डॉ० हरिनारायण जाेशी “अंजान”
उत्तराखंड में सिद्द पीठ मां चन्द्रबदनी देवीजी का यह मंदिर हैं। अर्थात जगत जननी माता सतीजी की दग्धदेह पेट का वह पार्थिव भाग जिसे महाकाल भगवान शिव के रूदन- क्रन्दन पर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से नाै हिस्साें में काट दिया था। उनमें से एक। उत्तराखंड के नाै सिद्द पीठाें में से एक है। यह स्थान टिहरी गढ़वाल में देवप्रयाग-हिंडाेलाखाल मार्ग से ऊपर है। जिसे चन्द्रकूट पर्वत श्रेणी कहा जाता है। यह अत्यन्त रमणीय स्थान है और लगभग 100 से 150 किमी की अन्य पर्वत श्रेणियाें की दूरी से मंदिर स्पष्ट दिखाई देता है। कुछ गांव माता के मंदिर का प्रातः सीधा दर्शन घर से ही कर लेते हैं। पूरे क्षेत्र में चन्द्रबदनी कुलदेवी भगवती भाग्येश्वरी के रूप में विख्यात हैं। आज से लगभग 40 वर्ष पूर्व तक मंदिर परिसर में बलि प्रथा का प्रचलन था लेकिन स्वामी मनमथनजी (केरल), गाेविन्द प्रसाद गैराेला जी, धर्माननन्द उनियाल पथिकजी, इन्द्रमणी बडाेनी जी आदि सामाजिक कार्यकर्ताओं के प्रयासाें से यह प्रथा पूर्ण बंद हुई और अब श्रीफल चढ़ाये जाते हैं। विज्ञान के लिए यह भी आज काैतुहलता का विषय है कि जिस खड़े पर्वत पर बकरी मुश्किल से चढ़ पाती है वहां बलि के लिए भैंसा कैसे चढ़ता रहा हाेगा? लेकिन यह सच्चाई में है कि ऊपर टीले के गाेल मैदान में भैंसा चढ़ता था जाे आश्चर्यजनक लगता है। इस चन्द्रकूट पर्वत पर आन्दाेलनकारी दिवाकर भट्ट अनशन कर चुके हैं। मां भगवती चन्द्रबदनी देवीजी आप पर अपनी कृपा बरसाती रहें। शैलपुत्री नमाेस्तुते।