नवीन चौहान
कोरोना संक्रमण ने भारत के चिकित्सकों में वर्चस्व की जंग करा दी है। एलोपैथी और आयुर्वेदिक चिकित्सक आमने—सामने आ गए है। हालांकि एलोपैथ और आयुष दोनों प्रकार की चिकित्सा पद्धति मरीजों का इलाज करने में कारगर है। लेकिन कोरोना संक्रमण को मात देने में सफल रही आयुर्वेदिक औषधियों और उनके चिकित्सकों को मिलने वाला सम्मान एलोपैथी चिकित्सकों को रास नहीं आ रहा है। भारत सरकार आयुर्वेदिक चिकित्सकों की ताकत को बढ़ाने जा रही है। यही बात एलोपैथी चिकित्सकों को पसंद नहीं आ रही है। जिसके चलते रार बढ़ती दिखाई पड़ रही है। आईएमए ने दो घंटे का कार्य बहिष्कार करने के बाद 11 दिसंबर 2020 को देश व्यापी हड़ताल का आह्वान किया है।
भारत में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति युग युगांतर से चली आ रही है। ऋषि मुनियों के ज्ञान से आयुर्वेद का जन्म हुआ। ऋषि मुनियों ने प्रकृति में जन्मे पेड़ पौधों और वनस्पतियों से औषधियां निर्मित की गई। वेदों के ज्ञान अर्थववेद से आयुर्वेद का उदय हुआ। महर्षि सुश्रुत ने 2600 साल पूर्व शल्य चिकित्सा अर्थात सर्जरी चिकित्सा करने का पहला ज्ञान दिया। जिसका पूरा वर्णन महर्षि सुश्रुत ने अपनी पुस्तक सुश्रुत संहिता में दिया है। उन्होंने बताया कि आयुर्वेद में उपचार के लिए सर्जरी की मदद ली जाती है। सुश्रुत संहिता में सर्जरी करने का पूरा विस्तृत वर्णन दिया गया है। सुश्रुत संहिता के सातवे भाग में सर्जरी अर्थात शल्य करने के तमाम उपकरणों को जिनको यंत्र कहा गया कि पूरी जानकारी दी गई है। उन्होंने सर्जरी के लिए 125 प्रकार के उपकरण अर्थात यंत्र भी बताए है। सुश्रुत संहिता में शल्य अर्थात सर्जरी करने के आठ तरीके बताए गए है। जिसमें छेदन, भेदन, दारण, लेखन, ऐषण, अहर्य कर्म, आहरण, विश्रव्य कर्म बताया गया है। वर्तमान के आयुर्वेद चिकित्सकों को सर्जरी करने के गुण सिखाने के लिए सुश्रुत संहिता में पूरा ज्ञान दिया गया है। सुश्रुत संहिता अध्ययन करने से यह बात साफ हो जाती है कि ऋषि मुनियों को सर्जरी का पूरा ज्ञान था। यानि ऋषि मुनि सर्जरी करने में पारंगत थे। यही ज्ञान आगे चलकर नई पीढ़ी अर्थात आयुर्वेद के चिकित्सकों को सिखाया और पढ़ाया गया। बेस्ट कैंसर, टयूमर, गैंगरीन, डिलीवरी, थायराइड, हर्निया, अर्पेडिक, गॉलब्लाडर तमाम प्रकार की बीमारियों की सर्जरी करने के उपाए बताए गए है। सुश्रुत संहिता में मोतियाबिंद और मधुमेह तक की सर्जरी के तमाम गुर बताए गए है। लेकिन कोरोना संक्रमण काल में आयुर्वेदिक औषधियां मनुष्य की जीवनदायिनी हो गई तो एलोपैथी चिकित्सकों को अपना वर्चस्व कमजोर पड़ता दिखाई दिया। एलोपैथी चिकित्सकों को लगने लगा कि आयुष की ओर सरकार का ध्यान केंद्रित हो गया है। आयुष का प्रचार—प्रसार और जनता का भरोसा उनपर बढ़ रहा है। जिसके बाद से आईएमए मुखर हो गई। आईएमए अर्थात इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने देशव्यापी हड़ताल करने की कार्ययोजना तैयार कर ली है। लेकिन यहां एक बात समझने की जरूरत है कि आयुर्वेद और एलोपैथ दोनों ही चिकित्सा की जरूरत इंसान को है। दोनों ही समानान्तर चलने वाली चिकित्सा है। आयुर्वेद से एलोपैथ को कोई खतरा उत्पन्न कभी नहीं होगा। फिर आईएमए को अपना वर्चस्व कमजोर पड़ता क्यों दिखाई पड़ रहा है।
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