सवा छह बजे के बाद होगा होलिका दहन




होलाष्टक का आरम्भ 23 से, 2 मार्च को खेला जाएगा रंग
नवीन चौहान, हरिद्वार। 1 मार्च को होने वाले होली पर्व के होलाष्टक होलाष्टक 23 फरवरी से लगेंगें। जो होलिका दहन तक रहेगे। 8 दिनों के होलाष्टक में सभी प्रकार के शुभ और मांगलिक कार्यों का निषेध रहेगा।
पं. देवन्द्र शुक्ला के अनुसार भारतीय मुहूर्त विज्ञान व ज्योतिष शास्त्र प्रत्येक कार्य के लिए शुभ मुहूर्तों का शोधन कर उसे करने की अनुमति देता है। कोई भी कार्य यदि शुभ मुहूर्त में किया जाता है तो वह उत्तम फल देने वाला हो। इसी मंशा के साथ कार्य का सम्पदान किया जाता है। यू ंतो भारतीय संस्कृति में प्रतिदिन त्यौहार होते हैं। किन्तु इन त्यौहारों में चार होली, दीपावली, रक्षा बंधन व दशहरा प्रमुख बताए गए हैं।
इस वर्ष होलाष्टक 23 फरवरी से प्रारंभ हो रहा है, जो 1 मार्च होलिका दहन के साथ ही समाप्त हो जाएगा। आठ दिनों का यह होलाष्टक दोष रहेगा। जिसमें सभी शुभ कार्य वर्जित हैं।
इस समय विशेष रूप से विवाह, नव निर्माण व नए कार्यों को आरंभ नहीं करना चाहिए। पं. देवेन्द्र शुक्ला के अनुसार इन दिनों में किए गए कार्यों से कष्ट, पीड़ा की आशंका रहती।
होलाष्टक से तात्पर्य है कि होली के 8 दिन पूर्व से है अर्थात धुलंडी से आठ दिन पहले होलाष्टक की शुरुआत हो जाती है। माघ पूर्णिमा से होली की तैयारियां शुरु हो जाती है। होलाष्टक आरंभ होते ही दो डंडों को स्थापित किया जाता है, इसमें एक होलिका का प्रतीक है और दूसरा प्रह्लाद से संबंधित है। ऐसा माना जाता है कि होलिका से पूर्व 8 दिन दाह-कर्म की तैयारी की जाती है। यह मृत्यु का सूचक है। इस दुःख के कारण होली के पूर्व 8 दिनों तक कोई भी शुभ कार्य नही होता है। जब प्रह्लाद बच जाता है, उसी खुशी में होली का त्योहार मनाते हैं। ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव की तपस्या को भंग करने के अपराध में कामदेव को शिव जी ने फाल्गुन की अष्टमी में भस्म कर दिया था। कामदेव की पत्नी रति ने उस समय क्षमा याचना की और शिव जी ने कामदेव को पुनः जीवित करने का आश्वासन दिया। इसी खुशी में लोग रंग खेलते हैं। वहीं हिरण्याकश्यप की बहन होलिका, जिसे अग्नि द्वारा भस्म न होने का वरदान था। इसी के चलते वह प्रह्लाद को भस्म करने के लिए अग्निकुण्ड में बैठी थी। होलिका के जल जाने और भक्त प्रह्लाद के बच जाने के कारण यह होली का पर्व मनाया जाता है। जिस दिन होलिका अग्नि कुण्ड में बैठी थी उसी दिन होली था भक्त प्रह्लाद के अग्नि से सकुशल बच जाने के कारण दुल्हेडी का पर्व रंग खेलकर मनाया जाता है।
करीब 15 दिन तक चलने वाला रंगों का त्यौहार 23 फरवरी से शुरू हो जाएगा। क्योंकि 23 फरवरी से होलाकाष्टक शुरू हो रहे हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में होलाष्टक के पहले दिन ही लोगों को होलिका की तैयारी शुरू कर देते हैं। कुछ स्थानों पर तो होली की तैयारियां एक महीने पहले ही शुरू हो जाती हैं। वहीं उत्तर प्रदेश में बरसाना और ब्रज क्षेत्र को छोड़ दें तो ज्यादातर इलाकों में हालिका दहन के बाद ही रंग और गुलाल का उत्सव शुरू होता है। यहां होलिका दहन से पूर्व रंग खेलना अच्छा नहीं माना जाता है। इन सबके बावजूद एक महत्वपूर्ण चीज है होलिका दहन का शुभ महूर्त जिसके साथ ही होली का त्यौहार पूरे विधि विधान से शुरू होता है। इस बार होलिका दहन एक मार्च और रंगोत्सव दो मार्च को है।
इस बार होलिका दहन का शुभ मुहुर्त सांय 6 बजकर 16 से 8 बजकर 47 मिनट तक है। इससे पूर्व भद्रा का पूंछ काल 3 बजकर 54 से 4 बजकर 58 तक रहेगी। भद्रा का मुख काल 4 बजकर 58 मिनट से 6 बजकर 45 तक रहेगा। फाग का पर्व 2 मार्च को प्रातः 06 बजकर 21 मिनट के बाद से आरम्भ होगा। जबकि 1 मार्च को पूर्णिमा तिथि का आरम्भ प्रातः 08 बजकर 57 मिनट से होगा। जिसका समापन 2 मार्च को प्रातः 6 बजकर 21 मिनट पर होगा।



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