सवाल: नेताओं को गुस्सा क्यो आता है, वोट मांगने पर गुस्सा कहां छूमंतर हो जाता





अक्षिता रावत
उत्तराखंड सरकार के केबिनेट मंत्री प्रेमचंद्र अग्रवाल इन दिनों सरेराह मारपीट प्रकरण के बाद सुर्खियों में बने हुए है। विपक्षी पार्टियों के तेवर हमलावर है। जबकि केबिनेट मंत्री का वीडियो वायरल होने के बाद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बेहद असहज दिखाई दे रहे है। इस प्रकरण में निष्पक्ष जांच कराने की बात कर रहे है। अपने ही मंत्री से स्पष्टीकरण लेने की तैयारी कर रहे है। सोशल मीडिया पर जनता नेताओं की खिंचाई कर रही है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल उठ रहा है कि नेताओं को गुस्सा क्यो आता है। जब ये जनता के घरों की चौखट पर वोट मांगने जाते है तो गुस्सा छूमंतर कैसे हो जाता है। जनता के मुंह से निकलने वाली अशोभनीय बातें को भी प्रसाद समझकर स्वीकार करते है। जनता की हां में हां मिलाते नजर आते है। लेकिन सरकार में मंत्री बनते ही अपने असली रंग में नजर आ जाते है। शायद यही कारण है कि वोट मांगने वाली जनता के बीच मंत्रियों को सुरक्षा की कमी महसूस होती है।
अगर बात उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की करें तो उनके चेहरे पर हमेशा मुस्कराहट रहती है। कितना भी गंभीर मुददा हो या राजनैतिक मंच पर उनके चेहरे पर खिलखिलाहट अक्सर देखी जा सकती है। कई सार्वजनिक मंचों पर उन्होंने अपने सरल अंदाज को लेकर सुर्खियां भी बटोरी है। लेकिन यहां बात सरकार के मंत्रियों के गुस्से को लेकर हो रही है तो जिक्र मुख्यमंत्री का भी आया। ऋषिकेश में हुआ केबिनेट मंत्री प्रेमचंद्र अग्रवाल के मारपीट प्रकरण के बाद जनता में नेताओं के प्रति आक्रोष साफ दिखाई दे रहा है।
विदित हो कि प्रदेश के एक सामान्य नागरिक को अपने मंत्रियों से कई अपेक्षाएं होती है। सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा और चिकित्सा के समुचित प्रबंध को लेकर नाराजगी होती है। लेकिन यह नाराजगी इतनी कभी नही होती कि जनता अपने मंत्रियों को सरेराह गाली देने लगे। बस शिकायतों का पुलिंदा होता है और सरकार भी अपने स्तर पर प्रशासन से जनता के कार्यो को कराता ही है।
लेकिन यहां तो बात गुस्से की है। अं​हकार की है। मंत्री पद की कुर्सी की गर्मी की है। केबिनेट मंत्री प्रेमचंद्र अग्रवाल जाम लगने की स्थिति में सुरेंद्र सिंह नेगी के कटाक्ष पर धैर्य नही दिखा ​सकते है। कुछ देर ही चुप्पी नही साध सकते थे। कार का शीशा नही बंद कर सकते थे। उनके पास उस वक्त को टालने के कई विकल्प थे। लेकिन उन्होंने अपने धैर्य का परित्याग करके अपने कुर्ते की आस्तीन को ऊपर चढ़ाकर तो बल प्रयोग करके सरकार और अपनी किरकिरी करा दी।
फिलहाल तो यह प्रकरण पुलिस रिकार्ड में दर्ज हो गया। हो सकता है कि प्रकरण में फैसला हो जाए और दोनों पक्षों में राजीनामे से ​मुकदमा खत्म हो जाए। लेकिन इस घटना से जनता के दिलों में जन प्रतिनिधियों के व्यवहार को लेकर कई सवाल है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि नेताओं को गुस्सा क्यो आता है।
उत्तराखंड से लेकर केंद्र सरकार में इस प्रकरण को लेकर चर्चाओं का दौर जारी है। सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल है तो लोगों के कमेंटस भी आ रहे है। ऐसे में आप अपनी राय जरूर दे।



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