त्रिवेंद्र सरकार की ईमानदारी माफियाओं को पड़ी भारी, पर जनता की कसौटी पर फेल




नवीन चौहान
उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सिंह रावत की ईमानदारी माफियाओं पर भारी गुजरी। सरकार के तीन सालों में माफियाओं की दाल नही गल पाई। माफियाओं के तमाम मंसूबों पर पानी फिर गया। हद तब हो गई जब इन माफियाओं के पैरोकारों को सरकार ने दरकिनार कर दिया और दलालों की नो एंट्री कर दी। जिसके बाद खनन और आबकारी के तमाम माफियाओं ने सीएम बदलने की अफवाहों को हवा देनी शुरू की। लेकिन सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की ईमानदारी पूर्ण कार्यशैली ने इन तमाम अटकलों को वीराम दिया। हालांकि प्रदेश के विकास का पहिया बड़ी धीमी गति से चला। जिसके लिए कुछ हद तक कर्ज में डूबी राज्य की अर्थव्यवस्था जिम्मेदार है। लेकिन सबसे बड़ी बात ये रही कि इन तीन सालों के भीतर सरकार ने ट्रांसफर पोस्टिंग के खेल में होने वाली दलाली पर पूरी तरह से अंकुश लगा दिया। प्रदेश के जनपदों में तैनात अफसरों को उनकी कार्यकुशलता के चलते जिम्मेदारी दी गई। जनता की समस्याओं को संजीदगी से सुना गया और उनको दूर करने के प्रयास किए गए।
उत्तराखंड के साल 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ सरकार में आई। प्रदेश के मुखिया के तौर पर त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया। सीएम की कुर्सी पर बैठने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपना विजन जीरो टालरेंस को रखा। उन्होंने जनता को भरोसा दिया कि एक स्वच्छ सरकार, भ्रष्टाचार मुक्त सरकार जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरेगी। राज्य के विकास को गति प्रदान करेंगी। इन पिछले तीन सालों पर नजर डाले तो त्रिवेंद्र सरकार के दामन पर कोई दाग नही है। सरकार पर कोई भ्रष्टाचार का आरोप नही है। लेकिन भष्ट्राचारियों पर सरकार रहम दिल जरूर दिखाई। भष्ट्राचारियों पर सरकार को जिस तेजी से कार्रवाई करनी चाहिए थी वैसी नही हो पाई। वही दूसरी ओर जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की बात तो बेरोजगारी तेजी से बढ़ रही है। पलायन की रफ्तार भी स्पीड पकड़ रही है। युवा भविष्य को लेकर चिंतित है। उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था में कोई सुधार नही हुआ। प्रदेश का कर्ज भी तेजी से बढ़ रहा है। सरकारी कर्मचारियों के वेतन के लाले पड़े है। राजस्व की बढ़ोत्तरी की दिशा में सरकार ने कोई ठोस कदम नही उठाया। प्रदेश के कई विभागों की नियमावली तक नही बन गई। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का आपदा प्रबंधन विभाग में कोई स्थायी कर्मचारी नही है। आपदा प्रबंधन को लेकर कोई नियमावली तक नही है। सरकारी अधिकारी बेलगाम है। सरकारी विभागों के अधिकारियों पर सख्ती नही बरती गई। जिसके चलते जनता की समस्याओं में बढोत्तरी हुई। लेकिन इन सबसे बीच जो सबसे खास बात रही वो ये कि सरकार के मुखिया ने उत्तराखंड में अधिकारियों के ट्रांसवर उद्योग को पूरी तरह से बंद कर दिया। माफियाओं की सचिवालय में नो एंट्री हो गई। चूंकि जनता ने प्रचंड बहुत से सरकार बनाने का मौका दिया है तो स्वाभाविक है कि अपेक्षाएं भी ज्यादा होगी। ऐसे में त्रिवेंद्र सरकार को अपने कार्य करने की क्षमता में बढोत्तरी करनी होगी। जनता के विश्वास को जीतना होगा। क्योकि इन तीन सालों को सरकार भले ही अपनी उपलब्धि के तौर पर ले। लेकिन जनता की कसौटी पर उनकी ईमानदारी फेल होती दिखाई पड़ रही है। जिस प्रदेश की आम जनता तकलीफ में हो वहां के मुखिया की ईमानदारी बेमानी साबित होती है। सरकार को अपनी कार्यशैली में परिवर्तन करना होगा। जनता की समस्याओं पर संजीदगी से विचार करना होगा। बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार का मार्ग प्रशस्त करना होगा। प्रदेश में आय के अवसर पैदा करने होंगे। तब जाकर उनकी ईमानदारी को सार्थक कहा जा सकता है।



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