मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र की अग्निपरीक्षा —कर्ज में डूबी सरकार की कैसे संभालेंगे अर्थव्यवस्था




नवीन चौहान
उत्तराखंड सरकार करीब 50 हजार करोड़ के कर्ज के बोझ तले दबी है। इस कर्ज से उबरने का सरकार को कोई रास्ता नजर नही आ रहा है। ऐसे में कोरोना संक्रमण काल ने प्रदेश की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से गडबड़ा दिया है। प्रदेश में राजस्व वसूली के तमाम रास्ते बंद है। सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों के वेतन के लिए संकट गहराने जा रहा है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को प्रदेश की अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए केंद्र सरकार से सहायता लेने की जरूरत पड़ेगी। इन तमाम हालातों में प्रदेशवासियों को बेहद मुश्किलों के दौर से गुहरने के आसार नजर आ रहे है। हालांकि कोरोना संक्रमण के संकट के बादल छाये हुए है। इन हालातों में उत्तराखंड प्रदेश की अर्थव्यवस्था किस प्रकार पटरी पर आयेगी, ये यक्ष प्रश्न है।
पहाड़ की विषम भौगोलिक परिस्थितियों और सीमित आय के संसाधनों वाले 13 जनपदों वाला उत्तराखंड राज्य अपने अस्तित्व में आने के बाद से ही कर्ज में डूबा हुआ है। सूबे के मुखियों की कमजोर इच्छा शक्ति ने राज्य की अर्थव्यवस्था को सुधरने का अवसर भी नही दिया। राज्य में भ्रष्टाचार चरम पर रहा और राजनैतिक आंकाओं ने अपने मंसूबे पूरे किए। जिसका नतीजा ये रहा कि दो दशकों के भीतर प्रदेश का कर्ज बढ़कर 50 हजार करोड़ को पार कर गया। सूबे की सियासत पर राज करने वाले कांग्रेस और भाजपा के मुखियाओं ने प्रदेश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाये रखने के लिए कोई ठोस कदम भी नही उठाए। अपनी पार्टी को फायदा पहुंचाने और सियासी नफा नुकसान को देखते हुए फैसले लिए गए। जिसके चलते पार्टियों तो फलती फूलती रही लेकिन प्रदेश दयनीय स्थिति में पहुंच गया। साल 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रचंड बहुमत से सरकार में आई तो मुखिया की कुर्सी त्रिवेंद्र सिंह रावत को मिली। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रदेश की अर्थव्यवस्था के संकट को देखते हुए जीरो टालरेंस की मुहिम शुरू की और प्रदेश हित को ध्यान में रखते हुए निर्णय किए। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की सबसे बड़ी खूबी ये रही कि उन्होंने अपनी प्राथमिकता में सबसे पहले प्रदेश का हित रखा। जिसके कारण अनाप—शनाप भर्तियां नही निकाली। प्रदेश की प्राथमिकताओं के हिसाब से ही विकास कार्यो को गति प्रदान की। सरकार के खजाने का बजट उपयोगी योजनाओं पर खर्च किया। यही कारण रहा कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के दामन पर अनियमिता का कोई दाग नही लगा और ना ही भ्रष्टाचार की गूंज सुनाई दी। लेकिन प्रदेश की अर्थव्यवस्था की बात करें तो उसमें कोई सुधार नजर नही आया। कर्ज जस का तस बना रहा। ऐसे में प्रदेश में कोरोना संक्रमण ने दस्तक दे दी। राज्य के राजस्व वसूली के तमाम रास्ते बंद हो गए। प्रदेश की गरीब जनता भूख से कराहने लगी। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जनता से मुख्यमंत्री राहत कोष में सहयोग करने की अपील की। आर्थिक संपन्न लोगों ने सीएम राहत कोष में योगदान दिया भी और दे भी रहे है। लेकिन ये कोष तो गरीबों की सहायता पर खर्च होना है। ऐसे में सरकारी कर्मचारियों का वेतन और प्रदेश के तमाम अन्य खर्चो की पूर्ति कैसे होगी। ये बड़ा सवाल है। आपदा की इस घड़ी में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को अग्नि परीक्षा से गुजरना होगा। सरकारी विभागों की व्यवस्था, जनता और प्रदेश को पटरी पर रखने के लिए धन की कमी को पूरा करना होगा। ऐसे में सवाल है कि धन आयेगा कहां से। जाहिर सी बात है कि प्रदेश सरकार अपना मुंह एक बार फिर केंद्र सरकार की तरफ करेगी। केंद्र सरकार मदद कर भी देगी। लेकिन ये कब तक चलेगा। आखिरकार उत्तराखंड राज्य अपने पैरों पर कब खड़ा होगा। प्रदेश में राजस्व बढ़ाने वाली योजनाओं के लिए ठोस नीति क्यो नही बनाई जा रही। खनन और आबकारी नीति को स्पष्ट और पारदर्शी क्यो नही बनाया जा रहा। जिससे प्रदेश को सबसे ज्यादा राजस्व की प्राप्ति होगी। उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए अर्थशास्त्रियों की मदद लेने की जरूरत है। फिलहाल मुख्यमंत्री आपदा की इस घड़ी में बेहतर कार्य कर रहे है। उत्तराखंड की जनता भी उनका भरपूर सहयोग कर रही है। ऐसे में मुख्यमंत्री को राज्य हित में अब कदम उठाने की जरूरत आन पड़ी है। ताकि भविष्य की आपदाओं से निबटने के लिए राज्य खुद सक्षम बन सके।



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *