प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के अद्भुत ज्ञान के कायल




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नवीन चौहान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के प्रकृति प्रेम के कायल हैं. वो कई दशकों से वन संरक्षण की मुहिम को चला रहे हैं. उत्तराखंड के विभिन्न जनपदों में सैकड़ों पौधों का रोपण कर चुके हैं. गढ़वाल से लेकर कुमाऊं और तराई के इलाकों में पौधारोपण कर रहे हैं. उनका वनस्पति विज्ञान में ज्ञान भी अद्भुत है. इस बात का जिक्र प्रधानमंत्री ने मन की बात कार्यक्रम में भी किया है।

पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत मृदुभाषी और सरल स्वभाव के व्यक्ति है। यही वजह है कि उनका हर कोई कायल है। विपक्ष भी उनकी शालीनता को मानता है। अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल में उन्होंने जो कार्य किये वह सभी धरातल पर दिखायी दिये। विपक्ष को उनके कार्यकाल में अंगुली उठाने का मौका तक नहीं मिला।

त्रिवेंद्र सिंह रावत का प्रकृति प्रेम किसी से छिपा नहीं है। वह प्रदेश में हजारों वृक्षारोपण कर चुके हैं। वह हमेशा अपने साथ के लोगों को अधिक से अधिक पेड़ लगाने के लिए प्रेरित करते हैं। उनका मानना है कि जब तक प्रकृति संरक्षित है मानव जीवन सुरक्षित है। उन्होंने अपने प्रयास से पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। आज भी वह वृक्षारोपण की मुहिम को आगे बढ़ाए हुए हैं।

उत्तराखंड के लोकपर्व पर भी वह जनता से सीधे जुड़े रहते हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत का मानना है कि हमारी पहचान संस्कृति से ही है, संस्कृति से हम तभी जुड़ सकते हैं जब हम अपने रीति रिवाज और परंपराओं का निर्वहन करते रहे। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल में महिलाओं और युवाओं को स्वावलंबी बनाने की दिशा में कार्य किया।

प्रकृति के प्रति त्रिवेंद्र सिंह रावत की सोच यही है कि हम जितना प्रकृति से लेते हैं उससे कहीं अधिक उसे वापस लौटाना हो, तभी प्रकृति भी हमें निरंतर देने की स्थिति में रहेगी। यदि हम प्रकृति से केवल लेते रहे तो आने वाली पीढ़ियों को देने के लिए प्रकृति के पास कुछ नहीं बचेगा।

बात वर्ष 2009—10 की है जब त्रिवेंद्र सिंह रावत प्रदेश की सरकार में कृषि मंत्री थे। तब भी उनका प्रयास रहता था कि पहाड़ के जो गांव उजड़ रहे हैं उन्हें किसी तरह वापस बसाया जाए। गांव के लोगों को गांव में ही रोका जाए, उन्हें गांव में रोजगार के साधन उपलब्ध कराए जाए।

त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपनी इसी सोच के तहत रायपुर की ओर एक गांव को फिर से पुन​र्जीवित करने का प्रयास किया था। इस गांव का नाम था तिमलीयह गांव पूरी तरह उजड़ चुका था, गांव के लोग पलायन कर नीचे आ गए थे। तब त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस गांव को फिर से बसाने के लिए गांव में बड़ी संख्या में औषधीय पौधों का रोपण कराया था।

इस गांव में वह स्वयं करीब 9 किमी की पैदल चढ़ायी चढ़कर गए थे। इस गांव में सेलाकुई स्थित सगंध पौधा केंद्र संस्थान के वैज्ञानिकों के निर्देशन में यहां औषधीय पौधों का रोपण कराया था। तब उन्होंने गांव के लोगों से अपील करते हुए कहा था कि वह अपने गांव को न छोड़े, गांव में रहकर ही अपने प्रदेश के विकास में भागेदार बने।



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