पूर्व सीएम हरदा का दिल तड़पा और एक आंदोलन की कर रहे पुकार, जानिए पूरी खबर




हाॅ समय आ गया है (पार्ट-4)
उत्तराखंड राज्य के मुखिया की कुर्सी पर तीन साल काबिज रहने के बाद आज पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत तड़प रहे है। उनके दिल में टीस उत्पन्न हो रही है। राज्य की दुर्दशा को लेकर वह बेहद चिंतित नजर आ रहे है। उत्तराखंड की गरीबी, बेरोजगारी, पलायन और पहाड़ी क्षेत्रों में अभावों को लेकर गंभीर है। अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल में समाज के हरवर्ग के लिए बेहतर करने की अपनी सोच को व्यक्त कर रहे है। तथा उत्तराखंड में युवाओं को आगे बढ़कर एक वृहद स्तर पर आंदोलन करने के लिए प्रेरित कर रहे है। ऐसे में विचारणीय बात ये भी है कि उनके कार्यकाल में प्रदेश पूर्व की भांति कर्जदार था और कई गुना बढ़ गया। राज्य के कर्ज को उतारने की दिशा में कोई पहल नही कर पाए। राज्य में माफियालाबी हावी। खनन और खराब माफियाओं ने खूब धन बटोरा। प्रदेश कर्ज में डूबता चला गया और हरदा अपने चिटकुटों के बीच में घिरे रहे। हरदा की सोच विकासशील हो सकती है। वह सभी चिंता भी जायज है। लेकिन जो व्यक्ति सत्ता की कुर्सी पर बैठे होने के बावजूद अपने प्रदेश हित में कोई ठोस पहल नही कर पाया। आज वह आंदोलन की पुकार करके क्या साबित करना चाहते है।
हरदा की कलम से उनके मन की बात और दिल का दर्द
राज्य आन्दोलन के दौरान लग रहे, गगनभेदी नारों में, गाॅव की आम महिला व पुरूष, अपने दुःखों का समाधान देखते थे। नारे का प्रत्युत्तर उनके हृदयकंठ से निकलता था। नारा लगाते वक्त उनके चेहरे की चमक, उनके मन के भावों को हजारों हजार शब्दों में ध्वनित कर देती थी। मुझे मुख्यमंत्री पद सभालते वक्त इस बात का गहरा भाव था कि, धीरे-2 उनके चेहरे की चमक खो रही है। उनकी गरीबी और गहरा गई है, उनका गाॅव बिखर गया है। गांव की विरानगी बढ़ती जा रही है। इस चक्र को आगे बढ़ने से रोकना और लोगाें की निराशा को आशा में बदलना समय की आवश्यकता थी। मैंने इस आवश्यकता को समझा और लोगों की टूटती आशा की डोर को बचाने का प्रयास किया। रात के इस एकान्त में, मैं अपने प्रयासों की विवेचना कर रहा हॅू। मन बहुत उद्गिन है। अपनी सोच व प्रयासों की ईमानदारी पर मुझे गर्व है, मगर परिणाम अपेक्षा से कम आये। छोड़िये राज्य को बदलने का लक्ष्य, मैं तो अपना गाॅव भी नहीं बदल पाया। मन तड़-फड़ा रहा है, सबकुछ छोड़कर अपने गाॅव को ही लक्ष्य बनाने के लिये जिस दिन मैं मुख्यमंत्री बना, एक युवा जोश था, मेरे बूढ़े होते हुये शरीर में। मुझे शपथ ग्रहण की रात कुछ कर गुजरने की उत्तेजना में नींद नहीं आयी। प्रातः मैंने उठते ही संकल्प लिया, जब तक राज्य आपदा से उबर नहीं जाता और मैं ग्रामीण क्षेत्रों में बदलाव का एक वृहत कार्यक्रम प्रारम्भ नहीं करता हॅू। इस अतिथि गृह के कुछ कक्षों में ही रहूंगा, बड़ा दबाव था। लोग बड़ी संख्या में आते थे। कभी-कभी डायनिंग रूम व बैडरूम का भी उपयोग मिलने वालों से भेंटवार्ता