नवीन चौहान.
कोरोना संक्रमण प्रदेश में तेजी से पैर पसार रहा है। अभी नए केस मिलने में गिरावट नहीं आ रही है। हरिद्वार भी इस संक्रमण से बचा नहीं है, यहां भी रोजाना मिलने वाले पॉजिटिव केस रिकार्ड तोड़ रहे हैं। ऐसे में लोग कह रहे हैं कि कोरोना से रोते बिलखते हरिद्वार के लिए संत और सरकार जिम्मेदार हैं।
प्रदेश सरकार यदि कुंभ का आयोजन प्रतीकात्मक रूप से करती तो शायद हरिद्वार में यह आपदा इतनी तेजी से न फैलती, संत समाज भी यदि पहल करते और कुंभ भव्य आयोजन की जिद न करते तो भी शायद हरिद्वार इतना ना रोता बिलखता। कोरोना आपदा में हरिद्वार के कई संतों ने भी अपनी असमय जान गंवाई है। कोरोना ने अखाड़ों के कई बड़े संतों को लील लिया है। रोजाना मिल रहे मरीजों की संख्या इतनी हो गई है कि अस्पताल की व्यवस्थाएं भी बौनी दिख रही है।
सरकारी आंकड़ों में मरने वाले मरीजों की संख्या और शमशान में रोजाना जल रही चिताओं की संख्या में काफी अंतर है। जिसे देखकर यही कहा जा सकता है कि घर पर सेल्फ इलाज करा रहे मरीजों की मौत भी हो रही है, ऐसे मरीज सरकारी आंकड़े में दर्ज नहीं हो रहे हैं। कोरोना संक्रमण को बढ़ता देख कोविड कर्फ्यू भी लगाया गया है। संक्रमण बढ़ने से लगाए गए कोविड कर्फ्यू से एक बार फिर बाजारों में सन्नाटा छा गया है।
हरिद्वार जिले के व्यापारी दो साल से मंदी की मार झेल रहे हैं। पिछले साल कोरोना काल में लगे लॉकडाउन के बाद गरमी के सीजन में कोई यात्री हरिद्वार नहीं आया, कावंड यात्रा से व्यापारियों संजीवनी मिलती है लेकिन पिछले साल कांवड यात्रा भी स्थगित रही। कुंभ से थोड़ी आस जगी थी इस बार वह भी टूट गई। कुंभ का आयोजन हुआ लेकिन व्यापार की दृष्टि से सूना रहा।
शहर के व्यापारियों का कहना है कि दो साल में उनका कारोबार पूरी तरह चौपट हो चुका है। सरकार की ओर से भी कोई राहत या मदद नहीं मिल रही है। यदि सरकार ने जल्द ही कोई घोषणा व्यापारियों के लिए नहीं की तो व्यापारियों के सामने भूखों मरने की नौबट आ जाएगी।