सर्जरी करने वाले हाथों ने पकड़ी कलम तो बाहर निकल कर आया छिपा हुआ कलाकार




संजीव शर्मा
जो हाथ रोज मरीज की सर्जरी करते हो, जिन हाथों में केवल इंजेक्शन और आपरेशन के औजार दिखायी देते हो, क्या कोई कल्पना कर सकता है कि वही हाथ जब कलम पकड़ते हैं तो जीवन का संघर्ष और कटु हकीकत कोमल सरल शब्दों की कविता के रूप में अपना हुनर दिखाते हैं।
जी हां यह सच है और यह बहुआयामी हुनर है डॉक्टर रामेश्वर सिंह के हाथों में। आपरेशन थियेटर के अंदर जब वह मरीज के साथ होते हैं तो उसके जीवन को बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ते और जब कलम हाथ में पकड़ते हैं तो मरीज और डॉक्टर के बीच के रिश्ते को सुंदर शब्दों में कविता के रूप में सबके सामने बाहर लाते हैं। शांत स्वभाव, मृदुभाषी और हर समय चेहरे पर मुस्कुराहट लिए डॉक्टर रामेश्वर सिंह दूसरों के ​लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है। ऐसा व्यक्तिव कम ही लोगों में देखने को मिलता है। क्लीनिक में मरीज के साथ ऐसा रिश्ता रहता है ​कि जैसे वह उनका अपना ही सगा है। कोई भेदभाव नहीं।

पंजाब से लेकर यूपी तक जुड़ी जड़े
डॉक्टर रामेशवर सिंह का पैतृक गाँव कुललेवाल जिला समरला, पंजाब है। उनका जन्म नई दिल्ली में हुआ। पिता की नौकरी बदली तो वह मेरठ आ गए। शहर के गवर्नमेंट इंटर कॉलेज, मेरठ से हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की पढ़ायी पूरी की। पढ़ाई में हमेशा मेधावी छात्रों में अपना नाम दर्ज कराया। राष्ट्रीय छात्रवृत्ति हासिल की। वाराणसी में मेडिकल एंट्रेंस एग्जामिनेशन, कंबाइंड मेडिकल टेस्ट, यूपी और ऑल इंडिया इंजीनियरिंग टेस्ट में भी सफलता हासिल की। प्रतिष्ठित एलएलआरएम मेडिकल कॉलेज, मेरठ से एमबीबीएस और मास्टर ऑफ सर्जरी उत्तीर्ण।

डॉक्टर पत्नी के साथ पंजाब में की प्रैक्टिस
डॉक्टर रामेश्वर सिंह की पत्नी दीपिका भी एक प्रति​ष्ठित डॉक्टर हैं। उन्होंने अपनी पत्नी डॉ दीपिका रमेश के साथ पंजाब के मोगा के धालीवाल अस्पताल में सीनियर रेजिडेंट के रूप में कार्य किया। दोनों ने दो साल तक वहां काम किया। उसके बाद वह अपनी पत्नी के साथ वापस मेरठ आ गए। पिछले करीब 28 साल से अब दोनों यही मेरठ में रहकर अपनी प्रैक्टिस कर रहे हैं।

बचपन से ही कविता लिखने का शौक
डॉक्टर रामेश्वर सिंह को बचपन से ही कविता लिखने का शौक रहा है। उनकी कुछ कविता और लेख समाचार पत्र और पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हुए। डॉक्टर रामेश्वर सिंह जिस तरह आपरेशन थियेटर के अंदर मरीज के जीवन को बचाने के लिए जी जान से जुटते हैं उसी तरह जब उनकी कलम कागज पर चलती है तो ऐसी सुंदर रचना बनती है जो पाठकों के दिल को छू जाती है। डॉक्टर रामेश्वर सिंह का मानना है कि चिकित्सा विज्ञान एक कला है जो मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखता है और मानसिक और शारीरिक रोगों को ठीक करता है। मानव शरीर इतना सूक्ष्म और नाजुक रूप से निर्मित होता है। यह गठन ईश्वरीय है। उनका कहना है कि ईश्वर ने ही उन्हें ऐसा कौशल प्रदान किया है कि वही ईश्वर अपने अपने क्षेत्र में सभी का मार्गदर्शन करता है।

रोगी का भरोसा डॉक्टर पर
उनका कहना है कि डॉक्टर और रोगी के रिश्ते पर सभी को भरोसा है। रोगी मुझ पर भरोसा करता है क्योंकि वह डॉक्टर को भगवान के रूप में देखते हैं, इसीलिए मैं रोगी और भगवान के भरोसे पर हमेशा खरा उतरना चाहता हूं। मैं यही मानता हूं कि भगवान ने मुझे रोगी का सुरक्षित इलाज करने के लिए ही भेजा है। यही वजह है कि मुझे लगता है कि भगवान ने मुझे सेवा और इलाज के लिए भेजा है। मुझे ईश्वर पर पूरा भरोसा है, इसलिए मेरा सिर हमेशा उनके चरणों में झुका रहता है। डॉक्टर रामेश्वर सिंह का मानना है कि चिकित्सक रोगियों और उनके रिश्तेदारों की मानसिक और शारीरिक पीड़ा की कठोर स्थितियों से बाहर निकलने में मदद करते हैं। मैं, एक सर्जन और एक कवि के रूप में, बीमारियों के दौरान अपनी बदलती भावनाओं और व्यवहारों को महसूस करता हूं।

डॉक्टर रामेश्वर सिंह की एक कविता
हम तपते भी रहे लौ की आंच में,भीगते भी रहे बरसती आँखों में!
मोम सी मौन तुम जलती रही कल रात मेरे मन की मुंडेर पर!

मेरी ऑंखें तपती रही तुम्हारी नरम आंच से, तुम जलती रही मैं तपता रहा!
फिर ओस गिरने लगी तुम सहमी और मेरे मन के कमरे में दुबक गयी!

बरखा बूंदे झिलमला गयी, मेरी ऑंखें मेघ बन गई!
झींगुर तो जैसे हर प्रणय के साक्षी रहते है!

दूर बहती नदी का पानी सब को चुप करा हमारे तपते भीगते अहसासों की नाव को
अपने बहते पानी में बहा ले चला!

हर लम्हा पिरोना चाहती, ठहरी ठहरी सी जाती हुई रात कब ख़त्म होना चाहती थी!
हम तपते भी रहे लौ की आंच में, भीगते भी रहे बरसती आँखों में!



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