के लिये करना पड़ता था। एक फायदा हुआ इस सबका, मुझे हर दिन अपना संकल्प व लक्ष्य याद आता था और मैं तड़फड़ाहट में नई-2 तदवीरें खोजने लगता था। वैयक्तिक कल्याण पेंशनों की मात्रा व दायरा बढ़ाना, ऐसी ही तड़फड़ाहट का परिणाम रहा है। मेरे सत्ता ग्रहण के वक्त करीब एक लाख कल्याण पेंशनधारियों की संख्या थी। इस संख्या को मैंने तीन वर्ष में सवा सात लाख तक पहुंचा दिया। मेरे पद से हटते वक्त हरियाणा के साथ सर्वाधिक पेंशन राशि देने वाला राज्य उत्तराखण्ड था। हरियाणा में केवल तीन, विधवा, वृद्धा व विकलांग पेंशन अनुमन्य थी। उत्तराखण्ड में सत्रह कल्याण पेंशनें संचालित हो रही थी। मैं जब ऐसी कोई पेंशन विशेषतः महिलाओं के लिये प्रारम्भ करता था, मुझे अपनी माॅ याद आती थी। मैं अपने कमरे में रखी माॅ के चित्र को देखता था। मुझे लगता था कि, मेरे इस निर्णय से मेरी माॅ के चेहरे की कुछ झुर्रियां कम हुई हैं। मैंने एक बड़ा फैसला लिया। 60 वर्ष से ऊपर की महिलाओं व पेंशन लाभार्थी परिवार की विधवा बहु या बेटी के हित में। सभी राज्यों में एक परिवार में एक ही कल्याण पेंशन दी जाती है। सामान्यतः विवाह के वक्त महिला की उम्र, पति के मुकाबले कम होती है और साठ वर्ष की उम्र होने के बावजूद उन्हें पेंशन नहीं मिल पाती थी। परिवार में पेंशनधारी पुरूष के जीवित रहते पत्नी व विधवा बहु को कल्याण पेंशन नहीं मिलती थी। मैंने महिलाओं के हित में एक परिवार-एक पेंशन के नियम को समाप्त कर 60 वर्ष उम्र व पात्रता के दायरे में आने पर पति-पत्नी व बहु, तीनों को पेंशन का पात्र बना दिया। सवा लाख महिलाओं को मेरे इस आदेश का सीधा लाभ प्राप्त हुआ। मैं हाईकोर्ट के आदेश से एक दिन का मुख्यमंत्री बना। मैंने चार्ज ग्रहण करते ही मंत्रिमण्डल की बैठक बुलाकर 7 नये फैसले लिये, उनमें 4 फैसले महिलाओं के पक्ष में थे। इसी बैठक में हमने कल्याण पेंशन राशि को बढ़ाकर एक हजार, सत्तर वर्ष बाद हर वर्ष एक सौ रूपया बढ़ाकर 15 सौ रूपया मासिक करने का फैसला लिया।
मैंने जिस वक्त मुख्यमंत्री का पद सभाला, उस वक्त राज्य में प्रति व्यक्ति औसत आय 71 हजार रूपया थी। वर्ष 2017 में यह बढ़कर 1 लाख 73 हजार रूपया पहुंच गई, मैंने सत्त रूप से ग्रामीण क्षेत्रों व वैयक्तिक कल्याण के क्षेत्र में धन पहुंचाने का प्रयास किया। इस प्रयास में पेंशन के बाद बोनस नीति ने सार्थक भूमिका अदा की। उत्तराखण्ड 4 रूपया प्रति लीटर दुग्ध बोनस देने वाला पहला राज्य बना। मिर्च, मडुवा, झौगुंरा, चैलाई (मारसा), फाफर, राजमा, गहत, कौणी, भट्ट आदि के उत्पादन पर भी हमने कृषि विभाग से ‘‘उत्पादन बोनस’’ नीति लागू करवाई। इन उत्पादों पर उत्पादकों तक अधिकत्तम लाभ पहुंचे इस हेतु इनका न्यूनतम खरीद मूल्य निर्धारण, उत्पादन बोनस व खपत प्रोत्साहन नीति लागू की गई। इन्हीं प्रयासों का फल है, इन सभी उत्पादों का बाजार मूल्य कई गुना तक बढ़ा और लाभ सीधे-2 लघु उत्पादकों को मिला। उत्पादकों को लाभ पहंुचाने के लिये हमने फसल वार माइक्रो प्रोत्साहन नीति