मोदी सरकार की नाकामी के चलते देश के लाखों गरीब बच्चों का जीवन अंधकारमय




नवीन चौहान
गरीबों के सबसे बड़े हितैषी होने का दावा करने वाले देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोरोना संक्रमण काल में गरीब बच्चों को शिक्षा से जोड़े रखने की वर्तमान हालातों की आन लाइन व्यवस्था को प्रभावी तरीके से चलाने में नाकाम साबित हुए। मोदी सरकार की ओर से गरीब बच्चों के लिए सस्ते मोबाइल और टेबलेट उपलब्ध कराने की कोई सरकारी योजना लागू नही की गई। जिसके चलते देशभर के लाखों बच्चे किताबों से कोसों दूर हो गए। बच्चों का पढ़ाई से रिश्ता टूट गया। बच्चों को ​शिक्षित करने की सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभालने वाला मानव संसाधन मंत्रालय भी गहरी नींद में सोया हुआ है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक ने भी सरकारी स्कूलों में आन लाइन शिक्षा को लेकर कोई कवायद शुरू नहीं की गई। शिक्षा मंत्रालय की उदासीनता के चलते भारत के लाखों बच्चों का जीवन अंधकार की ओर जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिन्होंने खुद अपने जीवन का आगाज रेलवे स्टेशन पर चाय बेचकर किया गरीबी को नजदीक से देखने का दावा अक्सर करते रहे है। एक मासूम बालक के रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने से लेकर देश के प्रधानमंत्री बनने तक के सफर के ​कई किस्से उन्होंने बड़े—बड़े मंचों से सुनाए है। ऐसे में गरीबी को अपने जीवन में जीने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से देश की गरीब और मध्यमवर्गीय जनता के हालातों की स्थिति से भली भांति परिचित होना तो बनता है। ऐसे प्रधानमंत्री से जनता को उम्मीदे भी बहुत है। लेकिन कोरोना संक्रमण काल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तमाम दावों की कलई खुल गई। गरीब बच्चों के लिए उनकी सोच भी पता चल गई। वह वास्तविक रूप से बच्चों के लिए कितना संजीदा है। जी हां 22 मार्च 2020 को भारत में जनता क्रफ्यू के साथ ही संपूर्ण भारत बंद हो गया। उसके बाद लॉक डाउन की प्रक्रिया शुरू हुई तो स्कूल बंद हो गए। प्राथमिक शिक्षा पूरी तरह से ठप्प हो गई। निजी स्कूलों ने बच्चों को किताबों से जोड़ने के लिए आन लाइन पढ़ाई का तरीका निकाल लिया। हालांकि इंटरनेट के फेलियर के चलते यह शिक्षा महज खाना पूर्ति ही है। लेकिन फिर भी बच्चे किताबों को खोलने बंद करने के कारण ही उनके संपर्क में आ गए। निजी स्कूलों के शिक्षकों ने मेहनत की तो बच्चों ने थोड़ा ही सही पर पढ़ना तो शुरू किया। लेकिन अगर बात करें सरकारी स्कूलों की तो वहां तो ताला लटका हुआ है। सरकारी स्कूल के बच्चे घरों में है। बच्चों का और शिक्षकों का संपर्क टूट चुका है। ऐसे में बच्चों को आन लाइन पढ़ाई कराने की सरकारी व्यवस्था पर सवाल उठना लाजिमी है। आखिरकार मार्च 2020 के बाद से केंद्र सरकार और मानव संसाधन मंत्रालय ने सरकारी स्कूल के बच्चों की पढ़ाई जारी रखने के लिए कौन सी योजना बनाई। अगर कोई योजना बनाई तो उस पर क्या हुआ। बच्चों को कंप्यूुटर, मोबाइल और टेबलेट मिलेंगे या वो खुद खरीदेंगे। जो परिवार सरकारी राशन पर निर्भर है वह मोबाइल, कंप्यूटर को खरीद सकता है। भारत की बेटियों को शिक्षित करने वाले प्रधानमंत्री के तमाम दावों का क्या हुआ। वास्तव में केंद्र सरकार ने सरकारी स्कूल के बच्चों के लिए कोई ठोस कार्य योजना बनाकर कार्य शुरू किया है। अगर कारोना काल की अवधि बढ़ी तो गरीब बच्चों के जीवन का अंधकायमय होना तय है।
वैसे आपकी जानकारी के लिए एक बात बतानी महत्वपूर्ण है कि वर्तमान ​केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री डॉ रमेश पोखरियान निशंक ने खुद अपना जीवन अभावों में गुजारा है। वह खुद हरिद्वार के एक आश्रम के स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर चुके है। ऐसे में उनको खुद गरीबी को नजदीक से देखने का अच्छा खासा अनुभव है। फिर उनसे गरीब बच्चों के ​भविष्य को संवारने की उम्मीदे अधिक है।

विकीपीडिया के अनुसार केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने कनेडियन कंपनी से भारत के गरीब बच्चों को सस्ते टेबलेट देने की लिए बातचीत की थी। सस्ते टेबलेट के लिए प्रस्ताव बनाकर भेजा गया। जिसमें दो से ढाई हजार रूपये के टेबलेट को गरीब बच्चों को देने की तैयारी की जा रही थी। लेकिन ये प्रस्ताव महज प्रस्ताव ही बनकर रह गया। इस पर कोई ठोस कदम नही उठाया जा सका।



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