गूंगी-बहरी त्रिवेंद्र सरकार, ना मरीजों की चिंता ना डॉक्टरों की सुध




-संवेदनहीन त्रिवेंद्र सरकार ने आठ दिनों में नही निकाला कोई बीच का रास्ता
नवीन चौहान, हरिद्वार।
उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार पूरी तरह से संवेदनहीन हो चुकी है। करीब आठ दिनों से बंद निजी चिकित्सालयों के चिकित्सकों की सरकार ने कोई सुध ली है। और ना ही सरकार के किसी जिम्मेदार मंत्री ने मरीजों पर चिंता जाहिर की है। मरीज इलाज के लिए इधर-उधर भटक रहे है। लेकिन सरकार की ओर से इन चिकित्सक संगठनों से बातचीत करने की कोई पहल नही की गई है। निजी चिकित्सक मरीजों की तकलीफ और सरकार के असंवेदनशील व्यवहार से असमंजस की स्थिति में फंसे है। क्लीनिकल इस्टैब्लिमेंट एक्ट में परिवर्तन कराने को लेकर सरकार का विरोध कर रहे चिकित्सक संगठनों की बात सुनने के लिए सरकार के पास वक्त नही है। ऐसे में उत्तराखंड के हालात दिन प्रतिदिन विकट होते जा रहे है। सरकार और निजी चिकित्सकों की लड़ाई किस मोड़ पर आकर खत्म होगी इसका जबाव किसी के पास नही है।
केंद्र सरकार के क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट को उत्तराखंड सरकार प्रदेश में सख्ती से लागू करना चाहती है। केंद्र की ओर से बनाए गए इस एक्ट में तमाम खामियां है। जो उत्तराखंड प्रदेश की भौगोलिक स्थिति के अनुरूप नही है। उत्तराखंड के अधिकतम निजी चिकित्सालय कमोवेश एकल स्वामित्व के है। जो बहुत ही कम स्थान में बने हुए है। कुछ क्लीनिक तो चिकित्सकों ने अपने घरों पर ही संचालित किए हुए है। ऐसे स्थिति में एक्ट के लागू होने के बाद इन चिकित्सकों को मुश्किलों का सामना करना पडे़गा। लेकिन केंद्र सरकार के मसौदे में तैयार एक्ट के अनुसान इन निजी चिकित्सालयों को जारी रख पाना निजी चिकित्सकों के बस की बात नही है। सरकार के इसी एक्ट का निजी चिकित्सक संगठन विरोध कर रहे है। निजी चिकित्सक संगठनों का तर्क हैै कि राज्य की भौगोलिक स्थिति के अनुरूप एक्ट को बनाकर प्रभावी तरीके से लागू किया जाए। ताकि कानून के दायरे में रहकर निजी चिकित्सक अपने अस्पतालों की व्यवस्था बनाय रखे। ताकि निजी चिकित्सक अपने आत्मसम्मान के साथ अपने मरीजों को सेवायें देते रहे। लेकिन सरकार के एक्ट को लेकर अडियल रवैये ने निजी चिकित्सकों को मजबूरीवश आंदोलन की राह पर धकेल दिया। निजी चिकित्सक आठ दिनों से अपने चिकित्सालयों पर ताला लगाकर सरकार तक आवाज पहुंचाने का प्रयास कर रहे है। सरकार ने अपनी आंखों और कानों को पूरी तरह से बंद कर लिया है। ऐसे में बड़ा सरकार ये है कि सरकार आखिरकार चाहती क्या है। देश में अरसे से चली आ रही व्यवस्थाओं को ध्वस्त करने की वजाय इनको चलाये रखने की सहूलियत देना सरकार की जिम्मेदारी है। सरकार की चुप्पी उनकी हठधर्मिता को जाहिर कर रही है। त्रिवेंद्र सरकार को इन निजी चिकित्सक संगठनों से बात करने के बाद एक मध्य मार्ग निकालना चाहिए। ताकि निजी अस्पताल कानून के दायरे में रहकर अपने मरीजों की सेवा कर पाए।

केंद्र सरकार के बनाये मसौदे के अनुसार अगर क्लीकिल इस्टैब्लिमेंश एक्ट लागू होता है तो प्रदेश के सैंकड़ों निजी अस्पताल पूरी तरह से बंद हो जायेंगे। इन अस्पतालों में कार्य करने वाले हजारों लोग बेरोजगार हो जायेंगे। सरकार के पास इन बेरोजगारों को रोजगार देने की कोई व्यवस्था नही है। लेकिन सरकार है कि समझने को तैयार नही है। आखिरकार कोई भी एक्ट जनहित के लिए ही बनाया जाता है। जिस एक्ट में तमाम खामियां हो। उसमें परिर्वतन करने की जिम्मेदारी भी तो सरकार की बनती है। फिर उत्तराखंड सरकार और मंत्रियों को ये बात समझ में क्यो नही आ रही है।



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