नवीन चौहान
हरिद्वार के गरीब मजदूरों को कोरोना काल में मनरेगा के तहत कार्य करने का खूब मौका मिला। साल 2019—20 की बात करें तो हरिद्वार में 12 लाख 31 हजार लोगों को रोजगार मिला। जबकि साल 2018—19 में 12 लाख 10 हजार लोगों को ही काम करने का मौका मिल पाया। हालांकि भारत सरकार के लक्ष्य के अनुरूप गरीबों को कार्य नहीं मिल पाया। इसकी सबसे बड़ी वजह कोरोना संक्रमण का दौर रहा। लॉकडाउन के चलते तमाम विकास कार्य प्रभावित हुए।
कमजोर वर्ग को रोजगार में लाने के लिए केंद्र सरकार ने मनरेगा योजना की शुरूआत की थी। कोविड-19 की वैश्विक महामारी को देखते हुए मनरेगा के अंतर्गत जॉब कार्ड को बढ़ाए जाने पर केेंद्र सरकार ने जोर दिया। हरिद्वार के मुख्य विकास अधिकारी विनीत तोमर ने भी केंद्र सरकार से मिले लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में कार्य किया। कोरोना काल की विषम परिस्थितियों में गरीबों को रोजगार से जोड़ा गया। मनरेगा के तहत कार्य कराने प्रारंभ कराए गए। जिसके चलते गरीबों की आर्थिकी में सुधार देखने को मिला।
बताते चले कि मनरेगा में श्रमिकों को किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना नहीं करना पड़े। मनरेगा के तहत अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और विधवाओं के सबसे कमजोर परिवारों को स्थिर आय सुनिश्चित की जाती है। ग्रामीण विकास मंत्रालय के निर्देशों पर देश सभी राज्यों को मनरेगा के तहत व्यक्तिगत-मजदूर लाभार्थी कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने का निर्देशित किया गया है। खाद के गड्ढे खोदना, आम के पेड़ लगाना या कृषि क्षेत्रों में मरम्मत कार्य, कुओं की खुदाई और मरम्मत कायों को शामिल किया गया हैं । मनरेगा के जरिए कमजोर वर्ग श्रम कार्य करके पैसा कमा सकते हैं। जिसका पारिश्रमिक उनके बैंक खाते में पहुंच जाता है। फिलहाल हरिद्वार में मनरेगा के तहत कार्य कराने का सिलसिला जारी है।
पिछले साल तक केंद्र सरकार की मनरेगा योजना में मजदूरों की प्रतिदिन की मजदूरी के तौर पर 182 रुपये थी, लेकिन 6 महीने पूर्व 20 रुपये बढ़ाकर 202 रुपये कर दी गई।
लॉकडाउन में बंद करा दिया था काम
कोरोना वायरस महामारी के कारण पहले चरण के लगाए गए लॉकडाउन में मनरेगा के मजदूरों का काम बंद हो गया था। लेकिन लॉकडाउन के दूसरे चरण में उन्हें कुछ शर्तों के साथ काम करने की इजाजत दी गई है।