नवीन चौहान
उत्तराखंड के निजी चिकित्सक अपने आत्मसम्मान को बचाए रखने के लिए एक सप्ताह से संघर्ष कर रहे है। निजी चिकित्सक एक सप्ताह से हड़ताल पर है। निजी चिकित्सालयों में इलाज करा रहे मरीज पूरी तरह से हकलान है। जबकि सरकार की ओर से अभी तक इन चिकित्सकों की कोई सुध नही ली गई है। सरकार निजी चिकित्सकों की व्यवस्थाओें को पूरी तरह से ध्वस्त करने पर तुले है। उत्तराखंड सरकार के कद्दावर मंत्री मदन कौशिक ने निजी चिकित्सकों की समस्या का हल निकालने में नाकाम रहे है। जबकि विपक्षी पार्टी कांग्रेस निजी चिकित्सकों के समर्थन में सरकार पर दबाव बना रही है। ऐसे में निजी चिकित्सकों और सरकार के बीच की लड़ाई लंबे एक मुश्किल दौर में जा पहुंची है।
उत्तराखंड में चिकित्सक अपने आत्मसम्मान को बचाये रखने के लिए किसी कॉरपोरेट अस्पताल में नौकरी करने की वजाय अपने निजी क्लीनिक और अस्पताल खोलकर मरीजों का इलाज करते है। बड़े कॉरपोरेट घरानों के अस्पतालों मंहगी नौकरी से किनारा कर एक आम आदमी के इलाज को अपना सेवा धर्म मानते है। निजी चिकित्सालयों ने अपने अस्पताल छोटे से स्थान पर बनाये हुए थे। लेकिन इन निजी चिकित्सकों के इस आत्मसम्मान को उस वक्त करारा झटका लगा जब केंद्र सरकार ने क्लीनिकल इस्टैब्लिसमेंट एक्ट के दायरे में निजी चिकित्सालयों को लपेट लिया। इस एक्ट के मानक पूरे कर पाना निजी चिकित्सालयों के बस की बात नहीं है। जिसके बाद निजी अस्पतालों के चिकित्सकों ने इस एक्ट का विरोध करना शुरू कर दिया। लेकिन हद तो तब हो गई जब सरकार ने नियमों में कोई ढील नही दी। बात आगे बढ़ी तो निजी चिकित्सक हड़ताल पर चले गए। करीब सात दिनों से उत्तराखंड के निजी चिकित्सक हड़ताल पर है। सरकार की ओर से इन चिकित्सकों की कोई सुध नही ली गई। निजी चिकित्सकों के सामने दुविधा की स्थिति आ गई। या तो वो अस्पताल बंद करके बड़े अस्पतालों की नौकरी करें या सरकारी नौकरी में चले जाए। फिलहाल निजी चिकित्सक उलझन में है। सरकार निजी चिकित्सकों को रास्ता देने को तैयार नही है। ऐसे में निजी चिकित्सकों के सामने धर्म संकट आ गया है। फिलहाल निजी चिकित्सकों की लड़ाई में कांग्रेस अपना हित देखते हुए उनकी पैरवी कर रही है। ऐसे मे अगर सरकार ने जल्दी कोई कदम नही उठाया तो निजी चिकित्सकों का एक बड़ा वोट बैंक भाजपा से किनारा कर लेगा। हालांकि फिलहाल चिकित्सकों को अपना आत्मसम्मान बचाये रखना मुश्किल हो रहा है।