बनाई, उदाहरण स्वरूप गन्ने का अधिकत्तम खरीद मूल्य के साथ सरकारी प्रोत्साहन के तहत आधुनिक बीज बदल कार्यक्रम प्रारम्भ किया। इसके परिणामस्वरूप गन्ने की उत्पादन इल्ड के साथ प्रति टन शुगर रिकवरी रेट बढ़ा। इसी प्रकार माल्टे व पीले नीबू का न्यूनतम खरीद मूल्य निर्धारित किया। रेशा उत्पादन को प्रोत्साहन देने पर मैं पहले ही लिख चुका हॅूं। देश में वृक्ष बोनस नीति अर्थात कुछ निश्चित प्रजाति के पेड़ लगाओ-तीन सौ व चार सौ रूपया प्रति पेड़ बोनस पाओ। किसी भी राज्य में इस प्रकार की योजना का उदाहरण नहीं है। हमने जल संग्रहण पर भी बोनस देने की नीति बनाई और जल निगम को इसे संचालित करने का दायित्व सौंपा। जल उत्तराखण्ड की शक्ति है, मैंने इस शक्ति के साथ सामान्य व्यक्ति को जोड़ने हेतु जल बोनस की नीति बनाई। ऐसी ही बोनस नीति मैंने रेशम उत्पादकों के लिये बनाई और परिणाम स्वरूप रेशम उत्पादन में 3 गुना वृद्धि दर्ज हुई। मनरेगा के धन का अधिकत्तम लाभ गरीब को मिले, इस हेतु मैंने मनरेगा लक्ष्यगत कार्यों से न केवल महिला मंगल दलों को जोड़ा, बल्कि महिला यदि अपने खेत में भी कार्य कर रही है, उसे मनरेगा श्रमिक के बतौर पारिश्रमिक देने की नीति बनाई। मैंने सुविचारित तौर पर लक्ष्य निर्धारित कर गरीब व महिला तक धन पहुंचाने का निर्णय लिया। इस दिशा में फिल इन दि गैप राशि के तौर पर मुख्यमंत्री राहत कोष का भी उपयोग किया गया। महिला, रूग्ण व काम खोजता नौजवान यदि मेरे सम्मुख आया, तो मैंने उसे आर्थिक सहायता देने में कहीं भी इफ एण्ड बट को प्रभावी नहीं होने दिया। लोगों को इलाज व पौष्टिकता में न्यूनतम खर्च करना पड़े इस हेतु योजनायें बनाई। मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना, राज्य व्याधी निधि का सुधारीकरण, वार एगेन्स्ट ल्यूक्यूरिया (प्रदर) व अनेमिकनेस, सैनटरी नैपकिन वितरण योजना, दाईमां प्रोत्साहन योजना इसी सोच का परिणाम थी। मैंने गर्भवती बेटियों व शिशुओं के लिए तीन पोषण कार्यक्रम चलाये। आंगनबाड़ी केन्द्रों की व्यवस्था व संख्या, दोनों को सुधारा। आंगनबाड़ी, आशा व भोजनमातायें, महिला सामाख्याओं को देय मानदेय में बढ़ोत्तरी की व उन्हें देय प्रदर सुविधायें भी बढ़ायी। वृद्ध पोषण आहार योजना लागू की। महिला स्वयं सहायता समूहों को प्रोत्साहन देने के लिये कई कदम उठाये, इनमें इन्द्रा अम्मा भोजनालयों का संचालन एक है। मेरी बेटी-मेरा धन योजना के तहत बेटी के पैदा होने पर 5+10=15000, पढ़ाई हेतु 50 हजार रूपया तथा विवाह हेतु अतिरिक्त 50 हजार रूपया देने का प्राविधान किया। इस योजना को अब पूर्णतः बदल दिया गया है। मैंने गरीब छात्र व छात्राओं जिनमें अल्पसंख्यक भी सम्मिलित हैं, कई छात्रवृतियां संचालित करवायी, लक्ष्य सीधे-2 गरीब को लाभ पहुचाना था। आज मेरे प्रयासों व योजनाओं का परिणाम है कि, राज्य की प्रति व्यक्ति आय में न केवल बड़ी वृद्धि हुई है, बल्कि आय में महिला-पुरूष के मध्य अन्तर भी पटा है। गरीब व अमीर का अन्तर भी पटा है।
