सोनी चौहान
महिलाएं पुरूषों के मुकाबले ज्यादा ताकतवर होती है। महिलाओं में दर्द सहने की क्षमता पुरूषों से कई गुना अधिक होती है। किसी भी विपरीत परिस्थिति में महिलाएं आसानी से पार पा जाती है। जबकि मुसीबत के वक्त पुरूष अवसाद का शिकार होते है। वह मादक पदार्थो का सहारा लेते है। पुरूष विकट परिस्थितियों में शराब, सिगरेट व कई अन्य नशीले पदार्थो का सेवन करते है। जबकि महिलाएं दोगुरी ताकत के साथ अपने को संकट की घड़ी से उबारने के लिए मेहनत करती है। मौजूदा वक्त की बात करें तो महिलाएं एकाकी जीवन में भी पुरूषों की तुलना में बेहतर जीवन जी रही है। महिलाएं वैवाहिक जीवन में खटास आने के बाद पुरूषों के वर्चस्व को तोड़कर अकेली जीवन व्यतीत करना बेहतर समझ रही है।
भारतीय संस्कृति और पुरानी परंपराओं के अनुसार पुरूषों का कद महिलाओं से बड़ा बनाकर प्रस्तुत किया गया है। महिलाओं को घर की चार दीवारी में रहकर घर का काम काज करने वाला माना गया। जबकि पुरूषों को खुली हवा में सांस लेने की आजादी दी गई। पुरूषों को तमाम वो अधिकार दिए गए जिनसे उनको स्वतंत्रता मिले। महिलाओं के हिस्से में तमाम बंधन आ गए। संस्कृति और रीति रिवाज की बेड़ियां महिलाओं के पैरो में आ गई। लेकिन बदलते वक्त के साथ ये परंपरा अब पुरानी हो गई। महिलाओं ने भी शिक्षा हासिल की ओर घरों की कैद छोड़कर बाहर निकलकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। समाज के किसी भी क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। भारतीय महिलाओं का तो वैसे भी गौरवशाली इतिहास रहा है। रणभूमि के मैदान में दुश्मनों के छक्के छुड़ाने का रहा हो या त्याग और बलिदान देने की बात रही हो। भारतीय नारियों ने अपने मान सम्मान से कभी समझौता नही किया। लेकिन 21वीं सदी की ओर बढ़ते भारत की नारियों में ताकत बढ़ती ही जा रही है। यही कारण है कि विवाह के पवित्र बंधन में बंधी महिलाएं पुरूषों की ज्यादतियों से आजिज आकर उनका घर छोड़ रही है। हालांकि विवाहित महिलाओं को मायके का साथ भी नही मिलता। इस कठिन वक्त में भी महिलाएं खुद मेहनत करती है और अपना गुजारा करती है। ऐसे में अगर विवाहित महिलाओं की गोद में बच्चा है तो वह इस बच्चे के परवरिश की जिम्मेदारी भी खुद ही निभाती है। एकाकी जीवन व्यतीत कर रही तमाम महिलाएं अपने बच्चे को बेहतर संस्कार देने के लिए अच्छे स्कूलों में ज्ञान अर्जित करने के लिए भेज रही है। सिंगल पैरेंटस मदर इस विपरीत परिस्थिति में कोई समझौता नही करती है। महिलाओं की इच्छा शक्ति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बच्चे की परवरिश के लिए दूसरी शादी करने का विचार तक नही करती है। भारत में तमाम ऐसी महिलाएं है जो पति का घर छोड़कर समाज में अकेले संघर्ष कर रही है। लेकिन अपने सम्मान और स्वाभिमान से समझौता नही करती है। हरिद्वार की ही बात करें तो यहां सिडकुल की कंपनियों में ऐसी तमाम महिलाओं की दर्द भरी कहानी है। जो अपने पतियों और उनके परिवार के द्वारा दी गई परेशानियों से तंग आकर आज अकेली संघर्ष कर रही है। अपने बच्चों को भी पढ़ा रही है और उनकी परवरिश भी कर रही है। भारतीय समाज की बिडंबना ही कही जायेगी कि जहां महिलाओं की पूजा की जानी चाहिए वहां उनके अदम्य साहस की परीक्षा कदम—कदम पर होती है। जबकि पुरूष खुद को सर्वेसर्वा मानने से गुरेज नही करते है।