भाजपा की प्रयोगशाला से निकले तीसरे मुख्यमंत्री पुष्कर धामी कर पायेंगे चमत्कार, होगा जनता का उद्धार





नवीन चौहान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डबल इंजन की सरकार में साढ़े चार साल में तीन मुख्यमंत्री बदलने के अभिनव प्रयोग हुए। त्रिवेंद्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत के बाद अब तीसरा अभिनव प्रयोग खटीमा के विधायक पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाने के रूप में किया गया है। 44 साल के युवा चेहरे को मुख्यमंत्री पद की कमान मिलने के बाद से ही उत्तराखंड के भाजपा विधायकों में अंर्तकलह साफ दिखाई देने लगी। केबिनेट मंत्री सतपाल महाराज और हरक सिंह रावत की नाराजगी खुलकर सामने आई। इस नाराजगी को दूर करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को हस्तक्षेप करना पड़ा और नाराज विधायकों को मनाने में कामयाब रहे।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शपथ ग्रहण से पहले पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत के घर पहुंचकर मुलाकात की और शपथ ग्रहण के लिए आमंत्रित किया। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक नाराज विधायकों को मनाने में जुटे रहे और सब कुछ सामान्य दिखाने का प्रयास करते रहे।
फिलहाल पुष्कर सिंह धामी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही कार्यभार संभाल लिया। उनके साथ ही तीरथ सिंह रावत की सरकार में मंत्री रहे तमाम विधायकों ने भी तीसरी बार शपथ ले ली। यहां तक तो सभी कुछ सामान्य नजर आ रहा है। संवैधानिक संकट का हवाला देते हुए तीरथ सिंह रावत से इस्तीफा दिलवाया गया।
लेकिन इस पूरे घटनाक्रम को समझने की भी जरूरत है। भाजपा की वर्तमान स्थिति को जानने और जनता के मिजात को परखने की भी बात सामने आने लगी है। फरवरी 2022 में विधानसभा चुनाव है। भाजपा को जनता के बीच वोट मांगने जाना है। जबकि प्रचंड बहुमत की सरकार में तमाम विधायक नाखुश है। संभावना है कि कांग्रेस से टूटकर भाजपा में शामिल होने वाले विधायक खुद को सेफ जोन में ले जाने का जुगत में लग गए हो।
बताते चले कि तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे की अटकलों के बीच ही केबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने मुख्यमंत्री बनने के लिए दिल्ली की दौड़ लगा दी थी। सतपाल महाराज की हरसते इस बार भी अधूरी रह गई। हालांकि भाजपा हाईकमान ने उनको मुख्यमंत्री बनाने का आश्वासन दिया था। लेकिन कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले सतपाल महाराज भाजपा हाईकमान का भरोसा जीतने में नाकामयाब रहे। यही कारण है कि बेहद ही नाटकीय अंदाज में उनको विधानमंडल की बैठक में पुष्कर सिंह धामी के नाम प्रस्तावित किया गया। सभी विधायकों ने एक स्वर में उनके पुष्कर धामी के नाम पर सहमति दे दी। जब विधानमंडल की बैठक में पूछा गया कि कोई अन्य दावेदार है तो किसी ने भी सतपाल महाराज का नाम नही लिया। भाजपा संगठन और अनुशासन विरोध करने की सहमति नही देता है। यही कारण है कि पुष्कर सिंह धामी का नाम पर सभी की सहमति मिली।
वैसे बताते चले कि भाजपा हाईकमान युवा चेहरे पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला दिल्ली में ही कर चुकी थी। परिवेक्षक नरेंद्र सिंह तोमर और प्रभारी ने विधानमंडल की बैठक आयोजित करके महज औपचारि​कता को ही पूरा किया और हाईकमान के फैसले का अनुपालन कराया। लेकिन अब देखने वाली बात यह है कि आगामी कुछ महीनों बाद ही विधानसभा के चुनाव है। कांग्रेस इस घटनाक्रम के बाद से ही हमलावर हो चुकी है। कांग्रेस सत्ता हथियाने के लिए पुरजोर प्रयास करेंगी। जबकि भाजपा अपनी सत्ता को बचाने के लिए मेहनत करेगी।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी युवा है और ऊर्जावान है। उनके सबसे करीबी केबिनेट मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद और लक्सर विधायक संजय गुप्ता है। पुष्कर सिंह धामी के मुख्यमंत्री बनने के ​बाद से स्वामी यतीश्वरानंद का कद बढ़ा हुआ है। ऐसे में मुख्यमंत्री उनकी सलाह पर कार्य करने का संदेश साफ दिखाई देने लगा है।
वही दूसरी ओर करीब 90 हजार करोड़ से अधिक के कर्ज में डूबे प्रदेश की अर्थव्यवस्था को संभालने की चुनौती मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर है। युवाओं को रोजगार, पलायन की समस्या, महंगाई को नियंत्रित करना और बेरोजगारी को कम करने की दिशा में कार्य करते हुए शिक्षा, चिकित्सा को बेहतर बनाने की तमाम चुनौतियां भी है।
उत्तराखंड की जनता मूकदर्शक बनकर भाजपा के प्रयोग देख रही है। जनता बेहद शांत है। भाजपा अपने कैडर वोट के आधार पर साल 2022 की जीत को सुनिश्चित मानकर चल रही है। प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक 60 प्लस के दावे पर अडिग है। लगातार तीसरा मुख्यमंत्री बदलने के बाद भाजपा की प्रदेश में फजीहत हो रही है। वर्तमान परिस्थिति भाजपा के विपरीत है। ऐसे में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अग्निपरीक्षा से गुजरने के लिए तैयार होना होगा। वैसे तो मुख्यमंत्री की कुर्सी सत्ता का परमसुख देगी। लेकिन इस कुर्सी के साथ मिली जिम्मेदारियां उनको परिपक्व और योग्यता में निखार भी देगी।
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने चार साल के कार्यकाल में सत्ता की कुर्सी पर बैठकर जीरो टालरेंस की मुहिम और पारदर्शी सरकार चलाने की सोच को आगे बढ़ाया तो अपनों से ही विधायकों से नाराजगी मोल ले ली। त्रिवेंद्र की ईमानदारी ने तोहफे में विरोधियों की लंबी चौड़ी फौज दे दी। सलाहकार ऐसे मिले कि अपने ही त्रिवेंद्र की ईमानदारी और विकास कार्यो को जनता तक नही पहुंचा सके। वही दूसरे मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को उनकी सादगी और सरलता ही भारी पड़ गई। मुख्यमंत्री बनने की खुशी को ठीक तरीके से महसूस भी नही कर पाए और भाजपा हाईकमान के फरमान के सम्मान में कुर्सी से विदाई ले ली। ऐसे में अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की बारी है कि उनके सलाहकारों और टीम सजगजा से जनहित के कार्यो को प्राथमिकता दे। व्यक्तिगत हितों को छोड़कर जनहित के फैसले की पुष्कर को लोकप्रियता दिलाने में महती भूमिका अदा करेंगे। कुल मिलाकर कहा जाए तो पुष्कर धामी को क्रीज पर बल्लेबाजी करने का मौका मिला है तो बेहतरीन शॉट लगाने ​होंगे। खुद का विकेट बचाकर रखना होगा और ​निर्णायक मंडल अर्थात भाजपा हाईकमान का दिल जीतने में भी सफलता पानी होगी। युवा मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल किया है तो कीर्तिमान बड़े बनाने होंगे। बधाईयां मिलने का सिलसिला शुरू हो चुका है तो न्यूज127 की ओर से भी आपको मुख्यमंत्री बनने की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएं।



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