिक हैं, जिनकी अनोखी कार्यशैली की आज सर्वत्र प्रशंसा की जाती है। पूर्व में वह देश और विदेशों में कई प्रतिष्ठित संस्थानों, विश्वविद्यालयों में कार्य कर चुके हैं। प्रोफेसर पुरोहित गढ़वाल विश्वविद्यालय के कुलपति और गोविंद बल्लभ पंत पर्यावरण संस्थान के निदेशक भी रह चुके हैं। उत्तराखंड राज्य में उन्हें 4 संस्थानों हैप्रेक श्रीनगर, गो.ब. पंत पर्यावरण संस्थान अल्मोड़ा, हर्बल रिसर्च एंड डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट गोपेश्वर तथा सेंटर फॉर एरोमेटिक प्लांट्स देहरादून की स्थापना का पूर्ण श्रेय जाता है।

डॉ. पीपी ध्यानी कुलपति श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय एवं उत्तराखंड प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने अवगत कराया कि पद्मश्री प्रोफेसर पुरोहित हमारे राज्य उत्तराखंड की एक अनमोल और महान विभूति हैं। वह हमारे और हमारी पीढ़ियों के प्रेरणा स्रोत हैं। डॉ ध्यानी ने कहा कि उनका परम सौभाग्य है कि वह प्रोफेसर पुरोहित के विद्यार्थियों में से एक हैं। उन्हें पिछले 42 वर्षों से प्रो. पुरोहित को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखने का सौभाग्य मिला है।

जब वह एमएससी वनस्पति विज्ञान के छात्र थे तो शिक्षक के रूप में, जब उन्होंने पीएचडी की तो एक गुरु के रूप में, जब वह लेक्चरर पद पर नियुक्त हुए तो एक विभागाध्यक्ष के रूप में, जब वह वैज्ञानिक बने तो एक प्रशासक के रूप में, और जब वह सेवानिवृत्त होकर कुलपति बने तो एक मार्गदर्शक संरक्षक के रूप में। डॉ ध्यानी ने अवगत कराया कि उन्होंने अपने गुरु प्रो पुरोहित से जीवन जीने, सफलता प्राप्त करने और आदर्श नागरिक बनने हेतु कई मंत्रों/विचारों को जाना और आत्मसात किया है। जैसे- अपने अंदर हीन भावना का विकास नहीं करना, सत्य बोलने से कभी नहीं झिझकना, ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ कार्य करना, आत्म प्रशंसा से दूर रहना, चरित्रवान रहकर कठिन परिश्रम करना और निस्वार्थ भावना से कार्य करना आदि-आदि।

डॉ ध्यानी ने बताया कि उन्होंने प्रोफेसर पुरोहित के विचारों को जीवन में आत्मसात किया और यही कारण है कि वह आज राज्य के 2 विश्वविद्यालयों के कुलपति के रूप में कार्य कर रहे हैं। डॉ ध्यानी ने विद्यार्थियों से अपील की है कि वह प्रोफेसर पुरोहित की आत्मकथा का अवश्य अध्ययन करें, आगे चलकर सफलता प्राप्त करें और एक आदर्श नागरिक बनें। पुस्तक विमोचन कार्यक्रम का संचालन यूकोस्ट देहरादून के महानिदेशक डॉ राजेंद्र डोभाल द्वारा किया गया। जिसके लिए डॉ ध्यानी ने उन्हें बधाई प्रेषित की है।



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