मैं जानता था कि, छोटी-2 योजनायें व नीतियां भले ही राजनैतिक गेम चेन्जर न हो, परन्तु सामान्य व्यक्ति के जीवन में आशा व भरोसा पैदा कर सकती हैं। जब मैंने गंगा-गाय योजना के तहत गरीब महिला को गाय सौंपी या तीन बकरी, एक बकरा पालन योजना के तहत गरीब विधवा को चैक सौंपा, उसके चेहरे पर जीवन के प्रति विश्वास झलकता था। ऐसा ही विश्वास मैंने उन बच्चों में भी देखा, जिन्हें निसबड़ से ट्रेनिंग दिलवाने के बाद अपना पारलर, निटिंग यूनिट या ऐसा ही कोई और काम खोलने के लिये आर्थिक सहायता दी गई। गरीब का चेहरा भावों को दर्पण होता है। जब मैंने मलिन बस्तियों के कुछ लोगांे को देहरादून में मालिकाना हक के कागज सौंपे, तो उनका दमकता हुआ चेहरा उनके हृदय से उठ रहे भावों को शब्दों से अधिक प्रभावी तौर पर बयां कर रहा था। मुझे खुशी है, मैं मलिन बस्तियों के रहने वालों को मालिकाना हक का कानून व उनके लिये एक वृहद आवासीय योजना का रूद्रपुर में शुभारभ करके गया। आपदा में कई लोगों ने अपनी आजीविका खोई, कुछ ने लाखों का नुकसान उठाया, कुछ ऐसे थे भी जो सामान्यतः कहीं गिनती में नहीं थे, ढाबे का नौकर, पिठ्ठूवाला, बाजार का मोची, ककड़ी-मुंगफली या चिप्स बेचने वाला, गाड़ी धोने वाला, आपदा सहायता वितरण मंे उनको भी मैंने याद किया, मुझे इसकी खुशी है। शायद यह पुण्य कार्य कल मेरी पार्टी के काम आ सके। मैं पिछले दिनों नौगांव असम गया था। एक बौना व्यक्ति मिला, मुझे धन्यवाद देते हुये कहने लगा कि, आपने अपने राज्य में बौनों के लिये पेंशन योजना बनाई है, काश मेरे राज्य में भी कोई आपकी तरह सोचे। अच्छे निर्णयों की खुशबू की कोई सीमारेखा नहीं होती है। एक वृद्ध पत्रकार को पत्रकार सहायता कोष से सहायता मिली, उन्हें सहायता देने में मेरा कोई योगदान नहीं था, मगर वे मुझे धन्यवाद देने आये, क्योंकि मैं पत्रकारों, कलाकारों, छायाकारों के लिये ऐसा सहायता कोष गठित करके गया। मैं जब शादी-विवाह में जाता हॅू, उत्तराखण्ड का ढोलची या छलिया नृतक कुछ जोर से ढोल बजाता है या नाचता है। मुझे देखते ही उनके मन में एक भाव आता है, यह वही व्यक्ति है जो हमें नहीं भूला। उनका जोश, ढोल की थाप या पांवों की थिरकन में अभिव्यक्ति पाने लगता है। मैंने राज्य में गन्धर्वों व भूतपूर्व भाटों (हुड़किये) के संरक्षण की योजना बनाई, यह एक विलुप्त होती संस्कृति है। इसे संरक्षण कौन देगा, मैंने यह कार्य भविष्य के लिये नहीं छोड़ा। एक निर्णय में थोड़ी देर हो गई। निर्णय लिया शासनादेश जारी हुआ, मगर पेंशन बंटने से पहले चुनाव अधिसूचना जारी हो गई। यह योजना आज भी अधर में है। मुझे यह तथ्य पांव में चुभे कांटे के तौर पर बड़ी टीस देता है। इस पवित्र कार्य के लिये मुझे अब दूसरों का मोहताज होना पड़ेगा। यह पवित्र कार्य है, शगुन अक्षर पेंशन। हर दूसरे-तीसरे गाॅव में मेरी एक ऐसी बेटी, बहन है, जो पेड़ से गिरकर या गम्भीर चोट खाकर अब हमेशा के लिये बैड रेस्ट में है। वह अपने लिये मौत मांगती है, दस-पांच गांवों में मेरी कोई ऐसी बेटी है, जिसका विवाह नहीं हो पाया या ससुराल से तिरस्कृत होकर मायके में बैठी है या पारिवारिकों कारणों से जिन्होंने विवाह नहीं किया है। मेरी सैकड़ों ऐसी बेटियां हैं, जो जन्म से विकलांग या बचपन में विकलांग हो गई हैं। मेरा जीवन धन्य हुआ कि, मैं ऐसों के लिये पेंशन या सहायता योजना बना पाया।
