नवीन चौहान. कोरोना संक्रमण काल की दूसरी लहर के बाद टीवी चैनल लोगों को डराने का काम करने लगे हैं. श्मशान में जलती चिताए. ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहे मरीज. तड़पती सांसे और उखड़ती धड़कन ही खबरों की सुर्खियां बनी हुई है. टीवी चैनल की टीआरपी ऊपर है. लेकिन लोगों की जिंदगानी खिसक रही है.
समूचा भारत कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में संकट के दौर से गुजर रहा है. देश में लॉक डाउन लगा है. केंद्र सरकार लोगों के जीवन को बचाने के लिए भरसक प्रयास कर रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर संभव अभी कदम उठा रहे हैं. उनके निर्देशों प्रदेश के सभी मुख्यमंत्री अपने-अपने राज्यों में संजीदगी से कार्य कर रहे हैं.
लेकिन बात करें इस मुसीबत के दौर में टीवी चैनल मीडिया की तो वह टीआरपी के खेल में उलझी है. रोते बिलखते लोग. अस्पताल के बाहर से निकलती लाशें. अपनों के खोने का असहनीय दर्द के बोझ तले दबे पीड़ितों को दिखाने का काम कर रहे हैं. टीवी चैनल पर इस तरह की खबरें देखकर मासूम बच्चे से सहम रहे हैं. महिलाएं और बुजुर्गों में बुरा हाल हो गया है. घरों में कैद बुजुर्ग महिलाएं और बच्चे को लगने लगा कि बाहर मौत भी कर रही है।
लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है. राज्य सरकार काम कर रही हैं जिला प्रशासन की टीम संक्रमित मरीजों के इलाज के बेहतर प्रबंध कर रही हैं. सीमित संसाधनों में भी जिला प्रशासन और चिकित्सक अपनी जान को जोखिम में डालकर मरीजों का इलाज कर रहे हैं. उनकी व्यवस्था कर रहे हैं. मरीजों के लिए दवाई और ऑक्सीजन में तमाम प्रबंध किए जा रहे हैं. जनता को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग के लिए अपील कर रहे हैं. जिला प्रशासन की मुहिम का असर भी दिखाई दे रहा है. लाखों की संख्या में मरीज ठीक होकर अपने घर पहुंच रहे हैं. मरने वालों का आंकड़ा 3% है. जबकि ठीक होने वालों की संख्या 97% हैं. ऐसे में टीवी मीडिया अपने कर्तव्य से विमुख होती दिखाई पड़ रही है.
क्या वास्तव में देश की टीवी मीडिया सिर्फ टीआरपी के लिए कार्य करती है. हमारा देश संकट की घड़ी में है. सोशल मीडिया लोगों के लिए मददगार बन गई है. सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को दवाइयां और ऑक्सीजन की व्यवस्था की जा रही है. लोग एक दूसरे की मदद के लिए आगे आ रहे हैं. अगर टीवी मीडिया ने अपना यही हाल रखा तो वह दिन दूर नहीं जब घरों से लोग न्यूज़ देखना ही बंद कर दें।