कोरोना संक्रमित मरीज की जिंदगी भगवान भरोसे, ​चिकित्सकों का योगदान




गगन नामदेव
भारत आस्था और विश्वास का देश है। जहां भगवान को सर्वोपरि माना गया है। भगवान की ही आराधना की जाती है। पंचतत्वों का ये शरीर भी भगवान की ही सबसे खूबसूरत कलाकृति है। भगवान की ये कलाकृति अर्थात मानव शरीर फिलहाल दौर में कोरोना संक्रमण से मुकाबला कर रहा है। कोरोना संक्रमण से बचने के लिए मनुष्य छिपता फिर रहा है। संक्रमित मरीज भगवान से ही अपनी जिंदगी की गुजारिश कर रहे है। कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए चिकित्सकों के प्रयास जारी है। हालांकि भारत में कोरोना संक्रमण से मानव शरीर को सुरक्षित बचाने के लिए कोई वैक्सीन चिकित्सकों के पास उपलब्ध नही है। ​चिकित्सकों की कोरोना संबंधी पॉजीटिव और नेगेटिव टेस्टिंग रिपोर्ट ही मनुष्य के मस्तिष्क की मनोदशा को तय कर रही है। अगर रिपोर्ट पॉजीटिव है तो मरीज के दिल में मौत से मुकाबला करने को तैयार रहने की घंटी बज रही है। लेकिन रिपोर्ट अगर नेगेटिव है तो मानों उनको जीवनदान मिल गया हो। कुछ इसी तर्ज पर इंसान का वर्तमान वक्त गुजर रहा है। लेकिन ऐसे में चिकित्सकों के प्रयासों की भी सराहना करनी होगी जो मरीजों की देखभाल कर रहे है। मरीज का मनोबल बढ़ा रहे है। मरीज को अपनी मानसिक स्थिति को मजबूत रखने के लिए प्रेरित कर रहे है। कोरोना संक्रमित मरीज को मनोबल बढ़ाने की घुट्टी दे रहे है।
धर्म गुरू का मानना है कि इंसान के जन्म और मृत्यु का वक्त निर्धारित होता है। जन्म के साथ ही मृत्यु भी निश्चित होती है। इसी​जबकि मानव योनि में किसी भी इंसान का जन्म एक उददेश्य की पूर्ति के लिए होता है। भगवान के आदेशानुसार ही इंसान जन्म लेने के बाद उददेश्यपूर्ति के लिए कार्य करता है। माना जाता है कि इंसान के कर्म ही उनका बहीखाता तैयार करते है। अच्छे और बुरे कार्यो की सजा मनुष्य को जरूर मिलती है। विद्धानों का मानना है कि इंसान का जीवन लाभ—हानि, यश—अपयश और जीवन—मृत्यु के बीच में है। ऐसे में कोरोना काल का प्रभाव भी कुछ ऐसा ही है। इंसान तो अपना जीवन उतना ही पायेगा, जितना निर्धारित है। लेकिन कुछ चिकित्सकों को यश जरूर मिलेगा। आपको ये बात बतानी इसलिए जरूरी है कि कोरोना संक्रमित कुछ मरीज बिना किसी औषधि के भी ठीक हो गए। उनको कोई समस्या नही हुई। ना ही उनको बुखार आया और ना ही उनको खांसी आई। बस चिकित्सकों की रिपोर्ट पॉजीटिव आई। जो दो दिन के बाद नेगेटिव भी आ गई। आखिरकार ये सब माजरा है क्या। जो इंसान की समझ से परे है। बस पूरा खेल एम्यूनिटी पावर का है क्या। मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर ही सब कुछ निर्भर तो कोरोना संक्रमित मरीज अस्पताल में क्यो है। उनका इलाज तो घर पर भी बेहतर हो सकता है। आखिरकार संक्रमित मरीज को अस्पताल में भर्ती करा दिया जाता है। उसकी शुगर बढ़ती—घटती रहती है। चिकित्सक कुछ बताने को तैयार नही है। ये आखिरकार हो क्या रहा है। क्या भगवान भरोसे ही कोरोना संक्रमित मरीज का इलाज चल रहा है। या फिर चिकित्सकों का कोई योगदान है। संक्रमण की कोई वैक्सीन नही है फिर भी अस्पताल में मरीज है। अस्पताल में मरीज इसलिए है कि उसकी अन्य बीमारियां पर नजर बनाकर रखी जा सके। लेकिन अन्य बीमारियों की देखभाल इसलिए नही हो पा रही कि संक्रमण हमको ना लग जाए। अब तो भगवान ही बताए। कोरोना का क्या हाल है।



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