आज जब रात के एकान्त में, मैं अपने मन के भावों को लिपिबद्ध कर रहा हॅू, मुझे अपनी विधवा माॅ व उसके साथ बिताये गरीबी के दिन बहुत याद आ रहे हैं। मेरे मामा हर साल एक कनस्तर तेल, गुड़ आदि भेजते थे। मेरी माॅ हम भाईयों के सर में तेल डालने के बाद अपने लम्बे से बालों में खाली हाथों को रगड़ती थी, जिनमें तेल के नाम पर केवल चिकनाई होती थी। मेरी आॅखों में आ रहे अश्रुकण मुझसे हिसाब मांग रहे हैं। बता आज भी राज्य में क्यों गरीब व निराश्रित हैं। क्यों सत्ता की चकाचैंद में अपने मूल दायित्व को भूल गया। मैं अपने मन में उमड़ रहे भावों को बार-बार आंकड़े देकर, योजनाओं का हवाला देकर समझा रहा हूूूॅ। मैं अपने आपसे कह रहा हॅू, जिसने पेंशन चाही, चाहे आन्दोलनकारी हों, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आश्रित हों, पुरोहित हों, किसान हों, मजदूर हों, पत्रकार, कलाकार, शिल्पी, ढोलची कोई हों मैंने किसी को नहीं छोड़ा, सबके लिये कुछ न कुछ सहारा ढूंढा। मगर मूल प्रश्न है, आज भी राज्य में लाखों अभावग्रस्त परिवार हैं। उचित चिकित्सा के अभाव में अकाल मृत्यु हो रही है, बालमृत्यु दर, जननी मृत्यु दर व कुपोषण में मात्र आंशिक गिरावट आयी है। प्रदर व खून की कमी आज भी घातक स्तर पर बनी हुई है। लाखों नागरिकों को चिकित्सा के लिये औसतन पचास किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ रही है। समुचित चिकित्सा और दूर है। राज्य मिलेनियम लक्ष्यों को पाने से काफी दूर है। उत्तराखण्ड मिलेनियम गोल्स की दिशा में हिमाचल से काफी दूर हैं। कुछ मामलों में उत्तर पूर्वों के राज्यों से भी पीछे है। मैं इस एकान्त में अपने आपको समझा रहा हॅू। कह रहा हॅू कि, वक्त ही कहां मिला, कम संसाधनों के बावजूद लक्ष्यों की प्राप्ति की ओर बढ़ने की बुनियादें डालकर गया हूॅ। कोई क्षेत्र नहीं छोड़ा है, जहां मैंने कदम नहीं उठाया हो। एक सत्य दिन की उजाले की तरह स्पष्ट है कि, मेरे तीन वर्ष मुख्यमंत्री रहने के बाद भी उत्तराखण्ड में अभाव, गरीबी, विपन्नता, असहायता तथा अवसर हिनता बनी हुई है। इसके लिये एक आन्दोलनात्मक प्रयास आवश्यक है। सत्ता के बन्धनों की जकड़ से बाहर एक विद्रोही प्रयास ही इस लक्ष्य को पा सकता है। अब मेरी उम्र, शरीर व साहस नहीं रह गया, नई पीढ़ी से ही ऐसा विद्रोही मन ढूंढना पड़ेगा। कभी-2 लोग विशेषतः युवा मुझसे मेरे निर्णयों, अर्द्धनिर्णयों, अनिर्णयों को लेकर सवाल करते हैं, तो मुझे उलझन नहीं होती है। अब तो मुझसे मेरा ही मन इन सवालों को लेकर प्रश्न कर रहा है, सही प्रश्न जन्य तड़प मुझे यह सब लिखने को धकेल रही हैै।
क्रमशः
(हरीश रावत)



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