हरिद्वार में हैं महाभारतकाल की निशानी, नागफनी के पौधों से सामने आएगा इतिहास




नवीन चौहान
हरिद्वार में महाभारतकालीन निशां आज भी है। भीमगोड़ा कुंड के उपर पहाड़ी में उगे नागफनी यानि कैक्टस के दुर्लभ पौधे इस कहानी को बयां कर रहे हैं। उगे हुए हैं। पिछले 28 सालों से इन पौधों की निगरानी कर रहे हरिद्वार के पर्यावरणविद रविंद्र मिश्रा वन अनुसंधान के वैज्ञानिकों से इनकी प्रमाणिकता कराने को प्रयासरत है।
प्राचीन पौराणिक वेदों में उल्लेखित हरिद्वार में महाभारतकालीन श्री भीमगोडा तीर्थ के महाबली भीम के मंदिर के दस फिट ऊपर नागफनी यानि कैक्टस के दुर्लभ पौधे पाए गए हैं। यहां इस पौधे को 1992 में देखा था तभी से इनकी मॉनिटरिंग कर रहे थे। नागफनी का मूल रूप से जन्म मेक्सिको में हुआ था। इसकी 127 प्रजाति एवं 1775 उप वंश पाए जाते हैं। आम तौर पर इस पौधे की आयु 100 से 500 वर्ष तक हो सकती है। यह पौधा बंजर रेतीली भूमि उबड़ खाबड़ कम पानी वाली भूमि पर पनपने में सक्षम होता है। मेक्सिको में यह पौधा 500 से 1500 वर्षों तक की उम्र का भी पाया जाता है। इसमें पक्षी अपना घरोंदा बनाकर भी रहते है, लेकिन यहां जो नागफनी का यह पौधा पाया गया है, वह अत्यन्त पुराना है और यहां चट्टान पर तीन पौधे जो ब्रोकली गोभी के फूल के आकर के है जो यह प्रमाणित करते है कि यह इलाका कभी बिना पानी का बंजर पथरीला था। भीम और द्रौपदी की प्यास लगने वाली कथा को भी प्रमाणित करता है। यह पौधा आकाशीय बिजली गिरने को भी रोकने का कार्य करता है। इसमें तांबे की मात्रा अधिक पाई जाती है। हमने इसको संरक्षित करने को उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक सहित राजाजी पार्क के निदेशक को 6 अक्तूबर— 2020 को अवगत करवाया था। राजाजी पार्क के अधिकारियों ने यहां पहुंचकर पूरे जानकारी जुटाई। यहां प्रकृति पिछले कई हजार वर्षों से यह कार्य स्वयं कर रही है। अब इस पौधे के इतिहास के बारे में वन अनुसंधान जानकारी जुटाएगा।
पौधे का यह है महत्व
पर्यावरणविद रविंद्र मिश्रा ने बताया कि सावन में कैक्टस के दुर्लभ पुष्पों से भगवान शिव का अभिषेक करने पर रुद्राभिषेक का फल प्राप्त होता है।
रिपोर्ट की जा रही तैयार
राजाजी राष्ट्रीय पार्क के रेंज अधिकारी विजय कुमार सैनी अपने अधीनस्थ अधिकारियों के साथ भीमगोडा तीर्थ स्थित भीम मंदिर के ऊपर इन दुर्लभ कैक्टस के पौधों पर रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि शोध के लिए पार्क निदेशक सहित प्रमुख वन संरक्षक को रिपोर्ट भेजी जा रही है।

यह है भीमगोड़ा कुंड का इतिहास
पौराणिक और ऐतिहासिक भीमगोड़ा कुंड के जल स्रोत से कुंती और पांचाली ने प्‍यास बुझाई थी। बताया जाता है कि महाभारत काल में पांडव यहां से गुजर रहे थे। तो उन्हें हरिद्वार पहुंचने पर प्‍यास लगने लगी। तो भीम ने कहीं पानी न होने पर भीम ने धरती मां का पूजन कर अपने पैर के गौडे से प्रहार किया था। इससे पानी का स्रोत निकल पड़ा। जिससे कुंती और पांचाली ने अपनी प्यास बुझायी थी। इसके बाद धर्मराज युधिष्ठर के नेतृत्व में पांडवों ने अगली यात्रा शुय की।



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