नवीन चौहान
कोरोना संक्रमण काल में मोदी सरकार की पोल खुल गई है। मोदी सरकार रक्षा मोर्च पर सफल तो शिक्षा र्मोचे पर पूरी तरह से फेल साबित हुई है। देश की शिक्षा व्यवस्था ठप्प पड़ चुकी है। निजी स्कूल आन लाइन पढ़ाई के नाम पर खेल कर रहे है। तो सरकारी स्कूलों के बच्चों के लिए केंद्र सरकार की ओर से कोई महत्वपूर्ण योजना लागू नही की गई है। जिसके चलते सरकारी स्कूलों के बच्चों का किताबों से नाता टूट गया है। गरीब बच्चों के लिए सस्ते टेबलेट और मोबाइल तक उपलब्ध कराने के लिए कोई पहल नही की गई। टीवी पर दूरदर्शन के जरिए पढ़ाने के दावे अभी हवा हवाई है। गरीबों के घरों में टीवी कहां से आयेगी। तो मान लिया जाए कि कोरोना ने भारत सरकार को आईना दिखला दिया है। भारत को उसकी वास्तविक हकीकत से परिचित करा दिया। देश की अर्थव्यवस्था धड़ाम है। कारोबार चौपट हो चुके है। युवा बेरोजगार हो रहे है। ऐसे में भारत के भविष्य अर्थात बच्चों का किताबों से नाता टूटना किसी भी देश की सरकार की नाकामी को उजागर कर रहा है। फिलहाल कोरोना से जंग लंबी चलेगी तो मोदी सरकार को भी सरकारी स्कूल के गरीब बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए प्रभावी कदम उठाने होंगे।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश तरक्की के मार्ग पर अग्रसरित दिखाई पड़ रहा था। भारत सरकार रक्षा, चिकित्सा, शिक्षा सभी क्षेत्रों में सफल होने का दंभ रही थी। मोदी सरकार भारत को विश्व गुरू बनाने का सपना दिखाने लगी थी। देश की जनता की उम्मीद जगने लगी कि गरीबी को नजदीक से देखने वाला देश का प्रधानमंत्री ही भारत को सिरमौर बना सकता है। लेकिन मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में चीन के बुहान से भारत पहुंचे कोरोना संक्रमण ने देश की आंतरिक व्यवस्थाओं की पोल खोल कर रख दी। देश की अर्थव्यवस्था और मुसीबतों के दौर में जूझने की क्षमता को उजागर कर दिया। भारत कोरोना के पहने की झटके में हिल गई।सरकार को देश की जनता से मदद के लिए गुहार लगानी पड़ी। पीएम केयर्स फंड में दान देने की अपील की गई। देश के नागरिकों का फर्ज भी बनता है कि संकट की स्थिति में अपना सर्वस्व देश को समर्पित कर दिया जाए। जनता ने ऐसा किया भी। कोरोना काल में कई उदाहरण है जब देश की जनता ने अपनी जमा पूंजी राष्ट्र को समर्पित कर दी। लेकिन हम यहां पर बात कर रहे है शिक्षा व्यवस्था की। कोरोना काल के पांच महीनों के दौरान केंद्र सरकार ने सरकारी स्कूलों की कोई सुध नही ली। सरकारी स्कूल के बच्चे किस हाल में है। वो क्या कर रहे है। उनकी पढ़ाई कैसे चलेगी। गरीब बच्चों का आगे की शिक्षा को कैसे जारी रखा जायेगा। क्या आन लाइन पढ़ाई हो पायेगी या नही। आखिरकार पांच माह के दौरान केंद्र सरकार और उनके मानव संसाधन मंत्रालय ने कौन से योजना बनाई जो बच्चों को किताबों से जोड़ पाए। ऐसे में केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक का बयान कि पहले कोरोना से बच्चों की सुरक्षा और फिर शिक्षा ये चौंकाने वाला है। अब सरकार ये ही बताए कि गरीब बच्चों की सुरक्षा के लिए सरकार ने क्या किया। गरीब बच्चे सड़क किनारे झोपड़ी डालकर और पेड़ किनारे खेल रहे है। लेकिन सरकार को शायद इन गरीबों की कोई फिक्र ही नही है। वही दूसरी ओर निशंक जी स्वयं प्रभा के 32 चैनल पर पढ़ाई शुरू कराने की बात कर रहे है। तो इस पर भी सवाल है कि देश के सभी गरीबों के घरों में टीवी है। जो बच्चे सरकारी राशन से पेट भरते है। सरकारी स्कूल भरोसे पढ़ते है। उनको टीवी के सामने बैठकर पढ़ाया जा सकता है। बात रक्षा क्षेत्र की करें तो मोदी सरकार ने पाकिस्तान को धूल चटा दी। भारतीय सैनिक विश्व में सबसे ताकतवर है। लेकिन अगर बात भारत के भविष्य अर्थात गरीब बच्चों की करें तो ये कोरोना उनका भविष्य ही ना बिगाड़ दे।