कृषि में ड्रोन की बढ़ सकेगी भूमिका, किसानों के लिए लाभकारी होगा ड्रोन: डॉ मित्तल




कुमार अजय
सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में रविवार को ड्रोन के माध्यम से खेतों में कीटनाशकों व खरपतवार नाशक रसायनों का छिड़काव करने का प्रदर्शन किया गया। इसका उद्घाटन विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ आरके मित्तल ने किया। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि ड्रोन किसानों के लिए काफी लाभकारी साबित होगा।

कुलपति डॉ आरके मित्तल ने बताया की समय व जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ खेती में जहां समस्याओं का आकार व स्वरूप बदला है वहीं, किसानों पर लागत में कमी लाते हुए अधिक उत्पादन का दबाव भी बड़ा है। ऐसे में किसानों की आय को दुगनी करने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिक खेती के नए तौर तरीके अपनाए जाने होंगे। इसमें आधुनिक कृषि मशीनों तथा अन्य उपकरणों का विशेष तौर पर उपयोग करना होगा। उन्होंने बताया कि ड्रोन एक बहुत ही महत्वपूर्ण मशीन है जो खेती के लिए काफी उपयोगी साबित होगी।

कुलपति डॉ आरके मित्तल ने कहा ड्रोन एक तकनीक से परिपूर्ण होने के कारण युवा पीढ़ी को अवश्य ही आकर्षित करेगा और खेती की तरफ कदम बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करेगा। इसकी भविष्य में अति आवश्यकता है। इस समय बहु आयामी क्षमताओं से परिपूर्ण ड्रोन कृषि उत्पादन में प्रबंधन के लिए बहुत योगी और लाभप्रद साबित होगा। ड्रोन पर भारत के साथ-साथ कई अन्य देशों में गहन अध्ययन जारी है। इसको कृषि के विभिन्न कार्यों में दक्षता व सरलता से प्रयोग में लाया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसान भी इसको खरीद कर अपनी खेती किसानी में प्रयोग कर सकेंगे। अब वह दिन दूर नहीं है जब ड्रोन का रिमोट किसानों के हाथ में होगा। इसके लिए कृषि विश्वविद्यालय प्रयास कर रहा है और आज परिसर में इसका प्रदर्शन करके इसकी संभावनाएं और बढ़ा दी है।

कुलपति ने कहा कि जहां यह किसानों के स्वास्थ्य के साथ-साथ उनके समय को बचाएगा वहीं, उनके खर्चे में भी कमी आएगी। इसके माध्यम से नैनो फर्टिलाइजर आदि का समान रूप से छिड़काव अपने खेत में किसान बहुत ही कम समय में कर सकेंगे।

प्रोफेसर आर एस सेंगर ने बताया कि इस ड्रोन की कीमत लगभग 6 लाख रूपये आती है। इसके टैंक की क्षमता 10 लीटर तक की है। 15 मिनट में लगभग 1 एकड़ क्षेत्रफल में अच्छी तरह से छिड़काव इससे किया जा सकता है, जिससे समय की बचत के साथ-साथ लेवर की भी बचत होती है।

ड्रोन कृषि प्रबंधन के संचालन के लिए पारंपारिक हवाई वाहनों की अपेक्षा उच्च परिशुद्धता और कम ऊंचाई की उड़ान भरकर छोटे आकार के खेतों में कार्य करने की क्षमता रखता है। ड्रोन खेतों के हालात जानने के लिए डाटा एकत्र कर और उनका विश्लेषण करने जैसे कार्यों में विभिन्न अवयवों व घटकों के उचित और सटीक रूप से प्रबंधन में सहायक सिद्ध हो सकता है।

डॉ सेंगर ने बताया ऐसी परिस्थितियां जहां परंपरागत मशीनों का उपयोग करना चुनौतीपूर्ण है वहां पर इसका उपयोग किया जा सकता है। जब किसानों के खेत गीले हो उसमें चलने में कठिनाई हो रही हो इसके अलावा गीले धान का खेत हो, गन्ना हो, मक्का व कपास की फसल, नारियल और चाय बागान, लीची के बागान, आम के बागान इत्यादि में विभिन्न ऊंचाइयों पर जाकर ड्रोन की सहायता से आसानी से छिड़काव किया जा सकता है।

कृषि विश्वविद्यालय में ड्रोन के द्वारा किए गए छिड़काव को देखकर किसानों ने प्रसन्नता व्यक्त की और कहा कि यह तकनीक भविष्य में किसानों के लिए काफी लाभकारी होगी। इस अवसर पर प्रेमपाल सिंह, अखिल कुमार, प्रमोद आदि किसान मौजूद रहे।

कृषि विश्वविद्यालय में आज प्रदर्शन के दौरान डॉ बीआर सिंह, डॉ आरएस सेंगर, डॉ लोकेश गंगवार, डॉ गोपाल सिंह, डॉ अशोक यादव, मनोज सेंगर, पीआरओ रितुल सिंह, एसएन पांडे मौजूद रहे। कृषि विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने प्रदर्शन के दौरान मौजूद रहकर इस टेक्नोलॉजी को देखा।

युवाओं को कृषि में देगा रोजगार
ड्रोन रोजगार का एक ऐसा क्षेत्र है इसमें ड्रोन का परिचालन पायलटिंग सीकर ऐसी युवा जिनकी आयु 18 वर्ष से अधिक है लगभग 20 से 30 हजार रूपये प्रति माह की कमाई आसानी से कर सकेंगे। इसके लिए पायलट के पास प्रशिक्षण प्रमाण पत्र होना आवश्यक है। देशभर में कई सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं ने ड्रोन प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रारंभ कर दिए हैं। युवाओं में ड्रोन के प्रति नया उत्साह देखने को मिल रहा है।

खेती में ड्रोन की उपयोगिता
– फसल में रोगों व कीटों के स्तर की जांच व उपचार में
– कीटनाशक व खरपतवार नाशक रसायनों के छिड़काव में
– खेतों की भौगोलिक स्थिति का आकलन करने में
– तरल और ठोस उर्वरकों का छिड़काव करने में
– फसल अवशेषों के अपघटन के लिए जैविक रसायनों का छिड़काव करने में
– सिंचाई व हाइड्रोजेल का छिड़काव करने में
– खेतों एवं जंगलों में बीजों का छिड़काव करने में
– मवेशियों व जंगली जानवरों से फसल को बचाने में
– फसल को कीटों एवं टिड्डियों के आक्रमण से बचाने में
– मृदा के 3D मानचित्र के विश्लेषण में



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