तीन सौ की दिहाड़ी करने वाले ने खोल दी सरकारी स्कूल की पोल, जानिए पूरी खबर




नवीन चौहान,

हरिद्वार। डबल इंजन की भाजपा सरकार ने एक साल में सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर किस कदर सुधारा है। इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते है खुद सरकारी स्कूलों के मास्टरों के बच्चे निजी स्कूलों में शिक्षा ग्रहण कर रहे है। जबकि तीन सौं रूपये रोज की दिहाड़ी करने वाला एक गरीब मजदूर भी अपने बच्चे का एडमिशन निजी स्कूलों में करा रहा है। मजदूर को भी सरकारी स्कूलों पर कोई भरोसा नहीं है। मजदूर को सरकार की एनसीईआरटी की किताबों से कोई मतलब नहीं है। तो क्या सरकार सिर्फ ये सब राजनैतिक वोट बैंक के लिये कर रही है। शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय अगर वास्तव में दिल से शिक्षा के क्षेत्र में उत्तराखंड का विकास करना चाहते है और सरकारी स्कूलों की स्थिति को सुधारना है तो सरकारी स्कूलों के मास्टरजी के बच्चों को उन्ही के स्कूलों में एडमिशन करा दीजिये। कम से कम उस सरकारी स्कूल की हालत में तो सुधार होगा। जिसमें मास्टर जी खुद पढ़ाते है।
हरिद्वार के सरकारी स्कूलों की क्या हालत है इसकी पोल एक मजदूर ने खोल कर रख दी। कनखल के गांव पंजनहेड़ी निवासी एक व्यक्ति तीन सौं रूपये की दिहाड़ी मजदूरी करता है। दिहाड़ी मजदूरी करने वाला युवक अपने बच्चे का एडमिशन कराने एक निजी स्कूल पहुंचा। जब इस अभिभावक से बात की तो उसने बताया कि वह अपने बच्चे को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाना चाहता है। उसने बताया कि सरकारी स्कूलों की हालत बहुत खराब है। अंग्रेजी स्कूलों का वातावरण अच्छा होता है। वहां बच्चों को संस्कार दिये जाते है। बैठने बोलने का सलीका सिखाया जाता है। जबकि सरकारी स्कूल उनके मुकाबले बेकार है। उसने बताया कि बच्चे की पढ़ाई में वह कोई समझौता नहीं करना चाहता है। चाहे उसके लिये उसको अधिक मेहनत क्यो ना करनी पड़े। जब उससे पूछा गया कि सरकार तो सब कुछ मुफ्त दे रही है। तो मजदूर अभिभावक ने कहा कि मुफ्त के चक्कर में बच्चे के जीवन से खिलबाड़ नहीं कर सकते है। इस अभिभावक की बात सुनने के बाद एक बात को साफ है कि वास्तव में सरकार को सरकारी स्कूलों की स्थिति को सुधारना होगा। आखिरकार इन सरकारी स्कूलों के मास्टरों के वेतन पर करोड़ो रूपया खर्च करने के बाद भी सरकार स्कूलों की हालत को सुधारने में सफल क्यो नहीं हो पा रही है ये चिंताजनक है। उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय को इस मामले को गंभीरता से लेना होगा। महज निजी स्कूलों पर शिकंजा कसने और एनसीईआरटी की किताबे चलाने से खबरों की सुर्खिया तो मिल सकती है। लेकिन राज्य का भला नहीं हो सकता है।



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *